नई दिल्ली: राहुल गांधी की ही तरह भारत में जब अंग्रेजी शासन था तो उन्हें भी चौकीदार चोर नज़र आते थे. लेकिन उस समय न तो नरेंद्र मोदी थे और न उनका कोई अंग्रेजों से राजनैतिक बैर ही था. पीएम मोदी ने इस बार लोकसभा को फतह के लिए अपना कैंपेन चौकीदार के इर्द-गिर्द चलाया है. पर अंग्रेज़ों की नज़र में चौकीदार वाकई चोर थे, बाज़ीगर थे, इसलिए ब्रिटिश उन्हें शक की निगाह से देखते थे.
चौकीदार का पद
ब्रिटिश काल में चौकीदारों की औपचारिक तौर पर उत्पत्ति हुई जो ज़मींदारों के नियंत्रण में थे यह बंगाल प्रशासन में 1813 में लाए गए.
उस साल एक रेग्युलेशन लाया गया जिसके तहत पंचायत बनाई गयी थी जिसका काम था आम लोगों से कर वसूलना जिससे चौकीदारों की तंख्वाह दी जा सके. और चौकीदारों का काम था कि गांव के क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा लेना.
एक कटक के जज ने, जोकि उस समय बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा था, 1838 में चौकीदारों की व्याख्या यूं की थी- ‘दिन में वे ज़मींदारों से कर इकट्ठा करने में मदद करते थे और रात में वे संदिग्ध लोगों के एजेंट के तौर पर काम करते थे, और उन्हें बताते थे कि कहा से संपत्ति पाई जा सकती है. ‘
बंगाल के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर, सर फ्रेडरिक जेम्स हैलिजे ने 1856 को उद्धृत किया था कि चौकीदारों का ‘नाता चोरों उच्चकों से है. जब गांव में कोई लूटपाट की घटना होती है तो जिसपर सबसे पहले शक होता था वो था गांव का चौकीदार. ‘
ये 1870 के एक कानून के बाद हुआ कि चौकीदार को इज़्ज़त मिली. उसे एक विश्वस्नीय एजेंट के तौर पर देखा जाएगा. कानून कहता था कि ज़िला मजिस्ट्रेट चौकीदार की नियुक्ति करेगा और उसे वो पगार देगा जो उसे सही लगेगी और उस वेतन को पंचायत के तय नियमों के तहत स्थानीय लोगों से लिया जायेगा.
हालांकि चौकीदार के पद को अब भी जनता अच्छी नज़र से नहीं देखती थी और ज्यादातर चौकीदार निचली जाति से आते थे.
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