सामुहिक बयान में संस्थानों ने कहा, ‘आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी गोहाटी, आईआईटी कानपुर, आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी मद्रास और आईआईटी रुढ़की जैस अहम संस्थानों ने फ़ैसला किया है कि इस साल वो टाइम्स हायर एजुकेशन (टीएचई)- वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग से जुड़ी किसी रैंकिंग में हिस्सा नहीं लेंगे.’
इस फ़ैसले का वास्ता पिछले साल आई टीएचई रैंकिंग से है जिसमें किसी भी आईआईटी को टॉप- 200 में जगह नहीं मिली थी और आईआईटी दिल्ली और आईआईटी बॉम्बे जैसे पुराने आईआईटी को नए आईआईटी ने पछाड़ दिया था.
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पिछले साल आईआईटी इंदौर (351-400) की रैंकिंग आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी दिल्ली और आईआईटी खड़गपुर (401-500) जैसे संस्थानों से बेहतर थी. हालांकि, आईआईटी दिल्ली के निदेशक रामगोपाल राव का मानना रहा है कि टीएचई रैंकिंग की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है.
प्रमुख आईआईटी संस्थानों की रैंकिंग में 2018 से ही गिरावट आई है, जिसे लेकर उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय (शिक्षा मंत्रालय) से 2019 में अनौपचारिक तरीके से शिकायत की थी. लेकिन शिकायत के बाद संस्थानों से कहा गया था कि दूसरे में कमी निकालने से पहले वो ख़ुद में सुधार करें.
विश्व के दो सबसे सम्मानजनक रैंकिंग क्यूएस और टीएचई दोनों ही लंदन स्थित हैं. उच्च शिक्षण संस्थानों को रैंकिंग देने वाली इन संस्थानों का काफ़ी सम्मान है. लंदन स्थित टीएचई मैगज़ीन द्वारा दी जाने वाली रैंकिंग में 13 बिंदुओं पर ग़ौर किया जाता है. इनके सहारे संस्थानों का आंकलन किया जाता है. कुछ अहम बिंदुुओं में टीचिंग, रिसर्च, नॉलेज ट्रांसफर और इंटरनेशनल आउटलुक शामिल हैं.
हालांकि, पिछले साल आईआईटी दिल्ली द्वारा की गई एक स्टडी में कहा गया है कि उच्च शिक्षण संस्थानों से जुड़ा मोदी सरकार का रैंकिंग सिस्टम क्यूएस और टीएचई की तुलना में काफ़ी सही और पारदर्शी है. मोदी सरकार द्वारा नेशनल इंस्टीट्यूशन रैंकिंग फ्रेमवर्क को 2015 में लॉन्च किया गया था.
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प्रशासन द्वारा ये उस अहम प्रयास का हिस्सा है जिसके तहत ‘इंस्टीट्यूट ऑफ़ एमिनेंस’ को विकसित किया जाना है जिसके सहारे इन्हें दुनिया के बेहतरीन संस्थानों में जगह दिलवाई जा सके. भारतीय संस्थानों की इंटरनेशनल रैंकिंग को बेतहर बनाने पर मोदी सरकार की लगातार निगाहें रही हैं.
शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि ‘स्टडी इन इंडिया’ जैसे प्रोग्राम को जब लॉन्च किया गया, तब इसका ध्येय रैंकिंग को बेहतर बनाना नहीं था. लेकिन 2018 में लॉन्च किए गए इस प्रोग्राम की वजह से भारतीय संस्थानों की रैंकिंग में बेहतरी आने की संभावना है.
दरअसल, संस्थानों की रैंकिंग तय करने के समय क्यूएस संस्थान में मौजूद अंतरराष्ट्रीय छात्रों और अंतरराष्ट्रीय शिक्षकों को ध्यान में रखते हुए 5 प्रतिशत नंबर देता है. स्टडी इन इंडिया के तहत भारत में विदेश छात्रों को पढ़ने के लिए आकर्षित करने की योजना है. बावजूद इसके अभी तक भारत की रैंकिंग में कोई सुधार नहीं हुआ है.
इस बीच, अपने ताज़ा सामूहिक बयान में आईआईटी ने कहा, ‘अगर टाइम्स हायर एजुकेशन हमें अपने पैरामिटर और पारदर्शिता को लेकर समझाने में सफल रहता है तो हम अपने इस फ़ैसले पर अगले साल फ़िर से विचार करेंगे.’