पूर्वी लद्दाख़ में आज भारत और चीन के बीच, उच्च स्तर की सैनिक वार्ता शुरू होने जा रही है. लेकिन उससे पहले ही वास्तविक नियंत्रण रेखा दिप्रिंट की न्यूज़मेकर ऑफ द वीक बन गई है.
वास्तविक नियंत्रण रेखा असल में क्या है, इसे लेकर भारत और चीन दोनों की धारणाएं अलग-अलग हैं. भारत के लिए एलएसी में वो क्षेत्र आते हैं, जिन्हें चीन अपना इलाक़ा समझता है और चीनियों के साथ भी यही है.
ये काल्पनिक रेखा जो लद्दाख़, हिमाचल प्रदेश,उत्तराखण्ड,अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम से होकर गुज़रती है. दशकों से भारत और चीन दोनों देशों के बीच झगड़े की जड़ रही है. पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के ताज़ा अतिक्रमण के बाद, ये एक बार फिर एक फ़्लैश प्वाइंट बन गई है.
नियंत्रण रेखा (एलओसी) के उलट, जो भारत और पाकिस्तान सीमा के नक़्शे पर चित्रित की गई है. जिसपर दोनों देशों की सेनाओं के दस्तख़त हैं और जिसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता हासिल है. एलएसी बहुत अस्पष्ट है. ज़्यादातर समय, ये न तो रेखा है, और न ही नियंत्रण में है.
वास्तविक चित्र के बिना औपचारिक
1962 के युद्ध के बाद से एलएसी दोनों देशों के बीच अनौपचारिक सीज़फायर लाइन थी. ये तब तक अनौपचारिक रही, जब तक भारत और चीन ने 1993 में, एक द्विपक्षीय समझौते पर दस्तख़त किए और औपचारिक रूप से एलएसी को प्रचलित किया.
हालांकि, 1967 के बाद से दोनों देशों के बीच कोई गोली नहीं चली. लेकिन यहां दोनों पक्षों के गश्ती दलों के बीच अनेकों झड़पें हुई हैं.
बहुत बार, चीनी उस क्षेत्र में घुस आते हैं, जिसे वो अपना इलाक़ा समझते हैं. लेकिन जो दरसअल भारत का है. भारत की गश्ती पार्टियों के साथ भी ऐसा ही होता है.
भारत अब ऐसे अतिक्रमण को उल्लंघन बताता है, क्योंकि एलएसी को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं.
कारगिल के बाद मौजूदा गतिरोध सबसे ख़राब
चीन अब पूर्वी लद्दाख़ में कम से कम 5,000 सैनिकों को आगे ले आया है. पूर्वी लद्दाख़ में कई जगहों से अतिक्रमण की ख़बरें मिली हैं- तीन बड़े हॉट स्प्रिंग एरिया से और एक पैंगॉन्ग लेक के ‘फिंगर’ एरिया से.
मौजूदा घटनाएं उनसे अलग हैं, जो 1999 में सामने आईं थीं. लेकिन सैनिकों में इज़ाफ़ा और अतिक्रमण कई जगह हो रहे हैं, जिसकी वजह से ये 1999 के कारगिल युद्ध के बाद से भारत के लिए सीमा का सबसे बड़ा तनाव बन गया है.
कुछ लोग इसकी तुलना 2017 के डोकलम गतिरोध से करते हैं. लेकिन ये याद रखना चाहिए कि डोकलम भूटानी इलाक़े में था और मौजूदा अतिक्रमण उसे इलाक़े में है, जिसे भारत अपना समझता है.
संयोग से एलएसी पर चीनी सैनिकों का जमावड़ा 1993 के समझौते के भी खिलाफ जाता है.
1993 में भारत-चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति के रख-रखाव पर हुए समझौते की धारा 3 में कहा गया है कि, ‘दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने सैन्य बल निम्नतर स्तर पर रखेंगे. जो कि दोनों मित्र देशों के बीच अच्छे पड़ोसी रिश्तों के अनुकूल होंगे.’
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउण्डेशन की ओर से प्रकाशित एक पत्र के अनुसार समझौते में किसी संख्या का उल्लेख नहीं किया गया, और ‘न्यूनतम स्तर’ क्या है ये भी परिभाषित नहीं हुआ.
लेकिन, भारत-चीन के सीमावर्ती क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिक क्षेत्र में कॉनफिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स के लिए, 1996 में भारत और चीन के बीच हुए समझौते की धारा 5 कहती है कि एलएसी के दस किलोमीटर के भीतर विमान उड़ान नहीं भर सकते. केवल बिना हथियार के ट्रांसपोर्ट विमानों, सर्वेक्षण विमानों और हेलिकॉप्टर्स को, एलएसी के एक किलोमीटर तक उड़ान भरने की अनुमति है.
एलएसी भविष्य में भी ख़बरों में रहेगी
एलएसी अभी कुछ और समय ख़बरों में बनी रहेगी, क्योंकि दोनों पक्षों में धारणाओं का अंतर अभी बना हुआ है.
भारत और चीन के बीच सीमा के सवाल पर विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत को एक आम सहमति पर पहुंचना होगा, तभी जाकर गश्तियों के बीच झड़पों को ख़त्म किया जा सकता है.
विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत का पिछला राउण्ड, जो 22वां एडिशन था. दिल्ली में दिसम्बर 2019 में हुआ, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और स्टेट काउंसल व चीन के विदेश मंत्री, वांग यी के बीच बातचीत हुई थी.
जब तक भारत और चीन अपना सीमा विवाद नहीं सुलझाते तब तक एलएसी पर तनाव का स्तर समय-समय पर बढ़ता रहेगा.
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