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Friday, 22 November, 2024
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अयोध्या के मुस्लिम दुकानदारों के हालात बेहद खराब, अब मंदिर से ही व्यापार चमकने की उम्मीद

शहर के अलग-अलग हिस्सों लगे दुकानदारों ने दिप्रिंट से बातचीत में मंदिर बनने के बाद व्यापार बढ़ने और आर्थिक हालात सुधरने की आस लगाए हुए हैं.

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अयोध्या: राम मंदिर निर्माण न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि अयोध्या की आर्थिक दृष्टि से भी अहम माना जा रहा है. भूमि पूजन के दौरान पीएम मोदी ने भी अपने भाषण में कहा कि मंदिर बनने के बाद अयोध्या का अर्थतंत्र बदल जाएगा. यहां रहने वाले मुस्लिम दुकानदारों को भी उम्मीद है कि मंदिर बनने से ऐसा ही होगा लेकिन मौजूदा हालातों से वह काफी दुखी हैं. खासतौर पर खड़ाऊ बनाने वाले, पोस्ट बिक्रेता, टेलर सहित तमाम छोटे दुकानदारों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब चल रही है.

खड़ाऊ व्यापारियों का ठप हो गया बिजनेस

अयोध्या के बाबू बाजार में खड़ाऊ का काम करने वाले 61 वर्षीय बशीर अहमद बताते हैं कि पिछले 4 महीनों में महज़ पांच हजार रुपये की कमाई हुई है. इतने कम रुपये से घर कैसे चलेगा. इसी कारण उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई छुड़वाकर फोटोकॉपी की दुकान खुलवा दी है. बशीर का बेटा उम्मैद 12वीं में पढ़ता था. आगे ग्रेजुएशन करने के बाद सरकारी नौकरी पाने की इच्छा थी लेकिन पिता के पास कॉलेज में एडमिशन कराने के पैसे नहीं थे. बशीर का कहना है कि लोग बताते हैं कि मंदिर निर्माण शुरू होने से अयोध्या काफी बड़ा टूरिस्ट हब बन जाएगा और इससे मुस्लिम व्यापारियों को भी काफी लाभ होगा लेकिन अभी तो सभी नुकसान में चल रहे हैं.

बशीर के मुताबिक, इस बात की खुशी है कि प्रधानमंत्री अयोध्या आए और उन्होंने आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने की बात कही लेकिन अभी सभी अयोध्यावासी ही आत्मनिर्भर नहीं बन पाए हैं. खासतौर पर खड़ाऊ व्यापारियों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. लॉकडाउन ने मुसीबतें बढ़ाई हैं लेकिन पिछले 2-3 साल से ही बिक्री कम हो गई है. 140 रुपए प्रति जोड़ा के हिसाब से खड़ाऊ बिकता है. मौजूदा स्थितियां ये है कि दिनभर में 2 या 3 जोड़ा भी बिक जाए तो बड़ी बात है.

बाबू बाजार के एक अन्य व्यापारी 64 वर्षीय मोहम्मद कासिम बताते हैं कि एक दौर था जब देशभर में अयोध्या के खड़ाऊ मशहूर थे. वैदिक काल से ये चलन चलता आ रहा है. बशीर के मुताबिक, अधिकतर हिंदू भाई ही खड़ाऊ पहनते हैं खासतौर पर बुजुर्ग अयोध्या से काफी खड़ाऊ खरीद कर ले जाया करते थे. पहले अयोध्या से वाराणसी, हरिद्वार, मथुरा, प्रयागराज समेत देश के तमाम तीर्थ स्थलों पर खड़ाऊ जाता था लेकिन लॉकडाउन में ऑर्डर आने बंद हो गए हैं.


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दुकानें हटाए जाने का भी है डर

40 साल के बबलू खान कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत हम सबने किया था. हम तो अयोध्या को अमन-चैन की नगरी मानते आए हैं. इस फैसले को आए 9 महीने हो गए हैं लेकिन जिस तरह का बूम हम व्यापार में उम्मीद कर रहे थे. वैसा देखने को नहीं मिला है. लॉकडाउन ने छोटे दुकानदारों का व्यापार चौपट कर दिया है. अब तो ये भी सुनने में आ रहा है कि सड़क चौड़ीकरण में कई दुकानें भी हटाई जा सकती हैं तो एक साथ दो-दो टेंशन दिमाग में चल रही है. बबलू को शिकायत है कि मीडिया चैनल्स अयोध्या के कई अहम मुद्दों को उठाते नहीं. वे हर बार की तरह मंदिर मुद्दे पर ही फोकस रखते हैं.

लोहे के बक्से बेचने का काम करने वाल नूरी फातिमा (52) की भी यही शिकायत है कि अधिकांश मीडिया यहां के छोटे व्यापारियों के मुद्दों को नहीं उठाता. लॉकडाउन में छोटे व्यापारियों की हालत खराब हो गई. जिन्होंने ऑर्डर दिए थे वो भी कैंसिल कर दिए. हमें लेबर को भी सैलरी देनी पड़ती है लेकिन जब कमाई ही नहीं हो रही है तो कैसे पैसे दें. हम अपनी बात किसके सामने रखें. आप लोग (मीडिया) भी आते हैं मंदिर-मस्जिद की बात करते हैं चले जाते हैं. हमें मंदिर से कोई आपत्ति नहीं. हम तो चाहते हैं कि व्यापार बढ़े लेकिन वो नहीं बढ़ पा रहा.

टेढ़ी बाजार के महबूब अली (42) जो कि भगवान की तस्वीरों का फोटो हाउस चलाते हैं उनका कहना है कि अयोध्या विवाद निपटने के बाद उन्हें उम्मीद थी कि व्यापार तेजी से स्पीड पकड़ेगा लेकिन अभी तो ऐसा कुछ नहीं हुआ है. महबबू कहते हैं कि अब भी यही उम्मीद करते हैं कि शायद मंदिर बनने के बाद तस्वीरों की बिक्री तेज हो जाए. इस उम्मीद रखने के अलावा और कोई विकल्प भी क्या है. जो थोड़ी बहुत कमाई हुआ करती थी उसे कोरोना का कहर खा गया. श्रद्धालु लॉकडाउन में अयोध्या कम ही आए. ऐसे में यहां के छोटे दुकानदारों का काफी नुकसान हो गया. इसकी भरपाई करने में कई साल लग जाएंगे.

महबूब बताते हैं कि अयोध्या में खड़ाऊ, मूर्तिकार, पोस्टर आदि बेचने का काम करने वाले 100 से अधिक छोटे दुकानदार हैं. अब सब यही उम्मीद लगाए बैठे हैं कि मंदिर बनने के बाद शायद उनका व्यापार चमक जाए.

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1 टिप्पणी

  1. दलाल पत्रकारिता है,सिर्फ मुस्लिम व्यापारी का हाल खराब है क्या, ये अरब देशों से बिकी हुई पत्रकारिता है

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