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Wednesday, 20 November, 2024
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जानिये किस हाल में हैं सोनभद्र के आदिवासी किसान जहां 10 लोगों की हाल में हुई थी हत्या

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शुक्रवार को सोनभद्र के उम्भा गांव के दौरे पर पहुंचे. उन्होंने गांव के 281 लाभार्थियों को कुल 852 बीघा भूमि का पट्टा आवंटन किया.

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उम्भा/सोनभद्र : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शुक्रवार को सोनभद्र के उम्भा गांव के दौरे पर पहुंचे. यहां पर सीएम योगी ने गांव के 281 लाभार्थियों को कुल 852 बीघा भूमि का पट्टा आवंटन किया. इसके अलावा 292 परिवारों को मुख्यमंत्री आवास योजना के अन्तर्गत लाभान्वित किया जाना है. मुख्‍यमंत्री ने कुल 400 करोड़ की लागत से 35 परियोजनाओं का लोकार्पण और 11 परियोजनाओं का शिलान्यास किया. उन्होंने ग्राम उम्भा में 292 परिवारों को मुख्यमंत्री आवास योजना के अंतर्गत आवास आवंटित किए. साथ ही निराश्रित महिलाओं को पेंशन योजना का लाभ दिलाया. लेकिन यहां के आदिवासी किसान देश के बाकी गांवों की तरह ही तमाम सुविधाओं को तरस रहे हैं.

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गांव जहां पर हुई है हिंसा की घटना.

बता दें कि बीते 17 जुलाई को सोनभद्र के उम्भा गांव में ज़मीन पर कब्ज़े को लेकर खूनी संघर्ष हुआ था जिसमें गांव के 10 आदिवासी किसानों की हत्या कर दी गई थी, जबकि 28 अन्य घायल हो गए थे. हाल ही में एक अन्य महिला किसान की भी मौत हो गई है. केरवा देवी नाम की यह महिला उस दिन (17 जुलाई) हुए हमले में घायल हो गई थीं और कोमा में चली गई थीं. कई दिनों तक उनका इलाज चला लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका.

इस हत्याकांड में गांव के प्रधान यज्ञ दत्त मुख्य आरोपी हैं. इस मामले में अब तक 54 लोग गिरफ्तार किए गए हैं.


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उम्भा गांव की अफसोस में बैठी महिलाएं.

सरकारी सुविधाओं को तरसता उम्भा गांव

लगभग एक हज़ार की आबादी वाले उम्भा गांव में 600 वोटर हैं. यहां ज़्यादातर गोंड आदिवासी रहते हैं. कुछ घर दलितों के भी हैं. इस गांव में खेती-मज़दूरी ही आजीविका के एकमात्र साधन हैं. अभी तक किसी को कोई आवास नहीं मिला है. इसके अलावा शौचालय और वृद्धा पेंशन की पहुंच से भी यह गांव कोसों दूर है. इस हत्याकांड के बाद गांव में कुछ हद तक शौचालय का निर्माण हुआ है. पेंशन को लेकर कागज़ी कार्रवाई शुरू हो गई है लेकिन अभी तक मिला नहीं है.

आवास और शौचालय की कमी के अलावा यहां पर कोई भी स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. किसी की तबीयत खराब होने पर घोरावल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जाना पड़ता है, जो यहां से 35 किलोमीटर दूर है और वहां जाने का कोई साधन नहीं हैं. गांव से घोरावल तक सफर करने के बारे में गांव के बुजुर्ग इंसान बब्बू बताते हैं कि, ‘गांव से सुबह एक गाड़ी जाती है और शाम को आती है. उसी गाड़ी से सफर करते हैं. अगर किसी को दिन में कोई काम पड़ जाता है या कोई इमरजेंसी होती है तो किसी से दोपहिया वाहन मांगा जाता है.’ उन्होंने यह भी बताया, ‘इस गांव में कुल पांच या छह दोपहिया वाहन ही हैं. अगर गाड़ी नहीं मिलती है तो पैदल जाते हैं. रास्ते में कोई मिला (जान या अंजान) तो वो अपने साथ ले जाते हैं.’ मालूम हो कि उम्भा गांव के थाना, स्वास्थ्य केंद्र और सबसे करीब मुख्य सड़क भी घोरावल ही है.


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गांव के बुजुर्ग शख्स अतिबल.

आज का नहीं, सालों पुराना है विवाद

ज़मीनी विवाद के बारे में पूछने पर गांव के सबसे बुजुर्ग आदिवासी में से एक अतिबल बताते हैं, ‘कि ज़मीन को लेकर बहस आज से नहीं कई सालों से चली आ रही है. 1952 में इसकी शुरुआत हो गई थी. तब एक आईएएस अधिकारी प्रभात कुमार मिश्र ने इस ज़मीन पर अपनी पत्नी के नाम से एक सोसायटी बना दी थी.’ अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह बताते हैं, ‘हम लोगों को भी कहा गया था कि वह भी उस सोसायटी के हिस्सा हैं, और हम अपनी ज़मीन पर खेती-बाड़ी करते रहेंगे.’

इस ज़मीन के बारे में घोरावल के स्थानीय पत्रकार राजकुमार गुप्ता रहस्योघाटन करते हुए कहा, ‘1952 में आईएएस अधिकारी रहे प्रभात कुमार मिश्र ने आदर्श कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड ऑफ उम्भा नाम के ट्रस्ट की स्‍थापना की. उन्होंने इसमें जितने भी पदाधिकारी रखे, वो उनके रिश्तेदार ही थे. हालांकि उन्होंने गांव वालों को कह दिया था कि वो उस ज़मीन पर खेती करते रहें.’

एक तरफ जहां आदिवासी इस ज़मीन पर खेती करके अपनी आजीविका चला रहे थे वहीं दूसरी तरफ सोसायटी की ज़मीन समय-समय पर दूसरे के नाम पर ट्रांसफर होती रही. लेकिन इस जमीन ने विवाद का मोड़ तब लिया जब दो साल पहले 112 बीघा जमीन प्रधान यज्ञदत्त को दो करोड़ रुपए में बेच दी गई.

ज़मीन के बारे में गांव के किसान बसंत लाल बताते हैं, ‘जब हम लोगों को मालूम चला कि हमारी ज़मीन बेच दी गई है तो हम लोग डीएम के पास पहुंचे. डीएम ने जांच का आदेश दिया. तब से हम लोग केस लड़ रहे हैं.’

भुलाए नहीं भूलता वो दिन

घटना वाले दिन को याद करते हुए अपने दो परिजनों को खो चुके रामबली बताते हैं, ‘वो लोग करीब 32 ट्रैक्टर लेकर आए थे जिसमें लगभग 300 लोग रहे होंगे. वो लोग उधर से चले तभी मालूम हो गया था कि आ रहे हैं. वे नाली वाले रास्ते से आए इधर से हम लोग सड़क वाले रास्ते से पहुंचे.’

रामबली बताते हैं कि, ‘उन लोगों में मुझे पांच लोगों के हाथ में बंदूक दिखी. बहुत सारे लोग लाठी-डंडा लिए हुए थे. इधर से हमारी तरफ के कुछ लोग भी लाठी लिए हुए थे. पहले तो कुछ देर तक लाठी चली. हमने भी मारे लेकिन तब तक उन लोगों ने बंदूक चला दी और चार औरतें ज़मीन पर गिर गईं. उन्होंने सबसे पहले औरतों को ही मारा, जब कुछ औरतें गिर गईं तो हम लोग तुरंत उन औरतों के पास दौड़ कर गए, तब तक उन लोगों ने और लोगों के ऊपर गोली चला दी.’

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गांव के बुजुर्ग विजय मरकाम.

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घटना के अगले दिन की बात को याद करते हुए गांव के बुजुर्ग विजय मरकाम बताते हैं, ‘जिस समय गांव में 10 लाशें एक साथ आईं, गांव में केवल महिलाओं की ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ें आ रही थी. उस दिन गांव में ऐसा कोई भी नहीं था जिसकी आंख से आंसू नहीं आया हो. सभी लोग एक-दूसरे से लिपटकर रो रहे थे.’

शुक्रवार को उम्भा गांव पहुंचे सीएम योगी ने गांव में पुलिस चौकी एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय आश्रम पद्धति आवासीय विद्यालय बालिका का शिलान्यास किया. इसके अलावा आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना के तहत 510 एवं मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत 201 लाभार्थियों को गोल्डन कार्ड प्रदान किया गया.

सरकार की तरफ से तमाम योजनाएं तो गांव वालों के लिए शुरू करने के लिए कह दी गई हैं, लेकिन अब ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि उम्भा गांव वालों को कोई सुविधा मिलती है या नहीं. सुविधाओं के साथ-साथ गांव वालों को इंसाफ का भी बेसब्री से इंतज़ार है. ये तो समय ही बताएगा कि गांव वालों को इंसाफ मिलता है या उनकी फाइल भी किसी कोने में दबकर रह जाती है.

(रिज़वाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं)

 

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