गुरुग्राम: हरियाणा में एक अहम घटनाक्रम के तहत, बीते हफ्ते रोहतक, जींद और हिसार जैसे जिलों में कई खाप पंचायतों ने आपात बैठकें कीं. इन बैठकों में खाप नेताओं ने अपनी पंचायतों के फैसलों को कानूनी मान्यता दिलाने की मांग की.
ये बैठकें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा खुद ही शुरू की गई एक जनहित याचिका (PIL) के बाद हो रही हैं. कोर्ट ने केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा सरकारों और चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब मांगा है कि क्या ‘मीडिएशन एक्ट, 2023’ के तहत खाप पंचायतों जैसे पारंपरिक संस्थानों को कानूनी ढांचे में शामिल किया जा सकता है, ताकि वह समुदाय के बीच सुलह-महजबी करवाने में मदद कर सकें.
हाईकोर्ट की बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस शील नागु और जस्टिस सुमीत गोयल शामिल हैं, ने 1 जुलाई 2025 को यह जनहित याचिका शुरू की. इसका मकसद “मीडिएशन एक्ट, 2023” के अध्याय 10 के अमल में कोताही की जांच करना है. खासतौर पर धारा 43 और 44, जो पड़ोसियों, परिवारों और समुदायों के बीच के छोटे-छोटे झगड़ों को सुलझाने के लिए “कम्युनिटी मीडीएशन” यानी सामुदायिक मध्यस्थता का प्रावधान करती हैं.
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस नागु ने कहा, “सामुदायिक मध्यस्थता में छोटे-छोटे झगड़े, जैसे पड़ोस, परिवार या समुदाय के विवाद, सुलझाने की बड़ी ताकत है. ये तरीका गांव-गांव में सस्ता और जल्दी न्याय देने में बेहद कारगर हो सकता है, लेकिन अभी तक इस पर अमल नहीं हुआ है.”
कोर्ट ने सुझाव दिया कि अगर खाप पंचायतें संविधान के नियमों के अनुसार काम करें, तो उन्हें “मीडिएशन एक्ट” के तहत औपचारिक रूप से मान्यता देकर प्रभावी मध्यस्थ बनाया जा सकता है.
कोर्ट ने यह भी कहा, “हरियाणा के गांवों में खाप पंचायतों का समाज पर गहरा असर है और ये अपने क्षेत्रों में सामाजिक शासन (सोशल गवर्नेंस) की भूमिका निभाती हैं.”
कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और चंडीगढ़ प्रशासन को आदेश दिया कि वह इस मामले पर अपना जवाब 5 अगस्त तक दाखिल करें. इसी दिन अगली सुनवाई होगी.
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कानूनी मान्यता की मांग तेज़
हाईकोर्ट के इस कदम से हरियाणा की खाप पंचायतें सक्रिय हो गई हैं. उनके नेताओं का मानना है कि यह उनके विवाद सुलझाने के तौर-तरीकों को कानूनी रूप देने का ऐतिहासिक मौका है.
रोहतक में फोगाट खाप ने बुधवार को बड़ी सभा की, जिसमें सभी नेताओं ने एक सुर में खाप पंचायतों के फैसलों को कानूनी मान्यता देने की मांग की.
फोगाट खाप के वरिष्ठ नेता किताब सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “खाप पंचायतों को कानूनी ज़िम्मेदारी देना बहुत अच्छा कदम है. हमारे फैसले सामूहिक सहमति से होते हैं और समाज में शांति बनाए रखने के लिए होते हैं. अगर कानूनी मान्यता मिलती है, तो हम विवादों को जल्दी और शांतिपूर्वक सुलझाने में और सक्षम हो जाएंगे.”
उन्होंने कहा कि खाप पंचायतें ऐतिहासिक रूप से ज़मीन, शादी और सामाजिक झगड़ों को सुलझाने में बड़ी भूमिका निभाती रही हैं और कई बार इन मामलों को अदालत तक जाने से भी रोक देती हैं.
जींद में कंडेला खाप ने गुरुवार को बैठक की. कंडेला खाप के प्रमुख टेक राम कंडेला ने शुक्रवार को दिप्रिंट से कहा, “सदियों से खाप पंचायतें गांवों में न्याय व्यवस्था की रीढ़ रही हैं. हमने हमेशा समाज की भलाई और निष्पक्षता के साथ विवाद सुलझाए हैं. हाईकोर्ट का यह कदम हमारे लिए एक मौका है, जिससे हमारी भूमिका कानूनी रूप से मान्य हो सके और हमारे फैसले संविधान के दायरे में भी आएं.”
हिसार में सतरोल खाप ने भी इसी तरह के विचार रखे. इसके अध्यक्ष सतीश चंदर ने दिप्रिंट से कहा, “हम कोर्ट के इस कदम का स्वागत करते हैं. हमारे पंचायत के फैसले समाज की राय पर आधारित होते हैं. अगर कानूनी मान्यता मिलती है, तो हम पारंपरिक और आधुनिक न्याय व्यवस्था के बीच की दूरी को पाट सकते हैं.”
उन्होंने यह भी बताया कि खाप की बैठक में यह मांग भी रखी गई कि ऐसी साफ गाइडलाइंस बनाई जाएं जिससे खाप पंचायतों के फैसले संविधान के मूल सिद्धांतों, जैसे लैंगिक समानता और मूल अधिकारों के अनुरूप हों.
हाईकोर्ट की इस जनहित याचिका ने भारत की न्याय व्यवस्था में पारंपरिक संस्थाओं को शामिल करने को लेकर बहस छेड़ दी है.
हालांकि, इस कदम को लेकर यह चिंता भी जताई जा रही है कि पारंपरिक संस्थाओं को संविधान के नियमों के अनुरूप कैसे लाया जाएगा.
हरियाणा के जाने-माने क्रिमिनल वकील पी.के. संधीर ने कहा, “हरियाणा में ‘खाप पंचायत’ शब्द की कोई सटीक कानूनी परिभाषा नहीं है. ऐसे में यह तय करना मुश्किल होगा कि कौन-सी पंचायत खाप है और कौन-सी नहीं.
कुछ खाप पंचायतें सिर्फ जाति विशेष का प्रतिनिधित्व करती हैं, तो कुछ गांवों के समूह की भी होती हैं. कई बार ऐसा देखा गया है कि जब लड़का-लड़की अपनी मर्ज़ी से शादी कर लेते हैं, तो लड़की की खाप कुछ और फरमान जारी करती है, जबकि लड़के की खाप बिल्कुल उल्टा फैसला सुनाती है.”
उन्होंने यह भी कहा कि खाप पंचायतों को कानूनी मान्यता देने का मतलब होगा, कानून बनाने वाले संस्थानों के अधिकार छीनना.
संधीर बोले, “जब संसद ने ‘मीडिएशन एक्ट, 2023’ पास किया है और उसमें ‘कम्युनिटी मीडीएशन’ पर अलग से अध्याय शामिल किया है, तो सरकार को खुद यह साफ करना चाहिए कि उसमें ‘कम्युनिटी’ से क्या मतलब है. अगर सरकार की मंशा खाप पंचायतों को शामिल करने की भी थी, तो सवाल यह है कि क्या संसद खाप पंचायतों को पूरी तरह यह जिम्मेदारी सौंपना चाहती है, या फिर बस कुछ सदस्यों को इस व्यवस्था में शामिल करना चाहती है.”
वहीं, दलाल खाप के अध्यक्ष रमेश दलाल का कहना है कि मध्यस्थता तो सदियों से खाप पंचायतों का मुख्य काम रहा है और उन्हें कानूनी मान्यता दी जानी चाहिए.
उन्होंने कहा, “कुछ मामलों में, खासतौर पर ऑनर किलिंग जैसे विवादों में, हरियाणा में खाप पंचायतों को बिना वजह ‘तालिबानी’ कहकर बदनाम किया गया है, जबकि असलियत यह है कि खाप पंचायतें सामूहिक सहमति से फैसले लेती हैं.”
खाप पंचायतों की विवादित विरासत
जहां एक तरफ खाप पंचायतों के नेता अपने फैसलों को कानूनी मान्यता देने की मांग कर रहे हैं, वहीं उनके कई पुराने फैसले ऐसे रहे हैं, जिन्हें संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ माना गया है और जिन पर जमकर आलोचना हुई है.
खाप पंचायतों पर अक्सर विवादित फैसलों के आरोप लगते रहे हैं, जैसे लिव-इन रिलेशनशिप पर पाबंदी लगाने की मांग, अंतरजातीय और समान गोत्र (एक ही वंश या बिरादरी) की शादियों का विरोध करना और समाज के नियम तोड़ने वाले लोगों या परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करना.
मार्च 2025 में हरियाणा के डानोदा गांव में बनीयन खाप की बैठक हुई थी, जिसमें मंत्री कृष्ण बेदी की मौजूदगी में खाप ने लिव-इन कपल्स का सामाजिक बहिष्कार करने की घोषणा की थी.
ऐसा ही एक और मामला जुलाई 2023 में सामने आया था, जब निर्दलीय विधायक सोम्बीर सांगवान के नेतृत्व वाली सांगवान खाप ने हरियाणा के चरखी गांव में 9 परिवारों का ‘हुक्का-पानी बंद’ यानी पूरी तरह से सामाजिक बहिष्कार कर दिया था. इन परिवारों पर पंचायत के उस आदेश की अवहेलना करने का आरोप था, जिसमें गांव में धान की खेती न करने का फरमान दिया गया था.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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