नई दिल्ली: जब प्रदेश विधानसभा चुनावों में छह महीने से भी कम वक्त बचा है, हिमाचल प्रदेश की शीत-राजधानी धर्मशाला में विधानसभा के बाहर खालिस्तान-समर्थक झंडे फहराए जाने के विज़ुअल्स पर सभी वर्गों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया देखने में आ रही है.
कथित रूप से रविवार को किसी समय तपोवन में विधानसभा परिसर के प्रवेश द्वार पर झंडे टांग दिए गए और उससे लगी दीवार पर खालिस्तान-समर्थक नारे पेंट कर दिए गए. हिमाचल प्रदेश पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) मामले की तफतीश कर रही है.
राज्य पुलिस की ओर से जारी एक प्रेस नोट में कहा गया, ‘एसआईटी को निर्देश दिया गया है कि मामले की तुरंत जांच करे और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अपनी जांच को पेशेवर और निष्पक्ष रखे. एसआईटी को ये भी निर्देश दिया गया है कि यदि इसकी कोई अंतर-राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय कड़ियां हैं, तो उन्हें बेनकाब करने के लिए राज्य तथा केंद्रीय खुफिया एजेंसियों से संपर्क करे’.
#WATCH Khalistan flags found tied on the main gate & boundary wall of the Himachal Pradesh Legislative Assembly in Dharamshala today morning pic.twitter.com/zzYk5xKmVg
— ANI (@ANI) May 8, 2022
हिमाचल प्रदेश पुलिस ने गुरुवार को प्रतिबंधित खालिस्तान-समर्थक संगठन सिख्स फॉर जस्टिस के प्रमुख गुरपतवंत सिंह पन्नू पर इसी मामले में दर्ज मुकदमों के अलावा गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 13 के अंतर्गत भी मुकदमा दायर किया. हिमाचल प्रदेश में 6 जून को एक जनमत संग्रह कराने की पन्नू की धमकी के बाद राज्य में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया था.
लेकिन ये पहली बार नहीं है कि दक्षिणपंथी सिखों की ओर से हवा दिए गए एक अलगाववादी आंदोलन- खालिस्तान को पंजाब के पड़ोसी सूबे हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक चर्चा में जगह मिली है.
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जब हिमाचल की चर्चा में शामिल हुआ ‘खालिस्तान’
गुरपतवंत सिंह पन्नू ने 2021 में धमकी दी थी कि वो हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को राज्य में भारतीय तिरंगा फहराने नहीं देगा. शिमला-स्थित कई पत्रकारों को भेजी गई धमकी इस विचार पर आधारित थी कि हिमाचल प्रदेश एक समय अविभाजित पंजाब का हिस्सा हुआ करता था.
उसी महीने, पंजाब-हिमाचल सीमा से 10-15 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध नैना देवी मंदिर के पास एक मील के पत्थर पर कथित रूप से खालिस्तान-समर्थक तत्वों ने तोड़-फोड़ की और उसके ऊपर ‘खालिस्तान में स्वागत है’ और ‘खालिस्तान सीमा यहां से शुरू होती है’ जैसे नारे लिख दिए.
इस साल मार्च में हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी करके जरनैल सिंह भिंडरांवाले के झंडे लगाकर चलने वाले वाहनों के राज्य में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी, जो खालिस्तान आंदोलन का सबसे प्रमुख लीडर था और 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान मारा गया था. इसके जवाब में सिख्स फॉर जस्टिस ने 29 अप्रैल को शिमला ज़िला कलेक्टर के ऑफिस के बाहर ‘खालिस्तान’ का झंडा फहराने की धमकी दी थी, जिसे प्रतिबंधित संगठन ‘खालिस्तान घोषणा दिवस’ के रूप में मनाता है.
खबरों के अनुसार, खालिस्तान-समर्थकों के छोटे से समूहों ने 29 अप्रैल को पंजाब के कुछ हिस्सों में प्रदर्शन किए, जिनमें से एक के नतीजे में पटियाला में टकराव देखा गया.
लेकिन, हिमाचल प्रदेश में ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई, जहां ‘एंटी-टैररिज़्म फ्रंट ऑफ इंडिया’ ने उसी दिन एक खालिस्तानी झंडे को आग के हवाले कर दिया, जिस दिन सिख्स फॉर जस्टिस ने शिमला डीसी कार्यालय के बाहर उसे फहराने की धमकी दी थी.
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क्या खालिस्तान हिमाचल में ‘राजनीतिक रूप से प्रासंगिक’ है?
हिमाचल प्रदेश को 1966 में पंजाब से अलग कर बनाया गया था और उसके बाद से ही इसके पड़ोसी राज्य में सिख आतंकवाद देखा जा रहा है, जो 1980 के दशक से 1990 के दशक की शुरुआत तक अपने चरम पर था.
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के रमेश के चौहान ने कहा कि उन दिनों लोग पंजाब में चल रहे आतंकवाद से वाकिफ थे, लेकिन हिमाचल प्रदेश में ऐसा कुछ नहीं हो रहा था.
चौहान ने दिप्रिंट से कहा, ‘वो उस समय भी कोई मुद्दा नहीं था और अब भी कोई मुद्दा नहीं है. कुछ फ्रिंज तत्वों ने जिनके पड़ोसी राज्यों से आए वीकएंड पर्यटक होने की संभावना ज़्यादा है, प्रचार हासिल करने के लिए ऐसे खालिस्तान-समर्थक नारे लगाने का रास्ता निकाल लिया है और उन्हें अनुचित/अनुपातहीन कवरेज दी जा रही है इससे अधिक कुछ नहीं है. हिमाचल प्रदेश में खालिस्तान के लिए कोई जगह नहीं है’.
पिछले हफ्ते ही आम आदमी पार्टी (आप) ने, जो राज्य में विस्तार की कोशिशों के बीच अपने स्थानीय नेताओं का पलायन देख रही है, अपने हिमाचल प्रदेश सोशल मीडिया प्रभारी हरप्रीत सिंह बेदी को निष्कासित किया था, जब ये पता चला था कि उन्होंने ट्विटर पर खुले तौर से खालिस्तान की मांग का समर्थन किया था.
ये पूछे जाने पर कि क्या सिख आतंकवाद का मुद्दा सूबे की सियासत में कोई प्रासंगिकता रखता है, रमेश के चौहान ने दिप्रिंट से कहा: ‘यहां के 95 प्रतिशत से अधिक मतदाता हिंदू हैं, इसलिए हिमाचल की पिच पर ध्रुवीकरण का खेल नहीं चलेगा. ध्रुवीकरण के काम करने के लिए दूसरे पक्ष के लोग भी होने चाहिए, जो हिमाचल में नहीं हैं. यहां पर बहुत थोड़े से अल्पसंख्यक रहते हैं. इसलिए इस नैरेटिव और लोगों के इस तरह के नारों को जरूरत से ज़्यादा कवरेज दी जा रही है’.
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