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Monday, 23 December, 2024
होमदेश‘प्रमुख प्लेयर्स को बाहर करना और प्रसार’– केंद्र के प्रस्तावित ई-वेस्ट के नियम 'कुप्रबंधन' को बढ़ा सकते हैं

‘प्रमुख प्लेयर्स को बाहर करना और प्रसार’– केंद्र के प्रस्तावित ई-वेस्ट के नियम ‘कुप्रबंधन’ को बढ़ा सकते हैं

विशेषज्ञों का मानना है कि मई में जारी प्रस्तावित नियमों में बदलाव ई-कचरे के कुप्रबंधन को बढ़ा सकते हैं. ब्रांड अब कचरे के कलेक्शन के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे और इसे अनौपचारिक क्षेत्र के हाथों में सौंपे जाने की संभावना बढ़ जाएगी.

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नई दिल्ली: विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-कचरे) के निपटान और रीसाइक्लिंग को नियंत्रित करने वाले नियमों में सरकार के प्रस्तावित बदलाव उलटे पड़ सकते है.

विशेषज्ञों का कहना है कि मई में प्रकाशित प्रस्तावित बदलाव, जैसे प्रमुख दिग्गजों को हटाना और ब्रांडों के लिए रीसाइक्लिंग लक्ष्यों को बढ़ाना, ई-कचरा प्रबंधन के एक पारिस्थितिकी तंत्र, जो धीरे-धीरे गति पकड़ रहा था, को खत्म करने के संकट को बढ़ा देगा. उन्होंने चेतावनी दी कि ये बदलाव ई-कचरे के कुप्रबंधन को बढ़ा सकते हैं और इसे अनौपचारिक क्षेत्र के हाथों में सौंप जाने की संभावना है.

ब्रांडों के रिसायकल लक्ष्य को बढ़ाने के अलावा मसौदा प्रस्ताव में यह भी सुझाव दिया गया है कि ई-कचरा प्रबंधन नियमों के दायरे को और ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को शामिल करने के लिए विस्तारित किया जाए. मौजूदा ढांचे में फिलहाल 21 उत्पाद शामिल हैं जो अब मिलाकर कुल 95 हो जाएंगे.

प्रस्तावों को 19 मई को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा एक मसौदा अधिसूचना में प्रकाशित किया गया था. मसौदा संशोधन नियम मंगलवार तक सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए खुले हैं.

दिप्रिंट केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अधिकारियों से फोन व ईमेल के जरिए और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधिकारियों तक ईमेल के जरिए प्रस्तावित बदलावों पर प्रभावित लोगों द्वारा जताई गई चिंताओं पर टिप्पणी के लिए संपर्क करने की कोशिश की गई थी. लेकिन वहां से अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. उनकी तरफ से प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर रिपोर्ट के अनुसार, चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा पैदा करने वाला देश है. 2019 और 2020 के बीच भारतीयों ने 10 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न किया. यह तीन साल पहले 7 लाख टन था.

भारत में, 2016 के ई-कचरा प्रबंधन नियमों में मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक इस कचरे के कलेक्शन और रीसाइक्लिंग को औपचारिक रूप देने के लिए ब्रांडों को इसकी पुनर्प्राप्ति के लिए जिम्मेदार ठहराता है और सिस्टम की निगरानी के लिए राज्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को काम पर रखने की मांग की थी.

हालांकि आकड़ों से पता चलता है कि सिस्टम के जरिए इकट्ठा किए गए ई-कचरे की मात्रा 2017 में 69,414 टन से बढ़कर 2020 में 2 लाख टन से कुछ अधिक हो गई थी. इसका एक बड़ा हिस्सा अभी भी अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा संसाधित किया जाता है. अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा ई-कचरे का निपटान कानून के तहत मान्यता प्राप्त नहीं है.

क्या कहता है प्रस्तावित मसौदा नियम

मौजूदा ढांचे के अंतर्गत ब्रांडों को अपने उत्पादों का एक हिस्सा, उनकी उत्पादकता खत्म होने के आखिर में वापस लेना होगा और इसे अधिकृत डिसमेंटलर और रिसाइकलर को भेजना होगा. ऐसा करने के लिए वे एक प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी ऑर्गेनाइजेशन (PRO) को नियुक्त कर सकते हैं – एक कंपनी जो ब्रांड की ओर से अपने उत्पादों के कलेक्शन, डिसमेंटलिंग और रीसाइक्लिंग की देखरेख करती है.

सीपीसीबी पीआरओ को मंजूरी देने का प्रभारी है और राज्य प्रदूषण बोर्ड (पीसीबी) रीसाइक्लिंग चेन में अन्य खिलाड़ियों को लाइसेंस जारी करने के लिए अधिकृत हैं, जैसे डिसमेंटलर (जो उत्पाद को उसके विभिन्न हिस्सों में अलग करता है), और रिसाइकलर (जो वस्तु को उसके कच्चे माल के रूप में परिवर्तित करता है).

यह जिस ब्रांड या पीआरओ को नियुक्त करता है, वह ग्राहकों को यह बताएगा कि उनके ई-कचरे के साथ क्या करना है और संग्रह केंद्र स्थापित करेगा, जहां कचरा जमा किया जा सकता है.

नए मसौदे के नियमों में पीआरओ, डिस्मेंटलर्स और कलेक्शन सेंटर्स को खत्म करने और ब्रांड्स से बोझ को दूर करने के लिए एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी (ईपीआर) की परिभाषा को संशोधित करने का प्रस्ताव है.

पहले ईपीआर को ब्रांडों द्वारा ‘ऐसे कचरे का पर्यावरण की दृष्टि से सही प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए ई-कचरे के चैनलाइजेशन’ के रूप में परिभाषित किया गया था, जिसमें अधिकृत डिसमेंटलर, रिसायकलर और पीआरओ के साथ काम करने के अलावा ‘बैक सिस्टम को लागू करना या संग्रह केंद्रों की स्थापना करने’ को शामिल किया जा सकता है.

हालांकि, मसौदा संशोधन में अब ईपीआर की परिभाषा को इस तरह से बदलने का प्रस्ताव किया गया हैः- ‘ऐसे कचरे का पर्यावरण की दृष्टि से सही प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए केवल ई-कचरे के पंजीकृत रिसायकलर के जरिए रीसाइक्लिंग लक्ष्यों को पूरा करना.’

मसौदा प्रस्ताव में सूचीबद्ध परिवर्तनों में जुर्माना की बात भी कही गई है. ब्रांड से लेकर रिसायकलिंग करने वाले, सभी उल्लंघन करने वालों को इसका पालन करने में विफल रहने पर भुगतान करना होगा. इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि रिसायकलर और ब्रांडों को यह जानकारी अपलोड करने के लिए कहा जाए कि उन्होंने एक ऑनलाइन पोर्टल पर कितना ई-कचरा रिसायकल किया है.

इसके अलावा मसौदा प्रस्ताव में सुझाव दिया गया है कि संशोधित ई-कचरा प्रबंधन नियमों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक संचालन समिति का गठन किया जाए. जिसमें पर्यावरण मंत्रालय, सीपीसीबी, राज्य पीसीबी, और रिसायकलर और ब्रांड एसोसिएशन के सदस्य शामिल हों.


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मौजूदा व्यवस्था की समस्या

सीपीसीबी की वेबसाइट के अनुसार, देश में 472 अधिकृत डिसमेंटलर और रिसायकलर हैं (जिनमें से अधिकांश डिसमेंटलर हैं), और 77 पीआरओ हैं.

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में 2011 से ई-कचरा संग्रह को लेकर नियम बने हुए हैं – 2011 के नियमों को 2016 में नए नियमों से हटा दिया गया था, इसके बाद 2018 में एक और संशोधन किया गया था – और इसमें सुधार की गुंजाइश है. सीपीसीबी की 2020 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि 2018 तक 95 प्रतिशत ई-कचरे को अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा संसाधित किया गया था.

मिनरल्स इंजीनियरिंग पत्रिका में पिछले महीने प्रकाशित मोनाश यूनिवर्सिटी मलेशिया के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में औपचारिक रिसायकलर की संख्या सीमित है, जो देश में उत्पन्न कुल ई-कचरे को संसाधित करने के लिए अपर्याप्त हैं.

अध्ययन में कहा गया, ‘इसके अलावा, इन अधिकृत रिसायकलर द्वारा उत्पन्न कचरे (जैसे ई कचरे के रिसायकलिंग के बाद सॉलिड वेस्ट रेजिडू और एसिडिक लिक्विड एफ्लूएंट) के निपटान के लिए लागू अंतिम अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों के बारे में सीमित जानकारी है.’

2020 सीपीसीबी की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि डिस्मेंटलर और रिसाइकलर ई-कचरे के उच्च अनुपात को संसाधित करने का दावा करके मानदंडों की धज्जियां उड़ा रहे थे. इसने यह भी संकेत दिया कि अनौपचारिक क्षेत्र में रिसाइकिलर्स और डिसमेंटलर के जरिए जोखिम की संभावना है और राज्य पीसीबी इसे रोकने के लिए पर्याप्त जांच नहीं कर रहे हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए, गुरुग्राम स्थित पीआरओ ‘करो संभव’ के संस्थापक प्रांशु सिंघल ने कहा, ‘ई-कचरा प्रबंधन नियमों को निश्चित रूप से बदलने की जरूरत है क्योंकि निगरानी और अनुपालन में समस्याएं हैं. रिसाइकलर को क्या प्राप्त होता है और आउटपुट पोस्ट प्रोसेसिंग के भौतिक संतुलन की जांच करने के लिए कोई तंत्र नहीं है, इसे मजबूत करने की जरूरत है. पीआरओ और रिसायकलर को ऑडिट किया जाना चाहिए.’

महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि नियमों को बदलने की जरूरत है क्योंकि जनशक्ति की कमी एक मुद्दा है. राज्य में 116 अधिकृत डिसमेंटलर और रिसाइकलर हैं.

फील्ड अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हमारी सबसे बड़ी चिंता यह है कि डिसमेंटलर को हटा दिया गया है. जबकि हमारे पास राज्य में रिसाइकिलर्स की तुलना में डिसमेंटलर ज्यादा हैं. अगर उन्हें हटा दिया जाता है, तो हमें किसी विकल्प की जरूरत होगी. हम इस बात से भी चिंतित हैं कि कलेक्शन मकेनिज्म कैसे काम करेगा.’

यह विचार असम पीसीबी के अधिकारियों द्वारा व्यक्त किए थे, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात की.

उद्योग नए नियमों को लेकर चिंतित क्यों

ईपीआर की प्रस्तावित परिभाषा के तहत, ब्रांड अब ई-कचरे के संग्रह के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे, और यह दिखाने के लिए कि वे नियमों के तहत अपने लक्ष्यों को पूरा कर चुके हैं, रिसायकलर से प्रमाण पत्र खरीद सकते हैं.

एक दशक से अधिक समय से भारत की ई-कचरा नीति से जुड़े दिल्ली स्थित पर्यावरण एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक की मुख्य कार्यक्रम समन्वयक प्रीति महेश ने कहा, ‘यह पूरी तरह से ईपीआर की भावना के खिलाफ है.’

उन्होंने कहा, ‘एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी की अवधारणा एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था के विचार के साथ जुड़ी हुई है. अगर ब्रांड अपने कचरे को इकट्ठा करने के लिए जिम्मेदार हैं, तो वे ऐसे उत्पादों को आजमाने और डिजाइन करने की संभावना बनाए रखेंगे जिन्हें लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सके या फिर जिससे कम वेस्ट निकले.’

महेश को चिंता है कि चूंकि ब्रांड अब टेक-बैक सिस्टम के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं, कलेक्शन की ज़िम्मेदारी रिसायकलर की होगी. साथ ही ईपीआर की अवधारणा ‘सिर्फ रिसायकलर से प्रमाण पत्र खरीदने के लिए कम कर दी गई है.’

चिंता इस बात को लेकर भी है कि जब कलेक्शन और डिस्मेंटलिंग की बात आती है तो नियम रिसायकलर को अनौपचारिक क्षेत्र के साथ आगे जुड़ने के लिए सक्षम बना रहे हैं.

बेंगलुरु के पीआरओ ‘साहस’ की मुख्य संचालन अधिकारी शोभा राघवन ने दिप्रिंट को बताया, ‘मौजूदा ढांचे में पीआरओ को यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है कि रिसाइकलर वास्तव में रीसाइक्लिंग कर रहा है और सिस्टम के भीतर कचरे को फिर से प्रसारित तो नहीं कर रहा. अब इसका पूरा बोझ राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों पर होगा, जिनके पास बैंडविड्थ नहीं है.’

ई-कचरा रिसाइकलर्स का ऑडिट करने वाले दिल्ली स्थित एक संगठन ई(को) वर्क की सह-संस्थापक दीपाली खेत्रीवाल ने कहा, ‘बहुत सारे अंडरहैंड पेपर ट्रेडिंग होती है और एक बार प्रमाण पत्र जारी होने के बाद, चेक और बैलेंस का हिसाब कौन देगा? अगर रिसाइकिलर असली नहीं हैं तो ब्रांड इससे अपना पल्ला झाड़ सकते हैं, क्योंकि यह जांचना सरकार का काम होगा.’

खेतड़ीवाल और राघवन दोनों ने कहा कि प्रमाणपत्रों की कीमत और उपलब्धता, जो कि रिसाइकलर की क्षमता पर आधारित होने की संभावना है, बाजार में अस्थिरता पैदा कर सकता है.

रिसायकल करने वाले उत्पाद के प्रकारों में वृद्धि ई-कचरे को संसाधित करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता के लिए भी एक समस्या हो सकती है.

राघवन ने कहा, ‘प्रोडक्ट के टाइप और कैटेगरी में भारी उछाल सिर्फ रीसाइक्लिंग को इतना मुश्किल बना देगा. क्योंकि अभी तो सिर्फ 21 तरह के उत्पादों के कलेक्शन और रिसायकल करना ही एक चुनौती थी. अब उत्पादों की कैटेगरी की संख्या चार गुना से अधिक हो गई है. यह व्यवस्था पर पड़ने वाला भार जिसकी हमें उम्मीद नहीं थी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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