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Thursday, 2 May, 2024
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कश्मीर पुलिस की मुश्किल, स्थानीय लोग उन्हें गद्दार मानते हैं तो केंद्रीय बलों का उन पर विश्वास नहीं

अनुच्छेद 370 को खत्म किये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस का कहना है कि उन्हें केंद्रीय सुरक्षा बलों से कम सम्मान मिल रहा है उन्हें जम्मू कश्मीर के निवासियों से बचने के लिए अतिरिक्त कदम उठाना पड़ता है.

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श्रीनगर : मेडिकल कॉलेज का 28 वर्षीय एक छात्र जो हर सुबह श्रीनगर शहर के नौहट्टा से घर से निकालता है, तो वह एक पहचान पत्र (आई-कार्ड) के साथ होता है. आई कार्ड तभी तक होता है, जब तक वह अपने गंतव्य तक नहीं पहुंचता. वह छात्र पुलिस स्टेशन में तैनात है. वहीं पर वह अपनी पहचान को बताता है- वह वास्तव में कौन है. वह जम्मू-कश्मीर पुलिस का एक कांस्टेबल है.

जब से मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म किया है, जिसकी वजह से जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म हो गया है. तब से कश्मीर में 83,000 राज्य पुलिस बल को अधिक संकटों से जूझना पड़ा है. कश्मीर घाटी में राज्य पुलिस बल ज्यादा लोकप्रिय नहीं है. राज्य पुलिस को अधिक अपमान का संघर्ष करना पड़ा है. कश्मीर के निवासियों द्वारा उन्हें ‘गद्दार’ कहा जाता है और कई बार केंद्रीय अर्धसैनिक बलों द्वारा उनकी सेवा को संदेह के साथ देखा जाता है.

28 साल के कांस्टेबल का कहना है कि इन परेशानियों में सबसे बड़ी परेशानी यह है कि जब वह ड्यूटी पर नहीं रहते हैं तो उस दौरान निवासियों से उनको पहचान छिपा कर रखनी पड़ती है. उनका कहना है कि हम आमतौर पर जहां रहते हैं, उसके बगल में पोस्टिंग नहीं लेते हैं. जब हम घर से बाहर निकलते हैं, तो हम अपने सामान्य कपड़ों में होते हैं. हम पुलिस स्टेशन पहुंचने के बाद ही अपनी वर्दी पहनते हैं.

उसके बगल में खड़ा एक हेड कांस्टेबल एक और आई-कार्ड निकालता है. जिस पर ‘यूनिवर्सिटी फैकल्टी’ लिखा है उसके पास एक और कार्ड है, जो उसको जम्मू-कश्मीर पुलिस के रूप में दिखाता है.

उसने कहा, ‘मैं इसके साथ घूमता हूं. यह दिखाने के लिए कि मैं एक शिक्षक हूं. मैं इन दो पहचानों के बीच में रहता हूं.

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हेड कांस्टेबल ने कहा, ‘5 अगस्त के बाद से मैं अपने घर से 13 किलोमीटर की दूरी तय कर रहा हूं. हम अपने परिवारों के लिए भी डरते हैं. क्या होगा यदि कुछ स्थानीय निवासी हमारे परिवारों पर सिर्फ इसलिए हमला कर दें क्योंकि हम जम्मू-कश्मीर पुलिस में काम करते हैं?’


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कांस्टेबल का कहना है कि उसे अन्य सुरक्षा बलों से पहले ही तैयार रहना होगा. ऐसा अतीत में हुआ है. एक बार केंद्रीय एजेंसियों के कुछ जांचकर्ता मेरे इलाके के एक व्यक्ति की जानकारी लेने आए थे. उन्होंने मुझसे पूछा लेकिन मैं कुछ भी नहीं बता सकता, क्योंकि मुझे पता था कि मुझे निवासियों द्वारा देखा जा रहा है. मुझे उन्हें बताना था कि मैं एक मेडिकल का छात्र हूं और कुछ नहीं जानता. इसी तरह आप यहां जीवित रहते हैं.

जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी ने दिप्रिंट को बताया, ‘आई-कार्ड पुलिसकर्मियों के लिए एक ‘रक्षा तंत्र’ हैं.’

वैद ने कहा, ‘यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने ऐसे साधनों का सहारा लिया है. यह एक जरूरत है. टकराव से बचने का एक बुद्धिमान तरीका है हमला, वे न केवल स्थानीय लोगों में अलोकप्रिय हैं. बल्कि एक कश्मीरी होने के बावजूद पुलिस बल में होने के कारण वे उग्रवादियों के रडार पर हैं, इसलिए उन्हें खुद को बचाने के लिए इन उपायों के अपनाना पड़ता है.’

जम्मू-कश्मीर पुलिस के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर मुनीर खान स्वीकार करते हैं कि जमीनी स्तर पर स्थानीय पुलिसकर्मियों के लिए खतरा है, लेकिन वह इस बात से अनजान थे कि वे अपने साथ कई पहचान पत्र ले जाते हैं.

खान कहते हैं कि उनकी सुरक्षा एक चिंता का विषय है. इसलिए हम उन्हें सलाह देते रहते हैं कि कैसे खुद की देखभाल की जाए. हमारे पास उनके लिए पुलिस कॉलोनियां हैं, चूंकि उन सभी को वहां समायोजित नहीं किया जा सकता है, उनमें से ज्यादातर अभी भी अपने परिवारों के साथ रहते हैं.’

‘केंद्रीय सुरक्षा बल संदेह के साथ देखते हैं’

कांस्टेबल का कहना है कि यदि निवासियों द्वारा उनका तिरस्कार किया जाता है तो केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के साथ काम करना बेहतर नहीं है.

28 वर्षीय कांस्टेबल का कहना है कि निवासियों के खिलाफ खड़े होने का मतलब यह नहीं है कि हमें केंद्रीय बलों में कोई स्वीकृति नहीं मिली है. केंद्रीय सुरक्षा बल खुद को हमसे बेहतर मानते हैं और उनको हम पर भरोसा नहीं है, क्योंकि हम कश्मीर से हैं. वे हमें कोई सम्मान नहीं देते हैं. उन्होंने यह भी कहा, ‘हम बस बीच में फंस गए हैं.’

हेड कांस्टेबल ने उनकी बात का समर्थन किया और कहा जब हम वर्दी में होते हैं, तब भी वे (केंद्रीय बल) हमें अपना आई-कार्ड दिखाने के लिए कहते हैं. वे हमसे दस्तावेज मांगते हैं. यह सिर्फ हमें नीचा दिखाने के लिए करते हैं कि वे खुद को हमसे ऊपर मानते हैं.’

हेड कांस्टेबल का कहना है कि उन्होंने सुरक्षा बल में बहुत से लोगों को ‘पुनर्विचार’ करने के लिए मज़बूर किया है.

एक और हेड कांस्टेबल रैंक के कर्मचारी का भी यही आरोप है कि सरकार की ‘अनुचित भर्ती की प्रक्रियाओं’ ने उन्हें पुलिस बल में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है.

एक पुलिसकर्मी ने कहा, ‘इतना भ्रष्टाचार है कि सभी नौकरियों में रिश्वत लेकर पिछले दरवाजे से नौकरी दी जाती है. मैं वाणिज्य और शिक्षा में डबल पोस्ट-ग्रेजुएट हूं. मेरी दो बहनें हैं और एक मां हैं जो अस्वस्थ रहती हैं. मुझे परिवार को मदद करनी होती है. इसलिए मेरे पास पुलिस की नौकरी करने के अलावा कोई चारा नहीं था. वरना मैं यहां अपने ही आदमियों के खिलाफ खड़ा नहीं होता.’

इन अटकलों के बाद अधिक असंतोष हुआ है कि वे जल्द ही निशस्त्र हो सकते हैं और उनके हथियारों को जमा करने के लिए कहा जा सकता है.

जबकि, कुछ पुलिसकर्मियों ने दिप्रिंट को बताया है कि उन्हें वास्तव में अपने हथियार छोड़ने और उन्हें जमा करने के लिए कहा गया था. लेकिन, एडीजी मुनीर खान ने आरोपों को ‘निराधार’ बताया.

उन्होंने कहा, यह जान-बूझकर फैलाई गयी अफवाह है. जो जमीन पर हथियार के बिना देखे जाते हैं, वे कानून और व्यवस्था के घटक हैं. उनके पास शील्डस और बैटनस हथियार नहीं है. आतंकवाद विरोधी अभियानों से निपटने वाली इकाइयां हथियार ले जाती हैं.

‘1990 के दशक के उग्रवाद को वापस लाएगा’

जम्मू-कश्मीर के कई पुलिसकर्मी ने दिप्रिंट से बातचीत में राज्य के विशेष दर्जे को रद्द करने के अचानक निर्णय से 1990 के दशक में उग्रवाद फिर से बढ़ने की बात की.

एक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी ने कहा, ‘इससे समस्या और बढ़ गई है. सब कुछ ठीक चल रहा था.

सरकार धीरे-धीरे कश्मीरियों को विकास और प्रगति में जोड़ने के लिए आकर्षित कर रही है. सरकार द्वारा की गई अचानक कार्रवाई कश्मीर को ’90 के दशक’ में वापस ले जाएगी. लोगों के साथ एक संवाद होना चाहिए. राजनीतिक नेताओं को रिहा किया जाना चाहिए. ये प्रतिबंध कब तक लगाए जा सकते हैं?


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उन्होंने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद से कई पुलिसकर्मियों ने अपने इस्तीफे सौंप दिए हैं.

हेड कांस्टेबल ने कहा, ’16 से अधिक इस्तीफे हुए हैं और अधिक इस्तीफे आने वाले हैं. एक बार जब यह शुरू होता है, तो अधिक लोग इसमें शामिल होने लगते हैं. हमारे पास अभी तक सही आंकड़े नहीं हैं, क्योंकि संचार को बंद किया गया है. लेकिन एक बार संचार लाइनों के खुलने के बाद सही आंकड़े सामने आएंगे. कश्मीरियों में असंतोष है.

हालांकि, सुरक्षा बल के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दावा किया है कि ‘ये गलत है. कोई इस्तीफा नहीं दिया गया है और जम्मू और कश्मीर का पुलिस बल दृढ़ और एक साथ है. बल के मनोबल को तोड़ने के लिए ये अफवाहें फैलाई जा रही हैं.

लेकिन सुरक्षा बल अपने कर्मियों की प्रतिरक्षा नहीं कर रहा है, जो निवासियों से सहानुभूति और आतंकवादियों से विद्रोही रवैया रखते हैं.

1993 में उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले के डुमपोरा इंदरकूट सुंबल इलाके में रहने वाले कांस्टेबल रेयाज अहमद गनी की हत्या के विरोध में, श्रीनगर शहर की सड़कों पर सैकड़ों कर्मियों ने अपनी सेवा के हथियारों को लेकर प्रदर्शन किया था, जिनकी हजरतबल दरगाह में सेना के जवानों ने कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी थी.

तत्कालीन, डीजीपी बीएस बेदी को पुलिस समन्वय समिति के नेताओं के साथ बातचीत करने के लिए कहा गया था.

पूर्व डीजीपी वैद कहते हैं कि सुरक्षा बल ने निवासियों के विरोध का सामना किया. मुझे याद है कि 90 के दशक में जब मेरे डिप्टी एसपी को मार दिया गया था, तो स्थानीय लोगों ने उन्हें अपने गांव में दफनाने की अनुमति नहीं दी थी, क्योंकि वह पुलिस में थे. हम वरिष्ठ अधिकारी इन दबावों से बेखबर रहते हैं, लेकिन इन लोगों को अपने लोगों के साथ रहना और मरना है. उनका संघर्ष वास्तविक है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए  यहां क्लिक करें)

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