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Friday, 26 April, 2024
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लॉकडाउन में भारी संघर्ष कर कश्मीरी जुड़वां भाइयों ने पास की NEET की परीक्षा, पूरा किया पिता का सपना

गौहर और शाकिर भट्ट को कोचिंग नहीं मिल सकी क्योंकि अनुच्छेद 370 के खत्म होने पर जम्मू-कश्मीर बंद हो गया था. उनके पिता ने मॉक टेस्ट के लिए इंटरनेट की सुविधा के लिए कठिन संघर्ष किया.

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श्रीनगर: बशीर अहमद भट्ट के 20 साल के जुड़वा बेटों को, नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) क्वॉलिफाई किए हुए एक हफ्ते से ज़्यादा हो गया है. लेकिन बारामूला के कुंज़ेर इलाक़े के बातपोरा गांव में उनके घर पर परिवार को मुबारकबाद देने के लिए, रिश्तेदारों, दोस्तों और मिलने वालों का तांता लगा हुआ है.

भट्ट ने, जो इसी इलाक़े में राशन की दुकान चलाते हैं, कहा, ‘कभी-कभी तो यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है. कुछ लोग जो बुलाने पर भी मेरे घर नहीं आते थे, अब हमें मुबारकबाद देने आ रहे हैं’.

पिछले जुमे को भट्ट के दो बेटों- गौहर और शाकिर ने, क्रमश: 657 और 651 नंबर लाकर, एमबीबीएस के लिए क्वॉलिफाई कर लिया. नीट में जुड़वां भाइयों की ये दूसरी कोशिश थी. अपनी पहली कोशिश में दोनों को, 524 और 498 नंबर मिले थे और वो बैचलर्स ऑफ डेंटल सर्जरी का विकल्प चुन सकते थे. लेकिन दोनों भाइयों ने तय किया कि वो, इस प्रतियोगी परीक्षा में एक और प्रयास करेंगे.


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कठिन राह

अपनी पहली कोशिश में गौहर और शाकिर ने इम्तिहान की तैयारी के लिए ट्यूशन नहीं लिया. दूसरी बार उन्होंने कोई जोखिम न उठाते हुए, श्रीनगर के एक कोचिंग सेंटर में दाख़िला ले लिया.

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दोनों भाई एक हॉस्टल में रहते थे, जो उनके ट्यूशन सेंटर ने मुहैया कराया था और वो 6,000 रुपए दे चुके थे. लेकिन दोनों को घर लौटना पड़ा, चूंकि क्लासेज़ बंद हो गईं थीं. अब उनके पास एक ही रास्ता बचा था- ख़ुद से पढ़ाई.

वो जुलाई 2019 था. ट्यूशन क्लासेज़ को तीन हफ्ते ही हुए थे कि केंद्र ने धारा 370 रद्द करने का ऐलान कर दिया, और सब कुछ बंद कर दिया गया. कम्यूनिकेशन सिस्टम भी ठप कर दिया गया.

गौहर भट्ट ने दिप्रिंट से कहा, ‘शुरू में तो हमें लगा कि इस साल भी हम क्वॉलिफाई नहीं कर पाएंगे. लेकिन फिर हमने फैसला किया कि हम ख़ुद से कोशिश करेंगे. ख़ुद पढ़ेंगे और थोड़ी ज़्यादा मेहनत करेंगे. ज़्यादा से ज़्यादा यही हो सकता था कि हम कामयाब न होते’.

गौहर और शाकिर दोनों का मानना है कि हालांकि आकांक्षी मेडिकल छात्रों के लिए क्लासेज़ बहुत अहम होती हैं, लेकिन ये दरअसल मॉक टेस्ट हैं, जो इम्तिहान की बेहतर तैयारी करने में मददगार होते हैं. पिछले साल महीनों तक ट्यूशन सेंटर्स बंद रहने की वजह से, मॉक टेस्ट कराना मुमकिन ही नहीं था.

गौहर ने कहा, ‘आख़िरकार, जब हम ऑफलाइन टेस्ट लेने की स्थिति में आए, तब हमें समझ में आया कि कश्मीर से बाहर के छात्रों के मुक़ाबले, हम छह महीना पीछे थे. लेकिन उससे हम मायूस नहीं हुए. हमने 40 ऑफलाइन टेस्ट दिए. क़िस्मत से, इम्तिहान में आए काफी सवाल टेस्टों के उन्हीं सवालों की तरह थे, जिनमें हम बैठ चुके थे’.

अपनी मेहनत के बारे में बात करते हुए दोनों भाई अपने पिता की कोशिशों का ज़िक्र करना भी नहीं भूले, लगातार लॉकडाउंस के दौरान जिनके संघर्षों की वजह से, दोनों के लिए पढ़ना आसान हो गया.

सीनियर भट्ट को नियमित रूप से, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के दफ्तरों में जाना पड़ता था, चूंकि संचार व्यवस्था के बंद रहने के दौरान, इंटरनेट सुविधा सरकार ही मुहैया कराती थी. भट्ट वहां घंटों तक अपनी बारी का इंतज़ार करते थे. बहुत बार वहां ज़्यादा लोग जमा हो जाते थे, जिससे भट्ट को मजबूरन श्रीनगर जाना पड़ता था, जहां गांवों के मुक़ाबले इंटरनेट सेंटर्स ज़्यादा हैं. यहां वो पिछले सालों के प्रश्नपत्र डाउनलोड करते थे. अपने बेटों के लिए ज़रूरी सामग्री ख़रीदने, भट्ट किताबों की दुकानों पर भी जाते थे.

भट्ट ने कहा, ‘मैं नहीं चाहता था कि मेरे बेटे सवाल डाउनलोड करने में अपना वक़्त बर्बाद करें. इससे उनका समय बेकार जाता, इसलिए हफ्ते में कम से कम दो बार, मैं श्रीनगर जाता था, और उन्हें जो भी चाहिए वो लाता था. कुछ लोग हैं जो कहते हैं कि पिछले साल जो कुछ हुआ, उसका छात्रों पर असर नहीं पड़ा. उन्हें बिल्कुल अंदाज़ा नहीं है कि परिवारों ने कितनी कोशिशें की हैं. हर परिवार के पास ख़र्च करने के लिए समय या साधन नहीं हैं’.

बेटों को डॉक्टर बनाने की प्रेरणा

लेकिन उन्होंने आगे कहा कि 2002 में, जबसे उन्होंने श्रीनगर में एक मेडिकल एजेंसी पर काम करना शुरू किया था, तभी से वो अपने बेटों के डॉक्टर बनने का सपना देखते थे. ये उनका सपना ही था जिसने भट्ट और उनके परिवार को इस दिशा में आगे बढ़ाया.

भट्ट ने ये भी कहा, ‘उस मेडिकल एजेंसी में मुझे सिर्फ 2,000 रुपए महीना मिलते थे. मैं साइकिल पर दवाएं वितरित करता था, और वो काफी मेहनत का काम था, लेकिन उससे मुझे समझ में आ गया कि मुझे अपने बेटों के लिए क्या चाहिए था. मैं चाहता था कि वो डॉक्टर बनें और समाज के लिए काम करें. क़िस्मत से, मेरे बेटे भी डॉक्टर ही बनना चाहते थे. बचपन से ही वो इस पेशे की तरफ आकर्षित रहे हैं. ये एक सपना है जो सच हो गया’.

20 साल के दोनों भाई 8वें ग्रेड तक, इस्लामिक पब्लिक मॉडल स्कूल में पढ़े और फिर 10वीं तक मोहम्मदिया हाईस्कूल में पढ़े. इसके बाद दोनों ने सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूल में दाख़िला ले लिया और नीट पास करने की अपनी मुहिम शुरू कर दी.

अपनी पहली कोशिश और धारा 370 हटने के बाद लॉकडाउन से, पिछले साल ही इस जोड़ी को झटका लगा था, ऊपर से कोविड-19 ने और मुश्किलें पैदा कर दी. इम्तिहान एक बार से ज़्यादा टाले गए, जिससे इन भाइयों को बेचैनी और मायूसी का अहसास होने लगा.

सीनियर भट्ट ने कहा, ‘हमारी ज़हनी और जज़्बाती हालत में उतार-चढ़ाव आए, लेकिन हमने अपना हौंसला बनाए रखा, हालांकि हम ख़ुद संघर्ष कर रहे थे. मैं सिर्फ 8,000-9,000 रुपए कमा पाता हूं और पिछले साल से काफी मुश्किलें रही हैं, लेकिन मैं उनसे कहता रहा कि उन्हें फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है. बस पढ़ते रहें. बाक़ी सब अल्लाह पर छोड़ दें’.

पिछले शुक्रवार आख़िरकार नतीजे आ गए, और भट्ट परिवार के लिए अच्छी ख़बरें थीं. शाकिर ने कहा, ‘हम मेहनत से पढ़ना चाहते हैं और यहां पर लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं. अगर हम अपने लोगों के लिए यहां नहीं हैं तो फिर डॉक्टर बनने का फायदा ही क्या है’. उसका भाई गौहर भी सहमत है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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