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Sunday, 27 July, 2025
होमदेशबंदूक की नोक पर कलमा, नज़दीक से गोली — पहलगाम हमले में ज़िंदा बचे लोग रेंग कर सुरक्षित जगह पहुंचे

बंदूक की नोक पर कलमा, नज़दीक से गोली — पहलगाम हमले में ज़िंदा बचे लोग रेंग कर सुरक्षित जगह पहुंचे

आतंकवादियों ने पहले भी लक्ष्य चुनने के लिए इस रणनीति का इस्तेमाल किया है, जैसे कि 2012 में श्रीनगर में होटल सिल्वर स्टार पर हमला और 2016 में ढाका की होली आर्टिसन बेकरी पर हमला.

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पहलगाम: जम्मू-कश्मीर के 38 वर्षीय फोटोग्राफर एजाज़ ने बताया कि पहलगाम के बैसरन में आतंकवादियों द्वारा बंदूक की नोक पर इस्लामी आयतें पढ़ने के दौरान जिन लोगों ने कलमा पढ़ा, उन्हें बख्श दिया गया, बाकी लोगों को बिल्कुल नज़दीक से गोली मार दी गई.

फोटोग्राफर के बयान की पुष्टि कई प्रत्यक्षदर्शियों ने की, जिन्होंने बताया कि कैसे जो पर्यटक कलमा नहीं पढ़ पाए उन्हें गोलियों से भून दिया गया.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार, इस रणनीति का इस्तेमाल आतंकवादियों ने कश्मीर में पहले भी अपने लक्ष्य चुनने के लिए किया है.

2000 के दशक की शुरुआत में आतंकवादियों ने एक बस को रोका और यात्रियों से कलमा पढ़ने को कहा. सूत्रों ने बताया कि जो लोग कलमा नहीं पढ़ पाए, उन्हें मार दिया गया. ऐसा ही एक और मामला 2012 में श्रीनगर के बाहरी इलाके में स्थित होटल सिल्वर स्टार पर हुए आतंकी हमले में हुआ था. इस हमले में होटल का एक कर्मचारी मारा गया था और कई अन्य घायल हो गए थे.

2016 में ढाका के होली आर्टिसन बेकरी हमले में भी इसी रणनीति का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें 22 लोगों की जान चली गई थी. पीड़ितों में से ज़्यादातर विदेशी थे. आतंकवादियों ने बंधकों से कुरान की आयतें पढ़ने को कहा था और जो लोग ऐसा कर सकते थे, उन्हें छोड़ दिया गया था.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने बताया, “यह एक आम रणनीति है जिसका इस्तेमाल उन्होंने पहले भी बहुत किया है. इससे पता चलता है कि ये सभी विदेशी आतंकवादी हैं, जो पाकिस्तान से घुसपैठ करके आए हैं.”

मंगलवार को हुए नरसंहार का वर्णन करते हुए एजाज़ कई बार रो पड़े. उन्होंने कहा, “जब मैंने पहली बार गोलियों की आवाज़ सुनी, तो मुझे लगा कि शायद कोई पर्यटक अपना जन्मदिन मना रहा होगा, लेकिन कुछ ही सेकंड में एक बंदूकधारी ने मुझे और दूसरे व्यक्ति को घेर लिया. जब मैंने कलमा पढ़ा, तो उन्होंने ‘लेटो’ चिल्लाया. दूसरा व्यक्ति कलमा नहीं पढ़ पाया और उसे नज़दीक से गोली मार दी गई. यह घटना मुझसे सिर्फ 8 फीट की दूरी पर हुई.”

एजाज़ की तरह अहमद को भी आतंकवादियों ने बख्श दिया और उन्हें बाड़ पार करने से पहले बैसरन पार्क में ज़मीन पर रेंगना पड़ा. कांपती आवाज़ में उन्होंने कहा, “जब हम बाड़ पर पहुंचे, तो वहां 7-8 पर्यटक थे जो बाड़ पर चढ़ नहीं पा रहे थे, हम उनकी मदद करने में कामयाब रहे और भाग निकले.”

कश्मीर घाटी में एक दशक में नागरिकों पर हुए इस सबसे घातक हमले में 26 पर्यटकों के मारे जाने की पुष्टि हुई है और कई अन्य घायल हुए हैं.

एके47 असॉल्ट राइफल और एम4 कार्बाइन से लैस दो स्थानीय लोगों सहित आतंकवादियों ने 40 मिनट में इस कायरतापूर्ण हमले को अंजाम दिया. गवाहों के अनुसार, आतंकियों के पास रिवॉल्वर और तलवार भी थीं.

एजाज़ ने कहा, “मैंने उन्हें (पीड़ित का) गला काटते नहीं देखा, लेकिन शरीर पूरी तरह से खून से लथपथ था. वह (आतंकवादी) तीखे चेहरे वाले थे और सभी ने खाकी रंग के कपड़े पहने थे. सभी की दाढ़ी छोटी ही थी और उम्र 26-27 साल से ज़्यादा नहीं होगी.”

उन्होंने बताया कि आतंकवादी टूटी-फूटी उर्दू बोल रहे थे, “जो बंगाली, गुजराती, हरियाणवी या कश्मीरी जैसी हमारी परिचित भाषाओं जैसी नहीं लग रही थी.”

उन्होंने कहा, “दूर से देखने पर वह टूरिस्ट लग रहे थे, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक बार जब सभी ने आतंक फैलाया, तो यह कयामत जैसा था.”


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‘अब कभी कश्मीर नहीं आऊंगा’

चूंकि, पुलिस वक्त पर मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंच सकी, इसलिए इलाके में मौजूद घोड़े की सवारी कराने वाले ऑपरेटरों ने पर्यटकों को निकालने में मदद की. गौरतलब है कि आतंकी हमले में मारे गए एकमात्र स्थानीय व्यक्ति सैयद आदिल हुसैन शाह भी ऐसे ही एक ऑपरेटर थे.

पहलगाम शहर से लगभग 7 किलोमीटर पूर्व में स्थित, बैसरन के हरे-भरे पहाड़ी घास के मैदान तक पैदल या घोड़े से पहुंचा जा सकता है. बैसरन पार्क तक पहुंचने में लगभग एक घंटा लगता है, जो चेन-लिंक बाड़ से घिरा हुआ है और इसमें अंदर आने और बाहर जाने के लिए एक ही गेट है और परिवहन की कोई सुविधा नहीं है.

बैसरन में पार्क में सुरक्षाकर्मी | फोटो: साजिद अली/दिप्रिंट
बैसरन में पार्क में सुरक्षाकर्मी | फोटो: साजिद अली/दिप्रिंट

घोड़ा (पोनी) एसोसिएशन के प्रमुख अब्दुल वहीद वानी, जिन्हें वीडियो में शोक संतप्त महिलाओं की मदद करते हुए देखा गया था, उन्होंने कहा कि बचाव में देरी का कारण जगह तक खराब सड़क पहुंच और कमज़ोर मोबाइल नेटवर्क था.

वहीद ने कहा, “स्थानीय एसएचओ से फोन आने के बाद मैं बचाव कार्य के लिए घटनास्थल पर पहुंचने वाला पहला व्यक्ति था. मैं दोपहर 2:35 बजे वहां पहुंचा और देखा कि रोती-बिलखती महिलाएं मदद की गुहार लगा रही थीं. मैंने घायलों में से 4-5 लोगों को घोड़ों पर उठाने में मदद की.”

घायलों को पहलगाम अस्पताल, सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) अनंतनाग और श्रीनगर के बादामबाग में सेना के बेस अस्पताल ले जाया गया.

भावनगर, गुजरात से विनू भाई मंगलवार सुबह अपनी पत्नी के साथ बैसरन आए थे. 62-वर्षीय भाई दाहिने हाथ में गोली लगने से बच गए.

जीएमसी, अनंतनाग में इलाज करवाते हुए विनू ने कहा, “जब हमने लोगों को भागते और चिल्लाते हुए सुना, तो हम भी भागने लगे. मुझे नहीं पता कि मैं कहां जा रहा था. एक पल के लिए, मैंने अपनी पत्नी को खो दिया, लेकिन खुशकिस्मती से वह मुझे पार्क के बाहर मिल गईं.”

उन्होंने रुंधते गले से कहा, “मैं फिर कभी कश्मीर नहीं आऊंगा.”

(अनन्या भारद्वाज के इनपुट्स के साथ)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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