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Thursday, 19 December, 2024
होमदेशजस्टिस डीएन पटेल TDSAT के नए अध्यक्ष, जामिया मामले में सुनवाई के दौरान इनके कोर्टरूम में लगे थे ‘शर्म करो’ के नारे

जस्टिस डीएन पटेल TDSAT के नए अध्यक्ष, जामिया मामले में सुनवाई के दौरान इनके कोर्टरूम में लगे थे ‘शर्म करो’ के नारे

दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को सोमवार को टेलीकॉम डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष बनाया गया है. उन्हें रिटायर्ड होने से आठ दिन पहले ही नई नियुक्ति मिल गई थी. वह शुक्रवार को रिटायर हुए.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज को रिटायरमेंट के बाद नई नौकरी का मिलना नई बात नहीं है. लेकिन, दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को रिटायरमेंट से पहले ही नई नियुक्ति मिल गई. इसके बाद, इस तरह की होने वाली नियुक्तियों पर एक बार फिर बहस शुरू गई है.

दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल को टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट एंड अपीलेंट ट्रिब्यूनल (TDSAT) का अध्यक्ष बनाया गया है. जस्टिस पटेल शुक्रवार को सेवानिवृत हुए हैं.

केंद्र सरकार की ओर से उनकी नियुक्ति का नोटिफिकेशन उनके रिटायरमेंट की तारीख से आठ दिन पहले यानी 4 मार्च को ही जारी कर दिया गया. दिप्रिंट ने यह नोटिफिकेशन देखा है. जस्टिस पटेल 12 मार्च को सेवानिवृत हुए हैं.

नोटिफिकेशन के मुताबिक, उन्हें हर महीने 2,50,000 रुपए के वेतन पर TDSAT का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. वह इस पद पर चार सालों तक या 70 साल की उम्र तक या नए आदेश आने तक बने रहेंगे.

फिलहाल, जस्टिस पटेल 62 साल के हैं. इस हिसाब से वह इस पद पर चार से आठ सालों तक बने रहेंगे, जब तक कि सरकार आदेश देकर उनके कार्यकाल को कम नहीं करती है.

जस्टिस पटेल गुजरात से हैं. उन्होंने जुलाई 1984 में गुजरात हाईकोर्ट में वकालत करने से अपने करियर की शुरुआत की थी. मार्च 2004 में उन्हें पदोन्नति देकर बेंच में शामिल किया गया. जनवरी 2006 में उन्हें गुजरात हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाया गया. उन्हें फरवरी, 2009 में झारखंड हाईकोर्ट स्थानांतरित किया गया. यहां पर उन्हें कई बार कम अवधि के लिए चीफ जस्टिस का प्रभार दिया गया.

उन्हें साल 2019 में चीफ जस्टिस के तौर पर दिल्ली हाईकोर्ट स्थानांतरित किया गया.

दिल्ली हाईकोर्ट में ढ़ाई साल तक जज रहने के दौरान, उन्होंने कई विवादित मामलों की सुनवाई की. उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने दिसंबर 2019 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुई हिंसा के मामले में छात्रों को अंतरिम सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद वकीलों ने ‘शर्म करो-शर्म करो’ के नारे लगाए थे.


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जामिया हिंसा की सुनवाई

19 दिसंबर, 2019 को दिल्ली हाईकोर्ट के कोर्ट रूम नंबर एक में ‘शर्म करो, शर्म करो’ के नारे लगे जब दो बजकर 50 मिनट पर चीफ जस्टिस पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर कोर्ट रूम छोड़कर बाहर निकल गए.

दो जजों वाली बेंच ने याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था, जिसके बाद यह घटना हुई. याचिकाकर्ताओं ने नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान जामिया में हुई हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की थी.

बेंच ने याचिकाकर्ता के बहस को एक घंटे से ज़्यादा देर तक सुना. उन्होंने अंतरिम राहत की मांग की थी. इसमें CCTV फुटेज को सुरक्षित रखना, घायल छात्र-छात्राओं को मुफ्त चिकित्सा देने के लिए, संबंधित अथॉरिटी को निर्देश देना और इन छात्रों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से रोक लगाने की मांग शामिल थी.

हालांकि, याचिकाकर्ता की दलील सुनने के बाद बेंच ने आंतरिक राहत की मांग को खारिज कर दिया और मामले की सुनवाई की अगली तारीख 4 मार्च, 2020 तक के लिए बढ़ा दिया. कोर्ट रूम में शोरगुल के बाद कोर्ट ने इसे घटाकर 4 फरवरी, 2020 किया.

फैसले के बाद, वहां पर अभूतपूर्व स्थिति बन गई थी. आदेश आने के बाद, कोर्ट रूम में मौजूद वकीलों और दूसरे लोगों ने ‘शर्म करो, शर्म करो’ के नारे लगाए. इस दौरान से कई वकीलों के आंखों मं आंसू थे.

यह मामला अब भी विचाराधीन है. इस मामले में आखिरी सुनवाई इस साल 28 फरवरी को हुई. इस घटना के तुरंत बाद जस्टिस पटेल ने इस कथित अपमानजक घटना को एक कमिटी के पास भेज दिया था. हालांकि, अबतक इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है.


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कपिल मिश्रा का मामला

सीएए विरोध से जुड़े एक अन्य मामले में, 26 फरवरी, 2020 को दिल्ली हाईकोर्ट के उस समय के जज एस मुरलीधर ने कथित हेट स्पीच मामले में बीजेपी नेताओं, परवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर नहीं दर्ज करने को लेकर दिल्ली पुलिस को लताड़ लगाई थी.

उत्तरी दिल्ली के जाफराबाद में सीएए के समर्थन में निकाली गई एक रैली में मिश्रा ने दिल्ली पुलिस को सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों हटाने के लिए ‘तीन दिन’ का समय दिया था. आरोप है कि उनके इस बयान के बाद दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए. दंगे में 40 से ज्यादा लोग मारे गए थे.

जस्टिस मुरलीधर ने अगले दिन अथॉरिटी को एफआईआर दर्ज करने को लेकर लिए गए निर्णय से उन्हें अवगत कराने का आदेश दिया था. मामले की अगली सुनवाई 27 फरवरी को दो बजे होनी थी. लेकिन, इसके कुछ घंटों के भीतर ही उनका ट्रांसफर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में करने का नोटिस जारी हो गया.

27 फरवरी को जब इस मामले की सुनवाई कोर्ट में शुरू हुई, तो पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली पुलिस को हेट स्पीच मामले में कानूनी प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक महीने का वक्त दिया.

इन बीजेपी नेताओं पर एफआईआर दर्ज करने की याचिका का मामला अब भी लंबित है. दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से इस याचिका को जल्द से जल्द निपटाने का अनुरोध किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामले को तीन महीने में निपटा दिया जाए तो बेहतर होगा.

अडानी, अल्पन बंदोपाध्याय, राकेश अस्थाना

जस्टिस पटेल ने अपने कार्यकाल में कुछ और चर्चित मामलों की सुनवाई की.

जस्टिस पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने पिछले साल अक्टूबर में उस पीआईएल को खारिज कर दिया जिसमें राकेश अस्थाना को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनाए जाने को चुनौती दी गई थी.

पिछले साल दिसंबर में रोहिणी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में कम क्षमता वाले बम विस्फोट के बाद जस्टिस पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कोर्ट में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आदेश जारी किया.

जस्टिस डी एन पटेल की अध्यक्षता वाली पीठ ने अडाणी टोटल की तरफ से दायर याचिका पर जारी अपने अंतरिम आदेश में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (PNGRB) की तरफ से जारी किए गए नोटिस पर रोक लगा दी थी. PNGRB ने अहमदाबाद शहर, दस्करोई और खुर्जा में अडाणी टोटल गैस लिमिटेड के शहरी गैस वितरण को साझा करियर घोषित करने के मामले में यह नोटिस जारी किया था.

रिटायर्ड होने से एक दिन पहले जस्टिस पटेल की अध्यक्षता वाली एक अन्य बेंच ने पश्चिम बंगाल के पूर्व चीफ सेक्रेटरी अल्पन बंदोपाध्याय की याचिका को खारिज कर दिया. उन्होंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल (CAT) में दायर याचिका को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने के फैसले के खिलाफ कोर्ट में चुनौती दी थी. बंदोपाध्याय, केन्द्र सरकार और पश्चिम बंगाल की सरकार के बीच चल रहे तनातनी में फंस गए थे. पिछले साल मई में मोदी सरकार की ओर से उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी जिसके खिलाफ उन्होंने (CAT) में अपील की थी.


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‘कुछ जज सरकार समर्थित हैं, इसमें कुछ भी गलत नहीं है’

शुक्रवार को उन्होंने अपने विदाई भाषण में कहा कि कुछ ‘मजदूर समर्थक या रेवेन्यू समर्थक, सरकार समर्थक या सरकार विरोधी होते हैं, अलग-अलग नजरियों वाला जज होने में कोई बुराई नहीं है

लाइव लॉ ने जस्टिस पटेल के हवाले से लिखा है, ‘कुछ जज मजदूर समर्थक, कुछ रेवेन्यू समर्थक, या विरोधी होते हैं, और आपका कुछ और नजरिया हो सकता है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है. लोग आलोचना करते हैं. इसमें कुछ भी गलत नहीं है, अगर आप मजदूर समर्थक, नियोक्ता समर्थक, किरायेदार समर्थक, सरकार के पक्ष में या इसके विपक्ष में हैं. इस तरह के फैसलों से हमेशा कानून विकसित होता है.’

ऐसी नियुक्ति पहली बार नहीं हुई है

पटेल की नियुक्ति पहला मामला नहीं है. जज रिटायरमेंट के बाद दूसरी नौकरी या असाइनमेंट लेते रहे हैं.

पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई तब सुर्खियों में आ गए थे जब रिटायरमेंट के चार महीने के बाद ही, मार्च 2020 में उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया.

एक आंकड़े के मुताबिक 1999 के बाद रिटायर होने वाले सुप्रीम कोर्ट के 103 जजों में से कम से कम 71 फीसदी (103 में से 73) ने बाद में किसी न किसी तरह का काम किया. हालांकि, आमतौर पर रिटायरमेंट के बाद इनकी नियुक्ति हुई है. (इनमें जस्टिस एम श्रीनिवासन का 63 साल की उम्र में फरवरी, 2020 को काम करने के दौरान ही निधन हो गया था.)

TDSAT में टेलीकम्यूनिकेशन सेक्टर की बड़ी हार-जीत वाले मामले की सुनवाई होती है. जस्टिस पटेल से पहले सुप्रीम को पूर्व जज एसके सिंह इस ट्रिब्यूनल के प्रमुख थे. उन्हें अप्रैल 2017 में इस पद पर नियुक्त किया गया था.

पहले इस पद पर तीन साल के लिए नियुक्ति होती थी. 4 अप्रैल, 2021 को ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स (रेशनलाइजेशन एंड कंडीशन ऑफ सर्विस) अध्यादेश के पारित होने के बाद, सभी ट्रिब्यूनल के प्रमुख का कार्यकाल चार साल हो गया है. इसके बाद, जस्टिस सिंह का कार्यकाल अपने-आप एक साल बढ़कर 20 अप्रैल, 2021 तक हो गया.

सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके कार्यकाल को कई बार बढ़ाया था, ताकि पुराने मामले को निपटाया जा सके.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)



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