नई दिल्ली: 2020 के पूर्वी दिल्ली दंगों के “साजिश” मामले में अपराधी बनाए गए कई आरोपियों की ज़मानत याचिकाओं पर पहले ही विस्तार से सुनवाई करने के बाद, दिल्ली हाई कोर्ट अगले साल जनवरी से उन पर दोबारा सुनवाई करने के लिए तैयार है. यह आवेदनों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश के तबादले के बाद आया है.
आवेदनों पर सुनवाई करने वाली खंडपीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल को मणिपुर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत किया गया है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 6 जुलाई को उनके नाम की सिफारिश की थी और पिछले महीने केंद्र सरकार ने उनकी नियुक्ति को अधिसूचित किया था, जिसके बाद उन्होंने शपथ ली.
पिछले साल जस्टिस मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की पीठ ने इन ज़मानत अर्जियों पर विस्तार से सुनवाई की थी और कम से कम पांच मामलों में आदेश भी सुरक्षित रख लिए थे. जिन मामलों में पीठ ने आदेश सुरक्षित रखा था उनमें गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी, शिफा उर रहमान और मोहम्मद सलीम खान द्वारा दायर ज़मानत याचिकाएं शामिल हैं. इनमें से पहला आदेश इस साल जनवरी में सुरक्षित रखा गया था, दूसरा फरवरी में और तीसरा मार्च में — रिकॉर्ड बताते हैं कि 18 मई के बाद, पीठ कम से कम चार सुनवाई की तारीखों पर मामले की सुनवाई के लिए इकट्ठा नहीं हुई.
शरजील इमाम, शादाब अहमद और अतहर खान द्वारा दायर ज़मानत याचिकाएं और एक अन्य आरोपी इशरत जहां की ज़मानत रद्द करने की दिल्ली पुलिस की अपील को भी न्यायमूर्ति मृदुल की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था.
गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर, शिफा उर रहमान और मोहम्मद सलीम खान जाने-माने कार्यकर्ता हैं. शरजील इमाम जामिया मिल्लिया इस्लामिया का छात्र नेता था.
इन सभी पर एफआईआर नंबर 59/2020, के तहत मामला 6 मार्च 2020 को दायर किया गया. इस एफआईआर में दावा किया गया कि पूर्वी दिल्ली के दंगे “जेएनयू छात्र उमर खालिद और उसके सहयोगियों द्वारा रची गई” एक पूर्व नियोजित साजिश थी. जस्टिस सुरेश कुमार कैत और शलिंदर कौर की पीठ अपीलों पर सुनवाई करेगी.
वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने कहा कि “ज़मानत मामले की सुनवाई में देरी और इस तरह की देरी अभूतपूर्व है” और “इसे तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिए कुछ करने की ज़रूरत है”.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि ज़मानत की सुनवाई में अदालत का बहुत अधिक समय नहीं लगना चाहिए क्योंकि आप अंतिम चरण में किसी मामले का फैसला उसकी योग्यता के आधार पर नहीं कर रहे हैं. आप बहुत प्रारंभिक चरण में देख रहे हैं. आमतौर पर ज़मानत की सुनवाई में इतना समय नहीं लगना चाहिए.”
जबकि जॉन ने बताया कि ऐसे मामलों में बड़े पैमाने पर रिकॉर्ड दाखिल किए जाते हैं, “फिर भी, किसी भी ज़मानत का मामला अदालत के समक्ष डेढ़ साल से लंबित हो – जनवरी में सुनवाई के समय और आदेश के समय तक पारित हो जाने में, किसी न किसी तरह, लगभग दो साल लगेंगे – मुझे लगता है कि यह इस देश में हमारे पास मौजूद संपूर्ण ज़मानत न्यायशास्त्र का मज़ाक बनाता है.”
उन्होंने कहा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में इतना लंबा समय नहीं लगना चाहिए. उन्होंने पूछा, “प्रत्येक वादी को यह बताने का अधिकार है कि उसके मामले की सुनवाई हो चुकी है और आदेश पारित किया गया है, चाहे वह आदेश किसी भी तरह से हो. मैं यह नहीं कह रही हूं कि आदेश वादी के पक्ष में जाना चाहिए, लेकिन आदेश आना चाहिए ताकि वह अगले कदम के बारे में सोच सके. अगर हाई कोर्ट में ही दो साल लगने वाले हैं, तो इस सबका मतलब क्या है?”
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आरक्षित आदेश
मामले के आरोपियों में से एक फातिमा को दिल्ली दंगों के दो महीने बाद अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गया था. जस्टिस मृदुल और जस्टिस भटनागर की पीठ ने इस साल 13 फरवरी को उनके आवेदन पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था – मार्च 2022 में उन्हें ज़मानत देने से दिल्ली की एक अदालत के इनकार के खिलाफ अपील दायर करने के कम से कम नौ महीने बाद.
मामला लंबित रहने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मई में एक आदेश पारित कर जून 2021 में पिंजरा तोड़ कार्यकर्ताओं देवांगना कलिता और नताशा नरवाल और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को ज़मानत देने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली पुलिस की याचिका को खारिज कर दिया.
तीनों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) मामला दिल्ली दंगों के मामले के पीछे एक “बड़ी साजिश” से संबंधित है।
दिल्ली HC के आदेश के खिलाफ अपनी अपील में दिल्ली पुलिस ने विशेष रूप से UAPA पर हाई कोर्ट की टिप्पणियों पर आपत्ति जताई. कोर्ट ने यह कहते हुए यूएपीए के प्रावधानों को कम किया था कि इसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आने वाले आपराधिक कृत्यों से निपटने के लिए लागू नहीं किया जाना चाहिए.
18 जून 2021 को, शीर्ष अदालत ने यूएपीए पर हाई कोर्ट की राय की सीमा तक उसके आदेश पर रोक लगा दी. उस हिस्से को निष्क्रिय बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की योग्यता पर टिप्पणियों को “एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा और किसी भी अदालत के समक्ष किसी भी पक्ष द्वारा इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है”.
हालांकि, इस साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसकी टिप्पणी कि हाई कोर्ट के आदेश को एक मिसाल के रूप में उद्धृत नहीं किया जा सकता है, अन्य सह-अभियुक्तों द्वारा समानता के आधार पर ज़मानत मांगने के रास्ते में नहीं आएगा.
इसने फातिमा के वकीलों को कलिता और नरवाल के साथ समानता के आधार पर ज़मानत की मांग करते हुए दिल्ली HC में एक आवेदन दायर करने के लिए प्रेरित किया, जबकि एचसी ने 18 मई को इस आवेदन पर नोटिस जारी कर सरकार से जवाब मांगा था, मामले से परिचित वकीलों ने दिप्रिंट को बताया कि उसके बाद मामले की सुनवाई नहीं की गई.
आवेदन अब अगले साल 23 जनवरी को लिया जाएगा.
इसी तरह न्यायमूर्ति मृदुल और न्यायमूर्ति भटनागर की हाई कोर्ट की पीठ ने इस साल 5 जनवरी को अब्दुल खालिद सैफी द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. कलिता और नरवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के मई के आदेश के बाद, उनके वकीलों ने समानता की मांग करते हुए फिर से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हालांकि, 18 मई को कोर्ट द्वारा इस आवेदन पर नोटिस जारी करने के बाद मामले पर सुनवाई नहीं हुई.
सैफी के मामले की सुनवाई अब अगले साल 18 जनवरी को होगी.
इसी तरह मीरान हैदर की ज़मानत अर्ज़ी पर आदेश 6 मार्च को सुरक्षित रखा गया था और अब 24 जनवरी 2024 को फिर से सुनवाई की जाएगी, जबकि शिफा उर रहमान और मोहम्मद सलीम खान की अर्जी पर इस साल 28 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा गया था.
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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