नई दिल्ली : जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) ने पिछले दो सालों से जेएनयू स्टूडेंट यूनियन (जेएनयूएसयू) को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है. इस बीच मंगलवार को उन्होंने इस साल के जेएनयूएसयू को नोटिस भेजकर ऑफ़िस ख़ाली करने को कहा है.
छात्रों की मानें तो जेएनयू के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसी चुनी गई यूनियन के साथ ऐसा बर्ताव हो रहा है.
यूनिवर्सिटी प्रशासन और हाल में चुने गए छात्र संघ के बीच लगातार चल रहे विवाद में ये नया मोड़ सामने आया है. विवाद सितंबर महीने में हुए जेएनयूएसयू के चुनाव के बाद शुरू हुआ था. आलम ये था कि नतीजों की घोषणा के लिए दिल्ली हाई कोर्ट को फैसला देना पड़ा. नतीजों की घोषणा के बाद से यूनिवर्सिटी द्वारा आधिकारिक तौर पर जेएनयूएसयू को मान्यता नहीं दी गई है.
डीन ऑफ़ स्टूडेंट, अशोक कदम द्वारा छात्रों को भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि 2018-19 और 2019-20 के स्टूडेंट यूनियन को यूनिवर्सिटी द्वारा मान्यता नहीं दी गई है. इसी वजह से यूनिवर्सिटी प्रशासन चाहता है कि जेएनयूएसयू कैंपस के ऑफ़िस को खाली कर दे ताकि ‘संपत्ति का ग़लत इस्तेमाल’ न हो.
यूनियन को मंगलवार को भेजे गए नोटिस में लिखा है, ‘संपत्ति को ग़लत इस्तेमाल से बचाने के लिए इस मामले से जुड़े यूनिवर्सिटी के अधिकारी द्वारा ये फ़ैसला लिया गया है कि रूम (जेएनयूएसयू ऑफिस) को तुरंत ताला लगा दिया जाना चाहिए. छात्र संघ को मान्यता दिए जाने के बाद रूम वापस उन्हें सौंप दिया जाएगा.’
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नोटिस में लिखा है कि पिछले साल के यूनियन को इसलिए मान्यता नहीं दी गई थी क्योंकि इसने लिंगदोह की सिफारिशों का उल्लंघन किया था और वो मामला अभी भी न्यायालय में है.
वर्तमान यूनियन को बुधवार तक ऑफ़िस ख़ाली करने को कहा गया है, हालांकि यूनियन ने इसे छात्रों की मुहिम पर हमला बताया है. वो इसके ख़िलाफ़ बुधवार को ही एक धरने का आयोजन कर रहे हैं और ‘डीन ऑफ़ स्टूडेंट के ख़त को सार्वजनिक तौर पर जलाए जाने’ का भी फ़ैसला लिया गया है.
जेएनयूएसयू के वर्तमान अध्यक्ष आयशी घोष ने इसे ‘अलोकतांत्रिक’ और ‘छात्रों की आवाज़ को दबाने का प्रयास’ करार दिया. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘ख़ुद दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि छात्र संघ चुनाव के नतीजे सही हैं और इनकी घोषणा की जा सकती है.’
उन्होंने ये भी कहा कि यूनिवर्सिटी प्रशासन हाई कोर्ट की भी सुनने के तैयार नहीं है और उल्टे छात्र संघ की आवाज़ दबाने की फिराक में है. उनका कहना है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ऐसा इसलिए करना चाहता है क्योंकि जेएनयूएसयू छात्रों के मुद्दों पर बात करता है.
आयशी ने कहा, ‘वो नहीं चाहते हैं कि हम हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी ‘हेफा’ और धीरे-धीरे निजीकरण की तरफ बढ़ रहे जेएनयू जैसे मुद्दों पर बात करें.’ वहीं, जेएनयूएसयू द्वारा जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि जो नोटिस जारी किया गया है उसमें तथ्यों के नाम पर झूठ फैलाया जा रहा है.
जेएनयूएसयू ने अपने बयान में कहा, ‘नोटिस में कहा जा रहा है कि पिछले और वर्तमान यूनियन को नोटिफाई नहीं किया गया और इन्हें मान्यता नहीं दी गई है, जबकि दिल्ली हाई कोर्ट पहले ही यूनियन को हरी झंडी दिखा चुका है.’ छात्रों का ये आरोप भी है कि लोकतांत्रिक तौर पर चुने गए जेएनयूएसयू को हाल ही में हुई अकादमिक काउंसिग की बैठक में भी नहीं बुलाया गया था.
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जेएनयूएसयू के पिछले अध्यक्ष एन साई बालाजी ने कहा, ‘अगर यूनियन ग़ैरकानूनी होता तो दिल्ली हाई कोर्ट इसे मान्यता न दी होती. अगर हम इस तथ्य पर नज़र डालें कि हाई कोर्ट ने जेएनयू को इस साल के नतीजे घोषित करने के लिए हरी झंडी दी जिससे की नतीजों पर मुहर लगी तो यूनिवर्सिटी जो तर्क दे रही है वो अपने आप ख़ारिज हो जाता है. वो लिंगदोह कमिटी की सिफारिशें नहीं मानने का हवाला देकर यूनियन को मान्यता देने से इंकार नहीं कर सकते.’
लिंगदोह कमिटी के नियमों के उल्लंघन पर जानकारी देते हुए कैंपस के वर्तमान जनरल सेक्रेटरी सतीष यादव ने कहा कि जेएनयू प्रशासन ये तक नहीं बता पा रहा है कि कमिटी के किन नियमों का उल्लंघन हुआ है? ये नोटिस सरासर ग़ैरकानूनी है.