नई दिल्ली : जेएनयू के प्रेसिडेंशियल डिबेट में एक भगवाधारी छात्र मंच पर चढ़ता है और एकदम ऊंचा चीख-चीख कर नारे लगाता है, ‘इस मंच से मैं बोलता हूं…जय श्रीराम! जय-जय श्रीराम! भारत माता की जय! वंदे मातरम! जय भवानी-जय शिवाजी! मित्रों, मेरा नारा है…जय श्रीराम, जय भीम, जय कलाम!’ बहस शुरू होती उसके पहले ही इस वाकये ने सबको चौका दिया.
दरअसल, सबको पता था कि अध्यक्ष पद पर कुल पांच उम्मीदवार पार्टी सिंबल पर अपना दावा पेश कर रहे हैं. लेकिन देशभर में मशहूर इस बहस को देखने पहुंचे लोगों को अचानक से एक छठा उम्मीदवार भी दिखा. ये उम्मीदवार कोई और नहीं बल्कि कैंपस के ‘योगी आदित्यनाथ’ के नाम से मशहूर छात्र राघवेंद्र मिश्रा थे. उन्होंने ही अपने भाषण की शुरुआत इन नारों के साथ की.
इस दौरान उन्होंने बाल ठाकरे, अशोक सिंघल, सुषमा स्वराज, अटल बिहारी वाजपेयी और अरुण जेटली जैसे नेताओं को नमन करते हुए ये भी कहा, ‘अब मौका आ गया है कि ये कैंपस एक हिंदू लीडर दे मित्रों!’ हैरत की बात ये थी कि राघवेंद्र की उम्मीदवारी को ख़ारिज कर दिया गया था. लेकिन चुनाव लड़ने का जुनून ऐसा था कि वो इसके ख़िलाफ़ हाई कोर्ट से आदेश लेकर आए. अपनी उम्मीदवारी ख़ारिज किए जाने के ख़िलाफ़ लाए गए हाई कोर्ट के आदेश को मंच से लहराते हुए उन्होंने कहा, ‘अगर आंबेडकर नहीं होते तो वो इस मंच पर नहीं होते.’
राघवेंद्र ने दक्षिणपंथी पार्टियों और संगठनों से सवाल किया, ‘मैं हेडगेवार जी से लेकर आरएसएस से लेकर बीजेपी से लेकर यहां मौजूद आरएसएस के सम्मानित पदाधिकारियों और जितने भी हमारे राइट विंग के शुभचिंतक हैं उनसे पूछना चाहता हूं राघवेंद्र मिश्रा में क्या कमी थी मित्रों?’ दरअसल, उन्होंने ये सवाल इस वजह से किया क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से टिकट नहीं मिला.
एबीवीपी ने मनीष जांगिड़ को अपना अध्यक्ष पद उम्मीदवार बनाया है, जबकि राघवेंद्र स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं. राघवेंद्र ने ये आरोप भी लगाया कि कैंपस की सेंट्रल लाइब्रेरी में मजहबी लोगों द्वारा नमाज पढ़ा जाता है. उन्होंने ने कहा, ‘आज तक इसके ख़िलाफ़ किसी ने आवाज़ नहीं उठाई. लेफ्ट और बापसा से तो मैं आशा नहीं करता मित्रों लेकिन एबीवीपी ने भी इसके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाई.’
जेएनयू में हिंदू लीडर की मांग कर रहे राघवेंद्र का सवाल था कि क्या जेएनयू वाले लाइब्रेरी में नमाज़ को बढ़ावा देकर इसे एक मजहबी कैंपस बनाना चाहते हैं. आरोप लगाते हुए उन्होंने ये भी कहा, ‘कैंपस में अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल ज़िंदा हैं जैसे नारे लगते हैं. मित्रों आपको चयन करना होगा कि आपको कसाब चाहिए या कलाम चाहिए.’ सिलसिलेवार आरोपों में उन्होंने कैंपस में तिरंगे के अपमान से इसे जलाए जाने तक जैसी बातें कहीं.
ख़ुद को हिंदू लीडर बताते हुए उन्होंने अपने नाम पर वोट मांगते हुए कहा, ‘कैंपस में जब भगवा का अपमान होता है, माता दुर्गा को जब ‘वेश्या’ बुलाया जाता है, मोदी जी को ग़लत तरीके से परिभाषित किया जाता है तो इस कैंपस में सिर्फ एक व्यक्ति आवाज़ उठाता है जिसका नाम है राघवेंद्र मिश्रा. कैंपस में राइट विंग का मतलब है राघवेंद्र मिश्रा.’
अन्य छात्रों के भाषण में 370 हटाए जाने जैसे राष्ट्रीय मुद्दे से लेकर कैंपस के मुद्दे शामिल थे. एबीवीपी के अलावा बाकी सबने 370 हटाए जाने की निंदा की. बापसा के जीतेंद्र सुना ने तो कश्मीर में आज़ादी की मांग कर रहे लोगों के लिए सम्मान भी प्रकट किया. थोड़ी उठा-पटक के बीच बहस बिना किसी विवाद के समाप्त हुई.
अब देखने वाली बात होगी कि हाई कोर्ट से आदेश लेकर आने वाले और कैंपस में हिंदू लीडर की मांग करने वाले राघवेंद्र कितने वोट पाते हैं. छह तारीख को जेएनयू छात्रसंध की वोटिंग होगी और नतीजे रविवार तक आयेंगे.