रांची: झारखंड सरकार ने असम एवं अन्य राज्यों में चाय बागान से जुड़े आदिवासियों की बदहाली का अध्ययन करने के लिए एक समिति के गठन को सोमवार को मंजूरी दी.
सोरेन की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला लिया गया.
दो सप्ताह पहले, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा को पत्र लिखकर दावा किया गया था कि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद चाय बागान से जुड़े आदिवासियों को हाशिए पर रखा जा रहा है.
सोरेन ने कहा, ‘‘झारखंड के आदिवासियों को अंग्रेज़ों द्वारा असम और अंडमान एवं निकोबार जैसे अन्य स्थानों पर ले जाया गया था. उनकी संख्या लगभग 15 से 20 लाख है और वे अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. आदिवासी असम के चाय बागानों में काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा नहीं दिया गया है और उनके लिए बनाई गई कल्याणकारी योजनाओं से उन्हें वंचित रखा गया है.’’
बैठक के बाद सोरेन ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमारी सरकार सभी मूल निवासियों को झारखंड लौटने के लिए आमंत्रित करती है. हम अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री के अधीन इस समस्या का अध्ययन करने के लिए एक समिति बनाएंगे.’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस समिति में सर्वदलीय प्रतिनिधित्व होगा. वे उन स्थानों पर जाएंगे, आवास, नौकरी, अधिकार आदि से संबंधित उनकी समस्याओं का अध्ययन करेंगे. समिति की सिफारिशों के आधार पर राज्य कल्याणकारी उपाय लागू करेगा.’’
राज्य सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि असम में चाय बागान से जुड़े झारखंड मूल के आदिवासियों को अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा प्राप्त है और उन्हें आदिवासियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा गया है.
25 सितंबर को शर्मा को लिखे अपने पत्र में सोरेन ने समुदाय की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की और उन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दिए जाने की वकालत की.
झारखंड में भाजपा के चुनाव सह-प्रभारी शर्मा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) सरकार पर ‘‘भ्रष्टाचार, घुसपैठ और गिरती कानून-व्यवस्था सहित अन्य मुद्दों’’ को लेकर हमला किया है.
सोरेन ने कहा, ‘‘मैं असम में चाय आदिवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों से अच्छी तरह वाकिफ हूं, खासकर इसलिए क्योंकि उनमें से कई झारखंड के मूल निवासी हैं, जिनमें संथाली, कुरुक, मुंडा और उरांव शामिल हैं, जिनके पूर्वज औपनिवेशिक काल के दौरान चाय बागानों में काम करने के लिए पलायन कर गए थे.’’
सोरेन ने कहा कि झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में चाय बागान से जुड़े आदिवासियों के अधिकतर जातीय समूहों को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है, लेकिन असम में उन्हें अभी भी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.