नई दिल्ली: उन लोगों के लिए भी जेल की सज़ा जो “गैरकानूनी संगठन” के सदस्य नहीं हैं, लेकिन “योगदान देते हैं/प्राप्त करते हैं/कोई योगदान या सहायता मांगते हैं” या सदस्यों को “पनाह देते हैं” — यही महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा विधेयक में मांग की गई है, जिसे राज्य सरकार ने गुरुवार को नक्सलियों और उनके समर्थकों के खिलाफ पेश किया.
इसके अलावा, जो लोग ऐसे समूहों की “बैठकों को बढ़ावा देते या बढ़ावा देने में सहायता करते” पाए जाएंगे, उन्हें भी दंडित किया जाएगा.
शहरी क्षेत्रों में नक्सली संगठनों के माध्यम से “नक्सलवाद के खतरे” को उजागर करते हुए पेश किए गए इस विधेयक में ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए सात साल तक की जेल की सज़ा और 5 लाख रुपये का जुर्माना प्रस्तावित किया गया है जो “ऐसे गैरकानूनी संगठन की कोई भी गैरकानूनी गतिविधि करता हो या करने के लिए उकसाता है या करने की योजना बनाता है”.
किसी संगठन को राज्य द्वारा “गैरकानूनी” घोषित किया जा सकता है. फैसले की समीक्षा एक सलाहकार बोर्ड द्वारा की जा सकती है जिसे राज्य सरकार द्वारा भी स्थापित किया जाएगा. विधेयक में कहा गया है कि “नक्सलियों” से जब्त किए गए साहित्य में “संवैधानिक जनादेश के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की अपनी विचारधारा का प्रचार करने के लिए माओवादी नेटवर्क के सुरक्षित घर और शहरी ठिकाने” दिखाए गए हैं.
सलाहकार निकाय में तीन व्यक्ति शामिल होंगे “जो हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के योग्य हैं या रहे हैं”.
दिप्रिंट इस पर नज़र डाल रहा है कि यह नया विधेयक क्या कहता है और इसमें क्या दंड निर्दिष्ट किए गए हैं. छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे अन्य राज्यों ने पहले ही गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम के लिए अपनी-अपनी सरकारों के लिए सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम लागू किए हैं और 48 ऐसे “गैरकानूनी संगठनों” पर प्रतिबंध लगा दिया है.
सीपीआई (एम) के राज्य सचिव डॉ. उदय नारकर ने मीडिया को बताया कि नए विधेयक के साथ, भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने नागरिकों के विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार को “कुचल दिया” है.
विपक्ष ने भी इस विधेयक को “कठोर” करार दिया है और दावा किया है कि इसके माध्यम से सत्तारूढ़ सरकार राज्य विधानसभा चुनावों से पहले विपक्ष को दबाने के लिए “शहरी नक्सली हौवा” खड़ा कर रही है.
संपत्ति जब्त करना और मदद करने पर दंड
अगर, यह विधेयक अधिनियम बन जाता है, तो जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त जैसे अधिकारियों को (गैरकानूनी) गतिविधियों के लिए उपयोग किए जाने वाले किसी भी स्थान को अधिसूचित करने और “कब्ज़ा लेने” की अनुमति होगी, जिसमें धन, प्रतिभूतियां और अन्य परिसंपत्तियों सहित चल संपत्ति शामिल हो सकती है.
विधेयक में कहा गया है, “जहां सरकार ऐसी जांच के बाद संतुष्ट हो जाती है, जैसा कि वह उचित समझे, कि किसी भी धन, प्रतिभूति या अन्य परिसंपत्तियों का उपयोग किसी गैरकानूनी संगठन के उद्देश्य के लिए किया जा रहा है या किया जाना है, तो सरकार…ऐसे धन, प्रतिभूतियों या अन्य परिसंपत्तियों को… सरकार के लिए जब्त घोषित कर सकती है.”
अगर यह पारित हो जाता है, तो इस अधिनियम के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-ज़मानती होंगे और इनकी जांच उप-निरीक्षक के पद से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं की जाएगी.
इस अधिनियम के तहत, “गैरकानूनी गतिविधि” को ऐसी गतिविधियों के रूप में परिभाषित किया जाएगा जो सार्वजनिक व्यवस्था, शांति और सौहार्द के लिए खतरा पैदा करती हैं, सार्वजनिक व्यवस्था, कानून और प्रशासन के रखरखाव में हस्तक्षेप करती हैं और किसी भी लोक सेवक पर आपराधिक बल दिखाने या हिंसा और बर्बरता के कृत्यों का प्रचार करने, स्थापित कानून और उसकी संस्थाओं की अवज्ञा को प्रोत्साहित करने या प्रचार करने और गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन या सामान इकट्ठा करने के लिए बनाई गई हैं.
इसके अलावा, बिल में कहा गया है कि “जो कोई भी गैरकानूनी संगठन का सदस्य है या किसी ऐसे संगठन की बैठकों या गतिविधियों में भाग लेता है या किसी ऐसे संगठन के उद्देश्य के लिए योगदान देता है, या कोई योगदान प्राप्त करता है या मांगता है” उसे तीन साल तक की जेल की सज़ा और 3 लाख रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा.”
जो लोग किसी भी तरह से गैरकानूनी संगठन के सदस्य नहीं हैं, लेकिन जो “ऐसे संगठन के लिए कोई योगदान या सहायता प्राप्त करता है या मांगता है या ऐसे संगठन के किसी सदस्य को शरण देता है” उन्हें दो साल तक की कैद की सज़ा दी जाएगी और 2 लाख रुपये तक का जुर्माना देना होगा.
विधेयक में उल्लेख किया गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शहरी क्षेत्रों में ऐसे संगठनों की गतिविधियों का मुकाबला करने और उन्हें धन के प्रवाह को रोकने के लिए कार्यान्वयन तंत्र के लिए समय-समय पर निर्देश जारी किए हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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