नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अडानी-हिंडनबर्ग मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि किसी के खिलाफ आरोप लगाना आसान है और याचिकाकर्ताओं को किसी भी पक्ष के खिलाफ आरोप लगाते समय कुछ जिम्मेदारी दिखाने की राय दी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे, ने यह टिप्पणी तब पारित की जब एक याचिकाकर्ता ने विशेषज्ञ समिति के सदस्यों पर सवाल उठाए.
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को विशेषज्ञ समिति के सदस्यों में से एक सोमशेखर सुंदरेसन के बारे में बताया, उन्होंने कहा कि वह सेबी बोर्ड समेत विभिन्न मंचों पर अडानी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील रहे हैं.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता की दलील पर आपत्ति जताई और टिप्पणी की कि अगर कोई इस सिद्धांत पर चलता है कि 17 साल पहले पेश हुए वकील को अब समिति में नियुक्त नहीं किया जा सकता है और इस तरह, किसी आरोपी के लिए पेश होने वाले किसी भी वकील उच्च न्यायालय का जज नहीं होना चाहिए.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि वह इन-हाउस वकील नहीं हैं, वह एक वकील थे और वह 2006 में पेश हुए थे और यह विवाद 17 साल बाद पैदा हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, लगाए जा रहे आरोपों के लिए कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिए.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि आरोप लगाना आसान है और इसमें काफी सावधानी भी बरतनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”हम किसी को चरित्र प्रमाणपत्र नहीं दे रहे हैं.”
आज जब सुनवाई शुरू हुई तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि सेबी हिंडनबर्ग रिपोर्ट से संबंधित मामलों की आगे की जांच को आगे बढ़ाने की मांग नहीं कर रहा है.
एसजी मेहता ने अदालत को बताया कि अडानी-हिंडनबर्ग मामले में 24 मामलों में से 22 मामलों की जांच पूरी हो चुकी है, शेष दो मामलों के लिए, उन्हें विदेशी नियामकों व अन्य से जानकारी की आवश्यकता है और वे उनके साथ परामर्श कर रहे हैं.
अदालत ने तब कहा कि उसने शेयर बाजार की अत्यधिक अस्थिरता के कारण इस मामले में हस्तक्षेप किया था और जानना चाहा था कि सेबी इस तरह की अस्थिरता के लिए क्या करने की योजना बना रहा है और शॉर्ट सेलिंग जैसे मामलों में निवेशकों की सुरक्षा के लिए क्या योजना बना रही है.
एसजी तुषार मेहता ने अदालत को विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों से अवगत कराया, जिनसे सेबी सैद्धांतिक रूप से सहमत है.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में कई तथ्यात्मक खुलासे हुए हैं. उन्होंने इस मामले में सेबी की भूमिका पर संदेह जताया और कहा कि 2014 में उसके पास बहुत सारी जानकारी उपलब्ध थी.
भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को राजस्व खुफिया निदेशालय द्वारा मॉरीशस को भेजे गए पर्याप्त धन के संबंध में 2014 में लिखे गए एक पत्र के बारे में सूचित किया. एसजी मेहता ने इस पर भूषण से सवाल किया और कहा कि डीआरआई ने 2017 में इसको लेकर कार्यवाही समाप्त कर दी थी.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील भूषण पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आरोप लगाना आसान है और इसमें काफी सावधानी भी बरतनी चाहिए.
एसजी तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत से इस तरह के आरोपों पर रोक लगाने का आग्रह किया.
कोर्ट ने टिप्पणी की कि सेबी एक वैधानिक संस्था है जो शेयर बाजार में धोखाधड़ी की जांच करती है. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि भारत के भीतर फैसलों को प्रभावित करने के लिए भारत के बाहर कहानियां गढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ रही है.
मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद अदालत ने मुद्दे से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर आदेश सुरक्षित रख लिया.
इससे पहले, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक स्टेटस रिपोर्ट दायर की थी जिसमें बताया गया था कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट से उत्पन्न 24 जांचों में से 22 फाइनल प्रकृति की हैं और 2 अंतरिम प्रकृति की.
यह जांच शीर्ष अदालत के 2 मार्च, 2023 के आदेश के निर्देशों के अनुपालन में की गई, सेबी ने 24 मामलों की जांच की है.
मई के मध्य में, शीर्ष अदालत ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच करने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को 3 महीने का और समय दिया, सेबी को जांच करने के लिए 14 अगस्त 2023 तक का समय दिया गया था.
2 मार्च को, शीर्ष अदालत ने पूंजी बाजार नियामक सेबी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मद्देनजर अडानी समूह द्वारा प्रतिभूति कानून के किसी भी उल्लंघन की जांच करने का निर्देश दिया, जिसके कारण अडानी समूह के बाजार मूल्य में USD140 बिलियन से अधिक का भारी नुकसान हुआ.
सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च को अडानी समूह की कंपनियों पर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट से उत्पन्न मुद्दे की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया. समिति में छह सदस्य होंगे, जिसकी अध्यक्षता शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एएम सप्रे करेंगे.
शीर्ष अदालत ने तब सेबी को 2 महीने के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था.
शीर्ष अदालत तब हिंडनबर्ग रिपोर्ट से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए नियामक तंत्र से संबंधित एक समिति का गठन भी शामिल था.
24 जनवरी की हिंडनबर्ग रिपोर्ट में समूह द्वारा स्टॉक में हेरफेरी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था.
अडानी समूह ने हिंडनबर्ग पर “अनैतिक शॉर्ट सेलर” बताकर हमला किया, जिसमें कहा गया है कि न्यूयॉर्क स्थित इकाई की रिपोर्ट “झूठ के अलावा कुछ नहीं” थी.
एक शॉर्ट-सेलर प्रतिभूति बाजार में शेयरों की कीमतों में बाद में कमी से लाभ कमाता है.
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