नई दिल्ली: हजरत निजामुद्दीन थाने से 100 मीटर दूरी पर शुक्रवार तड़के 3:30 बजे नशे में धुत एक कार चालक ने सड़क किनारे सो रहे लोगों को रौंद दिया जिसमें एक बेघर की मौत हो गई और तीन लोगों को एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया और उनकी हालत नाजुक बताई जा रही है. वहीं आरोपी गाड़ी चालक को पुलिस ने गिरफ्तार कर
14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.
डीसीपी साउथ ईस्ट चिन्मय बिस्वाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘आरोपी की पहचान 36 वर्षीय अभिषेक दत्त के रूप में हुई है जो कि जनकपुरी के पंखा रोड का रहने वाला है. उसके खिलाफ धार 304 (गैर इरादतन हत्या) और धारा 308 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास) के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया है और उसकी कार जब्त कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा दिया गया है.
पुलिस के मुताबिक हादसे के वक्त आरोपी शराब के नशे में धुत था. शुक्रवार भोर में वह हजरत निजामुद्दीन पुलिस स्टेशन से आगे बढ़ा तो तेज रफ्तार में होने से उसकी कार अनियंत्रित होकर सेंट्रल वर्ज पर सो रहे रिक्शा चलाने वाले और शादियों में काम करने वाले आरिफ, साहिब, शेख साजू और नौशाद को कुचल दिया. पुलिस ने तीनों को इलाज के लिए एम्स के ट्रॉमा सेंटर पहुंचाया जहां 26 साल के आरिफ की मौत हो गई और बाकी तीनों की हालत नाजुक बनी हुई है.
मौत की जिम्मेदारी किसकी
हजरत निजामुद्दीन दरगाह के पास फुटपाथ पर सो रहे आरिफ की मौत की जिम्मेदारी किसकी है? शुक्रवार को यह हादसा नीला गुंबद के पास हुआ था. वहां कुछ साल पहले एक आश्रय गृह बनाया गया था, जिसे 2017 में डीडीए के आर्डर पर बिना नोटिस दिए तोड़ दिया गया. इसकी वजह अमीर खुसरो पार्क में अवैध कब्जे को हटाया जाना बताई गई.
बेघर मुद्दों पर कई वर्षों से काम कर रहे इंदू प्रकाश ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया, ‘इन आश्रय गृह में महिलाएं और बच्चे रहते थे और जिसके बाद उन्हें नजदीक में बने पुरुषों के रैन बसेरे में स्थांतरित कर दिया गया था जिसकी वजह से पुरुष बेघर हो गए. और फुटपाथ पर ही अपना जीवन गुजर बसर करने लगे.
वे आगे कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड (डीयूएसआईबी) ने डीडीए से इसके लिए 25 लाख मुआवजे की मांग की लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ.’
हजरत निजामुद्दीन में हुई इस घटना की दूसरी वजह स्थानीय लोग दिल्ली पुलिस की लापरवाही को मानते हैं. यह घटना पुलिस थाने से महज 100 मीटर की दूरी पर रात साढ़े 3 बजे घटी थी. आरोपी चालक नशे में धुत था. सवाल उठता है उस समय पुलिस क्या कर रही थी. उसने कुछ किया क्यों नहीं.
अगर आंकड़ें की बात करें तो 2018 में दिल्ली में 1604 लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. इनमें कई राहगीर तो सड़क किनारे सो रहे बेघर हैं.
सुनिल अलेडिया कहते हैं, ‘पूरे दिल्ली में हर महीने लगभग 20-25 बेघरों की सड़क दुर्घटना में मौत होती है. इनमें से कुछ की खबरें अखबारों में छपती हैं बाकी कई ऐसे होते हैं जिनके बारे में किसी को कोई खबर नहीं होती.’
ट्रैफिक के कारण मच्छर आसपास नहीं आते हैं!
अमूमन देखा जाता है कि गर्मी के दिनों में पर्याप्त रैन बसेरा होने के बावजूद बेघर सड़कों के किनारे रात काटते हैं. इसकी बड़ी वजह है व्यवस्थित ढंग से रैन बसेरे के नहीं बने होने से उसके अंदर फ्रेश एयर की कमी और पर्याप्त साफ-सफाई नहीं होने से मच्छरों का आतंक. जिस कारण लोग सड़क किनारे डिवाइडर के बीच में सोने को मजबूर हैं.
कश्मीरी गेट स्थित रैन बसेरे के बाहर रात गुजारने वाले 45 वर्षीय बेघर इकबाल कहते हैं, ‘गर्मी के दिनों मुझे रैन बसेरे में नींद नहीं आती है. ट्रैफिक के कारण मच्छर आसपास नहीं आते हैं और गाड़ियों के धुंए के कारण मच्छर भाग जाते हैं.’
दिल्ली में बेघर के मुद्दे पर काम कर रहे सुनिल एलेडिया कहते हैं, ‘बेघरों के लिए सर्दियों में सरकार बेहतर इंतजाम करती है और बेघर रैन बसेरे के लिए मुस्तैद रहती है. वहीं गर्मियों में रैन बसेरे अनुकूल न होने से और विस्थापन के कारण उनके सड़कों पर सोने से गर्मियों में अनेकों दुर्घटनाएं होती हैं. सरकार को गर्मी के दिनों में भी रैन बसेरों में बेहतर संसाधन का इस्तेमाल करना चाहिए.’
परिवार पर आए संकट को कौन दूर करेगा
वैसे तो सड़क पर रहने वाले ज्यादातर बेघरों का कोई ‘अपना’ नहीं होता. न तो उनकी मौत पर कोई कंधा देने वाला और न ही उनके मरने पर कोई शोक मानाने वाला. वो लावारिस लाश की तरह कहां दफन हो जाते हैं किसी को कोई खबर नहीं लेकिन कुछ बेघर परिवार के साथ भी रहते हैं.
शुक्रवार को हुई सड़क दुर्घटना में मारे गए आरिफ मूलत: हैदराबाद के रहने वाले हैं लेकिन जबसे उन्होंने होश संभाला है वो दिल्ली की सड़कों पर ही पले बढ़े हैं. आरिफ रिक्शा चलाते थे और शादी ब्याह में काम करते हैं. सड़क के किनारे ही जीवन गुजर बसर कर रही सलमा बेगम से उन्हें प्यार हो गया. दोनों ने शादी कर ली. उनके चार बच्चे हुए. फिरदौस बानो, राशिदा खातून, मोहम्मद आसिफ ओर छह महीने का लड़का असलम. इस हादसे के बाद से आरिफ की बीवी सलमा पर अपने बच्चों का पालने का संकट आ गया है. अब सवाल है कि इनके परिवार की जिम्मेदारी कौन लेगा?
इंदू प्रकाश कहते हैं, ‘सड़क दुर्घटना में मारे जाने वाले बेघर के परिवारों को मुआवजा देना चाहिए. इसे सरकार को अपनी पहली प्राथमिकता में शामिल करना होगा. इसके अलावा पुलिस और कोर्ट की भी ये जिम्मेदारी बनती है कि अपना काम मुस्तैदी से करे और शराब पी कर गाड़ी चलाने वालों को कड़ी से कड़ी सजा मिले.’