नई दिल्ली: एक साल बाद सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्युनल (कैट) ने यूपीएससी से एक याचिका का जवाब मांगा है, जिसमें सरकार द्वारा लेटरल एंट्री के ज़रिए, नौ में से तीन प्रोफेशनल्स की संयुक्त सचिवों के स्तर पर नियुक्तियों में अनियमितताओं का आरोप लगाया गया है.
अगस्त में जारी कैट का नोटिस उस याचिका के जवाब में है, जिसे भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने दायर किया है, जिन्होंने उन चिंताओं पर प्रकाश डाला है, जो कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने यूपीएससी की भर्ती प्रक्रिया को लेकर जताईं थीं.
दिप्रिंट के हाथ लगे डीओपीटी के दस्तावेज़ों के अनुसार, यूपीएससी ने पिछले साल लेटरल एंट्री के ज़रिए निजी और सरकारी क्षेत्रों से नौ प्रोफेश्नल्स का चयन किया था, जिनमें से तीन योग्यता के मापदंडों पर पूरा नहीं उतरते.
2018 में सरकार की ओर से केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव पदों के लिए विज्ञापन जारी करके आवेदन आमंत्रित किए गए थे, जिसमें कहा गया था कि जो लोग सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयूज़), स्वायत्त निकायों, संवैधानिक संगठनों और विश्वविद्यालयों आदि में काम कर रहे हैं, उनका पद संयुक्त सचिव के ‘तुलनीय स्तर’ का होना चाहिए.
कैट को दी गई अपनी याचिका में चतुर्वेदी ने ट्रिब्युनल से कहा था कि प्रतिवादियों (केंद्र व यूपीएससी) को संयुक्त सचिव स्तर के पदों को भरने से रोका जाए और संयुक्त सचिव स्तर के पदों पर भविष्य में भी कॉन्ट्रेक्ट सिस्टम के ज़रिए भर्ती पर रोक लगाई जाए.’
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दिप्रिंट ने लिखित संदेशों, ईमेल और फोन कॉल्स के ज़रिए डीओपीटी प्रवक्ता से पूछने का प्रयास किया कि क्या विभाग ने यूपीएससी को अपनी चिंताओं से अवगत कराया है, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. ये रिपोर्ट छापने से पहले दिप्रिंट ने एक हफ्ता इंतज़ार किया.
अनियमितताएं
डीओपीटी के विचार में जिन्हें 2019 में उसके एस्टेब्लिशमेंट ऑफिस ने व्यक्त किया था. चुने गए दो अधिकारी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों में, जिन पदों पर काम कर रहे थे, उनका वेतनमान 37,400-67,000 रुपए था, जो संयुक्त सचिव स्तर के बराबर का नहीं है.
डीओपीटी ने कहा था कि एक अन्य प्रोफेशनल, जो किसी राज्य पीएसयू में जनरल मैनेजर के पद पर काम कर रहा था, के वेतनमान का पता ही नहीं है.
इसका मतलब है कि जहां सरकारी विज्ञापन के अनुसार पीएसयूज़ से भर्ती किए जाने वालों के लिए ज़रूरी था कि वो संयुक्त सचिव स्तर पर काम कर रहे हों, यूपीएससी ने दो उम्मीदवार ऐसे चुने जो डायरेक्टर लेवल पर काम कर रहे थे- जो संयुक्त सचिव से एक स्तर नीचे होता है और एक उम्मीदवार ऐसा चुना, जिसका वेतनमान पता ही नहीं था.
इस घटनाक्रम से परिचित एक सूत्र के अनुसार डीओपीटी के एस्टेब्लिशमेंट ऑफिस ने ये अवलोकन तब किया, जब वो यूपीएससी द्वारा चुने गए उम्मीदवारों का आंकलन कर रहा था.
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डीओपीटी के कागज़ात से पता चलता है, कि उसने अपने रिक्रूटमेंट रूल्स डिवीज़न से, इन अनियमितताओं का जवाब मांगा था.
चयन के लिए यूपीएससी ज़िम्मेदार
अपने जवाब में आरआर डिवीज़न ने डीओपीटी को बताया कि चुनाव प्रक्रिया की पूरी ज़िम्मेदारी यूपीएससी की थी.
उसने कहा, ‘सक्षम प्राधिकारी की मंज़ूरी के बाद, चयन प्रक्रिया शुरू करने और सफल उम्मीदवारों की घोषणा की पूरी ज़िम्मेदारी, यूपीएससी को सौंप दी गई थी.’
उसने आगे कहा, ‘इसलिए इस डिवीज़न को यूपीएससी की चयन प्रक्रिया, या उसके द्वारा सिफारिश किए गए उम्मीदवारों की योग्यता को, और सत्यापित करने की ज़रूरत नहीं थी.’
आरआर डिवीज़न ने ये भी कहा कि प्रोफेशनल्स की भर्ती का एक तरीक़ा यूपीएससी ने ये अपनाया था कि पिछले दो में से किसी एक साल में उनका वेतन कम से कम 20 लाख रुपए सालाना होना चाहिए और यूपीएससी ने इसका सत्यापन भी किया था.
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