नई दिल्ली: सरकारी कार्यक्रमों द्वारा शासित होने वाली आयरन की गोलियों और पोलियो ड्रॉप के नाम और एक्सपायरी डेट अब अंग्रेजी के अलावा हिंदी और अन्य भाषाओं में भी देखने को मिलेंगी. देश में दवाओं से संबंधित तकनीकी मामलों पर सर्वोच्च कानूनी निर्णय लेने वाली संस्था, ड्रग टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने 2 अप्रैल को हुई मीटिंग में इस मसले पर निर्णय लिया है.
दिप्रिंट को मीटिंग से मिली जानकारी के अनुसार, डीटीएबी ने सुझाव दिया है कि ‘सरकार की खरीद एजेंसियों को टेंडर प्रक्रिया में आवश्यक कदम उठाने चाहिए. सरकारी कार्यक्रमों में आयरन की गोलियों और पोलियो ड्रॉप्स के लेबल पर दवा का नाम और एक्सपायरी डेट अंग्रेजी के साथ, हिंदी में या क्षेत्रीय भाषाओं में भी होना चाहिए.’
जैसा कि मीटिंग में बताया गया कि बोर्ड ने इस मुद्दे पर सरकार को एक सलाह जारी करने का भी सुझाव दिया है. यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए है कि सरकारी योजनाओं के तहत दवाओं की मांग करने वालों को उनके बारे में सभी आवश्यक जानकारी पहुंचाई जाए. उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र में बच्चों के लिए आयरन की गोलियां या पोलियो ड्रॉप के लेबल पर दवा के नाम और एक्सपायरी डेट अंग्रेजी और मराठी या फिर दोनों में होंगे.
यह सुझाव विशेष रूप से आयरन की गोलियों और पोलियो ड्रॉप्स पर केंद्रित है. क्योंकि सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में ये दवाएं मुख्य रूप से बच्चों को दी जाती हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी जिन्होंने आदर्श आचार संहिता का हवाला देते हुए गोपनीयता रखने की बात कहते हुए बताया कि ‘अगर यह प्रयोग सफल होता है और प्रतिक्रिया उत्साहजनक होती है हैं, तो यह अन्य दवाओं पर भी लागू किया जा सकता है.’
लेबलिंग ‘अनिवार्य’ नहीं है
सरकार ने पिछले साल सरकारी योजनाओं के तहत दी जाने वाली आयरन की गोलियों और पोलियो ड्रॉप्स के लिए लेबलिंग आवश्यकताओं में संशोधन करने का प्रस्ताव दिया था. जिसमें शुरुआती चर्चा में ब्रांड नाम और एक्सपायरी की तारीख को हिंदी में बताया गया था.
मामले की जांच करने और सुझाव देने के लिए सरकार ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मानद महासचिव डॉ. आर.एन टंडन की अध्यक्षता में एक ‘उप-समिति’ का गठन किया है.
2 अप्रैल की बैठक के निर्णय के अनुसार ‘उप-समिति ने अपने सुझाव प्रस्तुत किए थे कि ओपन मार्केट में दवाओं के नाम अंग्रेजी और हिंदी दोनों में प्रिंट किया जाएगा. जबकि, किसी भी राज्य सरकार द्वारा खरीदी गई दवाओं के लिए, एजेंसियां अंग्रेजी के साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के लिए पूछने के लिए स्वतंत्र हैं.
डीटीएबी ने हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में लेबल प्राप्त करने के लिए टेंडर की प्रक्रिया की अनुमति देते हुए, इस सुझाव से इनकार कर दिया कि ओपन मार्केट में दवाओं के लिए अतिरिक्त भाषाओं को अनिवार्य किया जाना चाहिए.
इसके बजाय, बोर्ड ने सुझाव दिया है कि ‘उप-समिति इस मुद्दे पर आगे विचार-विमर्श के लिए फार्मास्युटिकल मैनुफेक्चरिंग इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों को साथ ले सकती है.’
ड्रग बनाने वाले खुश नहीं
इस प्रस्ताव ने दवा निर्माताओं को व्याकुल कर दिया है, उन्हें डर है कि दवा लेबल पर अधिक भाषा उनके लिए प्रक्रिया को ‘भ्रमित’ बना देगी.
एक दवा बनाने वाली कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘क्षेत्रीय भाषाओं की सूची बहुत लंबी है और अगर हम किसी भी भाषा को शामिल करने में चुक गए, तो यह लोगों की भावनाओं को आहत करेगा, या फिर राज्य सरकारें पूछेंगी कि हम एक निश्चित भाषा का प्रचार क्यों नहीं कर रहे हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे लिए इसे अपनाने में कई दिक्कतों का सामना पड़ेगा. कई चीजें पहले से ही पैक पर छपी हुई हैं. अधिक भाषाओं के होने से लेबल अस्पष्ट और बरबाद हो जाएगा.’
कुछ ऐसा ही प्रस्ताव चिप्स और सॉफ्ट ड्रिंक्स के लिए लाया गया था
केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान द्वारा 2018 में एफएमसीजी प्रोडक्टस के लिए कुछ ऐसी ही योजना बनाई गई थी, जिन्होंने चिप्स, टूथपेस्ट, शैंपू और सॉफ्ट ड्रिंक्स जैसे समान को हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में लेबल लगाने का आग्रह किया था.
उन्होंने कहा था, ‘चीन और जापान जैसे विकसित देशों में, लेबल अपनी भाषाओं में प्रिंटेड होते हैं. हालांकि, भारत में कंपनियां लेबलिंग के लिए केवल अंग्रेजी भाषा का उपयोग करती हैं. अंग्रेजी के अलावा हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी लेबलिंग की जानी चाहिए. ‘
हालांकि, इसको लेकर कोई प्रयास नहीं किए गए हैं.
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