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Sunday, 13 October, 2024
होमदेशपूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों के एक साल बाद 755 मामलों में से 407 में जांच अब तक लंबित

पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों के एक साल बाद 755 मामलों में से 407 में जांच अब तक लंबित

पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के सिलसिले में पिछले एक साल में कुल 1,818 लोगों— 956 मुस्लिमों और 868 हिंदुओं को गिरफ्तार किया गया है.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों, जिसमें 53 लोग मारे गए और संपत्ति की भारी क्षति हुई थी, के सिलसिले में दर्ज कुल 755 मामलों में से 407 में पुलिस जांच एक साल बाद भी लंबित पड़ी है.

पुलिस की तरफ से बाकी 348 मामलों में 1,569 लोगों के खिलाफ सांप्रदायिक दंगों में कथित संलिप्तता के आरोप में चार्जशीट दायर की जा चुकी है. पुलिस सूत्रों ने कहा कि चार्जशीट में जिन लोगों के नाम हैं उनमें 802 हिंदू और 767 मुस्लिम हैं.

दिप्रिंट के पास मौजूद पुलिस डेटा के मुताबिक, इससे जुड़े मामलों में कुल 1,818 लोगों— 956 मुस्लिम और 868 हिंदू को गिरफ्तार किया गया था. इनमें से 1,165 अभी जेल में बंद हैं और 652 (लगभग 36 प्रतिशत) जमानत पर बाहर आ चुके हैं.

पुलिस ने बताया कि जिन 407 मामलों में जांच अभी लंबित हैं, उनमें से कुछ में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.

कुल 755 मामलों में से 62 की जांच दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की तरफ से तीन विशेष जांच टीमें (एसआईटी) कर रही हैं. एक मामला जो ‘मुख्य साजिशकर्ताओं द्वारा बेहद गोपनीय ढंग से’ दंगों को अंजाम देने से जुड़ा है, की जांच स्पेशल सेल ने की है और इसमें चार्जशीट दायर की जा चुकी है. बाकी 692 मामले उत्तर-पूर्वी जिला पुलिस के पास हैं.

आंकड़ों के मुताबिक एसआईटी के पास जो 62 मामले हैं, उनमें से 46 में चार्जशीट दायर की जा चुकी है और 86 अभियुक्तों— 35 हिंदू और 51 मुस्लिम को जमानत मिल गई है.

जांच लंबित होने के बारे में पूछे जाने पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘मामलों की संवेदनशीलता और कोविड काल को देखते हुए कहा जा सकता है कि जांच बहुत तेजी से आगे बढ़ी है. हमने 400 से अधिक मामलों में गिरफ्तारियां की हैं और कुल 755 में से 348 मामलों में चार्जशीट भी दायर की है, जो अच्छी प्रगति है.’

उन्होंने बताया, ‘हमने 120 मामलों में पूरक आरोप पत्र दाखिल किए हैं. अन्य मामलों की भी जांच आगे बढ़ रही है.’

दंगे पिछले साल 23 फरवरी को शुरू हुए थे और अगले तीन दिन यानी 25 फरवरी तक चलते रहे थे. इस दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली की गलियों में हाथों में लाठी-डंडे और हथियार लेकर निकले लोगों ने कई वाहनों और दुकानों में आग लगा दी थी और धार्मिक स्थलों समेत कई जगह तोड़फोड़ कर संपत्तियों को खासा नुकसान पहुंचाया था.

जाफराबाद, वेलकम, सीलमपुर, भजनपुरा, ज्योति नगर, करावल नगर, खजूरी खास, गोकल पुरी, दयालपुर और न्यू उस्मानपुर आदि सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में शामिल थे.


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‘जांच स्वतंत्र और निष्पक्ष’

दिल्ली पुलिस का दावा है कि उसने पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से मामले दर्ज किए.

ऊपर उद्धृत अधिकारी ने कहा, ‘उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों की जांच सही दिशा में चली और 755 मामलों की बेहद सघन पड़ताल की गई. दोनों समुदायों की तरफ से समान ढंग से गिरफ्तारियां होना दर्शाता है कि न तो किसी एक समुदाय का पक्ष लिया गया और न ही किसी एक को निशाना ही बनाया गया.’

उन्होंने कहा, ‘आंकड़े खुद इस बात की गवाही दे रहे हैं कि जांच बिल्कुल स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से की गई और यह भरोसेमंद तथ्यों और वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित है.’

अधिकारी ने बताया कि आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी में प्रौद्योगिकी के व्यापक इस्तेमाल ने ‘जांच को एक नए मुकाम’ पर पहुंचा दिया.

उन्होंने कहा, ‘सीसीटीवी फुटेज और स्मार्टफोन की वीडियो रिकॉर्डिंग की एनालिसिस करने के लिए वीडियो एनालिसिस और फेशियल रिकग्निशन सिस्टम का इस्तेमाल किया गया. विभिन्न स्रोतों से 945 सीसीटीवी फुटेज और वीडियो रिकॉर्डिंग हासिल की गईं, जिनमें सड़कों पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज, स्मार्टफोन की वीडियो रिकॉर्डिंग, विभिन्न मीडिया हाउस से मिले वीडियो फुटेज आदि शामिल है. विभिन्न स्रोतों से मिले इस डेटा का वीडियो एनालिटिक टूल और फेस रिकग्निशन सिस्टम की मदद से विश्लेषण किया गया.’

उन्होंने कहा, ‘उन तस्वीरों का कई तरह के डेटाबेस से मिलान किया गया, जिसमें दिल्ली पुलिस के क्रिमिनल डोजियर फोटोग्राफ और सरकार के अन्य डेटाबेस शामिल थे. इससे दंगों में शामिल लोगों की पहचान में मदद मिली, जिसे अन्य सबूतों के साथ पुष्ट करने के बाद कानूनी कार्रवाई में मदद मिल सकी.’

पुलिस का दावा है कि सीसीटीवी फुटेज में नज़र आ रहे दंगाइयों की ठीक से पहचान के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का भी इस्तेमाल किया गया. साथ ही कहा कि पहचान को पुष्ट करने के लिए ई-वाहन और ड्राइविंग लाइसेंस डेटाबेस का उपयोग किया गया.

अधिकारी ने कहा, ‘दंगों के कई हॉटस्पॉट पर क्या हुआ था, यह पता लगाने के लिए डंप डाटा हासिल किया गया. इसके अलावा, तार्किक नतीजों पर पहुंचने के लिए जियो लोकेशन का उपयोग किया गया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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