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Wednesday, 17 September, 2025
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‘राहत’ भरा अंतरिम आदेश, लेकिन मुस्लिम संगठनों की मांग—वक्फ संशोधन अधिनियम को रद्द किया जाए

कुछ लोगों में अंतरिम आदेश से उम्मीद जगी है, लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमात-ए-इस्लामी हिन्द जैसे संगठन वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ आंदोलन जारी रखने का फैसला कर चुके हैं.

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नई दिल्ली: प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पूरी तरह से खत्म करने की मांग तेज कर दी है. यह मांग सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा “मनमाना” और “असंवैधानिक” बताए गए मुख्य प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार करने के बाद आई है.

मुख्य चिंता तब भी बनी रही जब अदालत ने उस प्रावधान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जो ‘वक्फ-बाय-यूजर’ की अवधारणा को खत्म करता है. ‘वक्फ-बाय-यूजर’ प्रथा लंबे समय से धार्मिक उपयोग में रही किसी संपत्ति को, भले ही उसके पास औपचारिक दस्तावेज या लिखित घोषणा न हो, धार्मिक संपत्ति या वक्फ मानने से जुड़ी है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने ‘निराशा’ जताते हुए कहा कि अंतरिम आदेश ‘अधूरा’ और ‘असंतोषजनक’ है. बोर्ड ने ‘असंवैधानिक’ अधिनियम के खिलाफ अपना विरोध जारी रखने का ऐलान किया.

जमात-ए-इस्लामी हिंद ने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश बड़े संवैधानिक दोषों को उजागर करता है और सरकार के मनमाने प्रावधानों को रोकता है.

जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी ने कहा, “इस प्रावधान पर रोक ने हमारी स्थिति को फिर से सही साबित किया है. हमने लगातार कहा था कि यह भेदभावपूर्ण, मनमाना और अव्यवहारिक है. अदालत की दखल दिखाता है कि ऐसे असंवैधानिक प्रावधान न्यायिक जांच में टिक नहीं सकते. अब हमें उम्मीद है कि अंतिम आदेश इसे पूरी तरह से खारिज कर देगा.”

इंडियन मुस्लिम्स फॉर सिविल राइट्स (IMCR) ने आदेश को राहत और उम्मीद की किरण बताया. हालांकि, मुस्लिम संगठन पूरे अधिनियम को “गैरकानूनी” बताते हुए इसे पूरी तरह से रद्द करने की मांग कर रहे हैं.

पूर्व राज्यसभा सांसद मोहम्मद अदीब (80), जो IMCR के अध्यक्ष हैं, वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के सक्रिय विरोधियों में शामिल रहे हैं और पहले 2013 के संशोधन समिति में भी सेवा दे चुके हैं. उनके अनुसार, अंतरिम आदेश ने कुछ प्रावधानों पर रोक लगाकर मुसलमानों को ‘राहत’ दी है और उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार को बड़ा झटका दिया है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “योगी पूरे उत्तर प्रदेश में पिछले दो महीनों से जमीनें लेने की कोशिश कर रहे थे. इससे उनसे काफी राहत मिली है. हम कह रहे थे कि यह गैरकानूनी बिल है और यह साबित हो गया.” उन्होंने आगे कहा, “बीजेपी का साफ इरादा हमारी सारी जमीनें लेने का था. बहुत सारी बातें अभी बाकी हैं, लेकिन यह बड़ी राहत है.”

उन्होंने जोर देकर कहा कि मुस्लिम संगठन “बाबरी जैसे फैसले” को बर्दाश्त नहीं करेंगे और वक्फ को दूसरी बाबरी नहीं बनने देंगे. “हमने बाबरी मस्जिद का फैसला स्वीकार किया, लेकिन हमारे संगठन ने अन्य मुस्लिम समूहों के साथ मिलकर तय किया है कि हम इस मामले में हर हाल में लड़ेंगे.”

चिंता अब भी बनी हुई है, क्योंकि मुस्लिम संगठन मानते हैं कि सिर्फ तीन प्रावधानों पर रोक से उनका विरोध नहीं रुकेगा. उनका कहना है कि मोदी सरकार इस विवादित वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को गलत नीयत से लेकर आई है. “ऐसी कई और बातें हैं जो भविष्य में हमें भारी नुकसान पहुंचाएंगी. इस पर भी रोक लगनी चाहिए थी. वास्तव में, सब पर रोक लगनी चाहिए थी,” पूर्व राज्यसभा सचिवालय के संयुक्त सचिव मोहम्मद खालिद खान ने कहा.

हालांकि इस अंतरिम आदेश ने कुछ लोगों के बीच उम्मीद की किरण जगाई है, लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमात-ए-इस्लामी हिंद जैसे प्रमुख संगठनों ने आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है.

‘वक्फ-बाय-यूजर बड़ा मुद्दा’

मुस्लिम संगठनों का कहना है कि ‘वक्फ-बाय-यूजर’ संपत्तियां सबसे बड़ा मुद्दा हैं. यही संपत्तियां संशोधित कानून के खिलाफ उनके आंदोलन का मुख्य केंद्र बन गई हैं. चूंकि अदालत ने अपने अंतरिम आदेश में उस प्रावधान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, जो ‘वक्फ-बाय-यूजर’ की अवधारणा को खत्म करता है, इसलिए वे अंतिम फैसले का इंतजार कर रहे हैं. हुसैनी कहते हैं कि ‘वक्फ-बाय-यूजर’ को खत्म करने वाला प्रावधान सैकड़ों सालों से बिना औपचारिक दस्तावेजों के बनी और संभाली जा रही हज़ारों ऐतिहासिक मस्जिदों, कब्रिस्तानों और ईदगाहों को खतरे में डालता है.

उन्होंने कहा, “हम हमेशा से कहते आए हैं कि यह सिद्धांत भारत जैसे देश के लिए जरूरी है, जहां सभी समुदायों के अनगिनत धार्मिक संस्थान बिना दस्तावेजों के मौजूद हैं. हमें उम्मीद है कि अदालत अंतिम आदेश में इसे बरकरार रखेगी.”

लेकिन अदीब इसे अन्याय मानते हैं. उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में 3-4 गैर मुस्लिमों की नियुक्ति की अनुमति देता है, तो गैर मुस्लिमों की संपत्तियों के लिए मुसलमानों को भी नियुक्त होने का अवसर मिलना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि गैर मुस्लिम शामिल हो सकते हैं और क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, मुसलमानों को भी ऐसे ट्रस्टों का हिस्सा बनने का अधिकार है.”

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता क़ासिम रसूल इलियास संशोधित कानून के खिलाफ आंदोलनों में अहम भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने कहा कि 1 सितंबर से शुरू किए गए आंदोलन के दूसरे चरण में धरना, मार्च, प्रदर्शन, ज्ञापन, अंतरधार्मिक सम्मेलन और प्रेस कॉन्फ्रेंस शामिल हैं. “हालांकि अदालत ने आंशिक राहत दी है, लेकिन उसने व्यापक संवैधानिक चिंताओं को नहीं सुलझाया है, जिससे हम निराश हुए हैं.” उन्होंने दिप्रिंट को बताया.

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के तहत संरक्षित स्मारकों के मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया. उन्होंने गंभीर चिंता जताई कि मुस्लिम समुदायों को अपनी जमीन को वक्फ घोषित करने की अनुमति नहीं दी जा रही है.

“आदिवासियों को वक्फ से बाहर कर दिया गया है. यानी अगर कोई मुस्लिम आदिवासी है और आदिवासी क्षेत्र में रहता है, तो वह अपनी संपत्ति वक्फ नहीं कर सकता.” उन्होंने कहा.

इलियास ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ अंतरिम आदेश दिया है और संवैधानिक पीठ ही मामले की सुनवाई करेगी और अंतिम फैसला सुनाएगी.

उन्होंने आगे कहा, “जब मामला संवैधानिक पीठ के पास जाएगा, तब असली केस शुरू होगा.”

अपने अंतरिम आदेश में अदालत ने प्रक्रियात्मक आधार पर तीन प्रावधानों के लागू होने पर रोक लगा दी. ये प्रावधान तब तक रोके रहेंगे जब तक सुप्रीम कोर्ट 2025 अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम फैसला नहीं देता. धारा 3(आर) (अब स्थगित) केवल उन लोगों को वक्फ में संपत्ति दान करने की अनुमति देती है, जो कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं.

धारा 3(सी)(2) का एक हिस्सा, जिस पर अदालत ने रोक लगा दी, सरकार को विवाद या अतिक्रमण दावे के दौरान कलेक्टर के फैसले तक वक्फ भूमि की मान्यता रद्द करने की अनुमति देता है.

उप-धारा 3 और 4, जिन्हें भी रोका गया, कलेक्टर को रिकॉर्ड संशोधित करने का अधिकार देती हैं यदि जमीन सरकारी पाई जाती है और सरकार को वक्फ बोर्ड प्रमुख को अपने रिकॉर्ड अपडेट करने का निर्देश देने की अनुमति देती हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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