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Monday, 20 October, 2025
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उत्तराखंड के होटल्स में इंटरफेथ कपल्स को कमरे से इनकार — वजह, ‘लव जिहाद’ के नाम पर छापेमारी का डर

इंटरफेथ कपल्स का आरोप है कि उन्हें होटल में कमरा देने से मना किया जा रहा है. होटल मैनेजमेंट ‘ऊपर से आदेश’ का हवाला दे रहे हैं, जबकि पुलिस का कहना है कि उन्होंने कोई निर्देश जारी नहीं किए गए हैं.

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देहरादून: मसूरी और लैंडौर की एक छोटी-सी जर्नी के लिए 28 साल के एक मुस्लिम युवक ने अपनी हिंदू महिला दोस्त के साथ देहरादून में होटल रूम बुक किया था. शाम की ठंडी हवा और पहाड़ों की सुकूनभरी सड़कों पर कुछ वक्त बिताने का उनका इरादा था, लेकिन होटल के रिसेप्शन पर पहुंचते ही उनकी यात्रा की शुरुआत एक अप्रत्याशित टकराव में बदल गई.

युवक ने दिप्रिंट को बताया, “मैनेजर ने हमारी आईडी देखी, नाम पढ़े और कहा—‘हम आपको कमरा नहीं दे सकते, हमें ऊपर से ऑर्डर हैं’.”

जब युवक ने ऑर्डर को दिखाने की मांग की, तो स्टाफ कोई कागज़ नहीं दिखा पाया और तुरंत पैसे लौटा दिए.

यह कोई अकेला मामला नहीं है. पिछले कुछ हफ्तों में देहरादून के कम से कम चार-पांच होटलों ने अंतरधार्मिक कपल्स या दोस्तों को कमरे देने से मना कर दिया है. होटल वालों का कहना है कि उन्हें “ऑर्डर/चालान” मिले हैं और ‘उन्हें निरगानी समूहों’ के हस्तक्षेप का डर है. कुछ होटल मालिकों का कहना है कि अगर कपल्स उनके होटल में रुकते हैं तो हिंदुत्व संगठनों, खासकर बजरंग दल, का दबाव रहता है, जो “छापेमारी” करते हैं.

एक होटल कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “अगर हम अंतरधार्मिक जोड़ों को कमरा दें, तो बजरंग दल के लोग दरवाजे तोड़कर अंदर घुस आते हैं. हम झंझट नहीं चाहते.”

एक अन्य होटल मैनेजर ने दिप्रिंट को बताया, “कुछ ग्रुप्स के पास ऐसे लोग होते हैं जो चेक-इन होते ही जानकारी दे देते हैं. मेहमान कमरे तक पहुंचें, उससे पहले ही हमें धमकियां मिल जाती हैं. ऐसे में पैसे लौटाना और बुकिंग कैंसल करना ही ज्यादा आसान है.”

विरोधाभासी दावे

देहरादून पुलिस का कहना है कि उनकी ओर से ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हमने होटलों को अंतरधार्मिक कपल्स को रूम देने से मना करने का कोई आदेश नहीं दिया है. अगर ऐसे मामले हो रहे हैं, तो हम जांच करेंगे.”

होटल वालों का हालांकि, मानना है कि भले ही कोई आधिकारिक आदेश न हो, लेकिन दबाव असली है. कुछ मैनेजरों को डर है कि न केवल निगरानी दल, बल्कि स्थानीय समुदाय भी प्रतिक्रिया देते हैं.

एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा, “हमें ऐसी शिकायतों की जानकारी नहीं है, लेकिन हमारी टीमें होटलों में जाकर देख रही हैं कि किसी मेहमान के साथ अवैध कार्रवाई तो नहीं हो रही. कानून सबको सुरक्षा देता है और किसी को धर्म के आधार पर ठहरने से मना नहीं किया जा सकता.”

कई मामलों में होटल स्टाफ संभावित “कानून-व्यवस्था की स्थिति” का हवाला देकर पहले ही सेवा देने से मना कर देते हैं.

राजपुर रोड के पास एक होटल मैनेजर ने कहा, “हम कानून और सामाजिक दबाव के बीच फंसे हैं. मेहमानों को भेदभाव झेलना पड़ता है, लेकिन हम टकराव का जोखिम नहीं ले सकते.”

कई कपल्स, एक ही शिकायत

26 साल की एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने बताया कि उन्हें और उनके मुस्लिम पार्टनर को मसूरी रोड स्थित एक गेस्ट हाउस से निकाल दिया गया. उन्होंने बताया, “उन्होंने कहा, हमारे लिए यहां रुकना ‘असुरक्षित’ है क्योंकि ‘पहले भी चेतावनी मिल चुकी है, अब रिस्क मत लीजिए’.”

जयपुर से आए दो स्टूडेंट्स को भी एक लॉज में चेक-इन के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ा. मैनेजर ने उनसे शादी का प्रूफ मांगा, जबकि वे सिर्फ दोस्त थे. उनमें से एक ने कहा, “हमें बहुत बुरा लगा, ऐसा लग रहा था जैसे होटल में रुकना ही क्राइम हो.”

नैनीताल में भी कुछ होटल ऐसे कपल्स को सीधे इनकार नहीं कर रहे, लेकिन उनके लिए कमरे का किराया अचानक बहुत बढ़ा देते हैं. एक लोकल टूर ऑपरेटर “कुछ मामलों में, आईडी देखते ही किराया दोगुना कर दिया जाता है.”

‘लव जिहाद’ फैक्टर

ये घटनाएं ऐसे वक्त में सामने आई हैं जब उत्तराखंड में तथाकथित ‘लव जिहाद’ के मामलों पर कानूनी और राजनीतिक सख्ती बढ़ी है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कई बार कह चुके हैं, “लव जिहाद में शामिल किसी को बख्शा नहीं जाएगा.” इस माहौल में निगरानी दलों को राज्य का इनडायरेक्ट सपोर्ट मिल रहा है.

कानूनन कोई होटल धर्म के आधार पर किसी को ठहरने से मना नहीं कर सकता. कानूनी विशेषज्ञ मोहम्मद फैज़ ने कहा, “संविधान का अनुच्छेद 15(2) हर नागरिक को होटल, रेस्तरां, दुकान, मॉल और पार्क जैसे सार्वजनिक स्थानों पर बिना भेदभाव पहुंच का अधिकार देता है. होटल मैनेजमेंट की जिम्मेदारी है कि कोई भेदभाव न हो.”

बजरंग दल खुलेआम अपनी कार्रवाइयों का बचाव करता है. एक स्थानीय नेता ने कहा, “हम देवभूमि में ‘लव जिहाद’ नहीं होने देंगे, जो होटल ऐसी गतिविधियों को जगह देंगे, हम उन्हें उजागर करेंगे. ये हमारी बेटियों और संस्कृति की सुरक्षा का मामला है.”

पिछले एक साल में देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश और नैनीताल में इन समूहों की सक्रियता बढ़ी है. ये लोग अचानक होटलों में जांच करते हैं, मैनेजरों और स्टाफ को धमकाते हैं और सोशल मीडिया पर मेहमानों की आईडी के स्क्रीनशॉट तक शेयर कर देते हैं.

नाम न बताने की शर्त पर देहरादून के एक प्रोफेसर ने कहा, “ये समूह समानांतर कानून लागू करने वाले बन गए हैं. इसका असर सिर्फ कपल्स पर नहीं, बल्कि नागरिक स्वतंत्रता पर भी पड़ रहा है. ये मोरल पुलिसिंग और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मेल है जो कानूनी व्यवस्था को दरकिनार कर देता है.”

मूल अधिकारों पर असर

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह प्रवृत्ति मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. महिला अधिकार कार्यकर्ता अनन्या ने कहा, “बालिग लोगों को निजता और आने-जाने की आज़ादी है. धर्म के आधार पर रूम न देना भेदभाव है. राज्य की निष्क्रियता से निगरानी दलों का हौसला बढ़ रहा है.”

स्थानीय एनजीओ को पिछले छह महीनों में कई शिकायतें मिली हैं—कुछ कपल्स को रात में होटल से निकाल दिया गया, कुछ को मजबूरी में होमस्टे का सहारा लेना पड़ा.

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह स्थिति सामान्य हो गई, तो इसका समाज पर व्यापक असर पड़ेगा—लोगों में डर बढ़ेगा, पर्यटन पर असर पड़ेगा और साम्प्रदायिक तनाव बढ़ेगा.

प्रोफेसर ने कहा, “जब निगरानी दल निजी जगहों पर हुक्म चलाने लगते हैं, तो सोशल कॉन्ट्रैक्ट टूटता है. होटल जैसे प्राइवेट बिजनेस मोरल पुलिसिंग के अखाड़े बन जाते हैं.”

‘यात्रा अधिकार है, जोखिम नहीं’

हिंदुत्व समूहों के खुलेआम सक्रिय होने के साथ, ऐसे और भी मामले सामने आ सकते हैं. राज्य प्रशासन अब तक निर्णायक दखल से बचता दिख रहा है, जिससे होटल कानून और दबाव के बीच फंसे हैं.

देहरादून पुलिस अधिकारी ने कहा, “हम सभी शिकायतों पर नज़र रख रहे हैं. किसी होटल या व्यक्ति को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. अगर अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो कार्रवाई की जाएगी.”

अनन्या ने कहा, “ये ‘लव जिहाद’ का मामला नहीं है, ये भेदभाव, डराने-धमकाने और संवैधानिक आज़ादियों के क्षरण का मामला है. अगर राज्य ने दखल नहीं दिया, तो नागरिकों के अधिकार खतरे में बने रहेंगे.”

फैज़ ने सलाह दी कि अगर किसी के साथ ऐसा भेदभाव हो, तो 112 पर कॉल करें और पुलिस से दखल की मांग करें. उन्होंने कहा, “अगर स्थिति न बदले तो सबूत इकट्ठा कर मजिस्ट्रेट या हाईकोर्ट में शिकायत करें. कानून बहुत क्लियर है.”

उन्होंने बताया कि ‘लव जिहाद’ कोई कानूनी शब्द नहीं है. उत्तराखंड में ‘बलपूर्वक धर्म परिवर्तन’ के खिलाफ कानून है, जो सिर्फ जबरन, धोखे या लालच से धर्म बदलवाने पर रोक लगाता है. अगस्त 2025 में इस कानून में संशोधन कर सज़ा उम्रकैद तक बढ़ाई गई है.

फैज़ ने कहा, “इन कानूनों का मकसद स्वैच्छिक पसंद की रक्षा करना है, न कि प्यार या दोस्ती पर निगरानी रखना. ‘लव जिहाद’ के नाम पर होटल में एंट्री से मना करना कानूनी तौर पर गलत है.”

फिलहाल, अंतरधार्मिक जोड़ों के लिए देहरादून में ठहरना चुनौती बन गया है—या तो मुकाबले का जोखिम उठाओ या मुख्यधारा के होटलों से दूर रहो. निजी अधिकारों, निगरानी दलों और राजनीतिक माहौल के टकराव का बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है, जो पर्यटन और शिक्षा के हब के रूप में उत्तराखंड की छवि पर भी असर डाल सकता है.

प्रोफेसर ने कहा, “यात्रा करना अधिकार होना चाहिए, जोखिम नहीं. अगर हम डर और निगरानी को निजी जगहों पर हावी होने देंगे, तो धीरे-धीरे लोकतंत्र की गारंटी वाली आज़ादियां खत्म हो जाएंगी.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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