नई दिल्ली: एक डिबेट के दौरान, सूफी संत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती पर अपमानजनक टिप्पणियां करने के बाद, न्यूज़ 18 के एंकर अमीश देवगन के खिलाफ दर्ज कई प्राथमिकियों को रद्द करने की मांग खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘प्रभावशाली लोगों की पहुंच, असर और ताकत को देखते हुए, उनका कुछ फर्ज़ बनता है और उन्हें ज़्यादा ज़िम्मेवार बनना होगा’.
न्यायमूर्ती एएम खानविल्कर और संजीव खन्ना की बेंच ने आगे कहा, ‘…अनेकता को प्रतिबद्ध राजनीति में, हेट स्पीच संभावित रूप से किसी भी वैध तरीके से, लोकतंत्र में योगदान नहीं दे सकती और दरअस्ल वो समानता से ही इनकार करती है’.
128 पन्नों के अपने फैसले में, अदालत ने अंतर किया कि ‘बोलने की आज़ादी जिसमें टिप्पणी करने, सरकारी नीतियों की हिमायत करने या आलोचना करने का अधिकार शामिल है और हेट स्पीच (जिसमें शामिल हैं) में किसी समुदाय या समूह को निशाना बनाकर, नफरत पैदा की जाती है, या फैलाई जाती है’.
इसमें कहा गया कि बोलने की आज़ादी, बुनियादी तौर पर सियासी, सामाजिक, आर्थिक और नीतिगत मामलों से जुड़ी होती है, जबकि हेट स्पीच की मंशा ‘निशाना बनाए गए समूह को, अपमानित करना और अलग करना होती है’.
इसमें कहा गया कि इसलिए, हेट स्पीच को अपराध करार देने के पीछे, उद्देश्य ये होता है कि ‘मान-मर्यादा की रक्षा हो, और सुनिश्चित किया जाए कि विभिन्न पहचान और समूहों के बीच जाति, पंथ, धर्म, लिंग, लिंग पहचान, लैंगिक रुझान, भाषाई वरीयता आदि के आधार पर राजनीतिक और सामाजिक बराबरी हो.
कोर्ट ने आगे कहा कि हेट स्पीच का ‘एक समूह विशेष के प्रति नफरत फैलाने के अलावा, कोई वैध उद्देश्य नहीं होता’.
जहां तक देवगन का सवाल है, कोर्ट ने बहस की प्रतिलिपि का उल्लेख किया और कहा कि वो ‘सिर्फ एक होस्ट होने की बजाय, एक सह भागीदार थे’.
फिर कोर्ट ने कहा कि उसे नहीं लगता कि इस स्टेज पर, प्राथमिकियां रद्द करके जांच को रोकना उचित रहेगा. उसने कहा कि ऐसा इसलिए है कि शो की सामग्री, उसके प्रसंग, इरादे, और नुकसान/असर की जांच करनी होगी और ये मूल्यांकन तथ्यों पर आधारित होगा जिसे एक पुलिस जांच द्वारा तय किया जा सकता है.
लेकिन कोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी और उनके खिलाफ दर्ज तमाम प्राथमिकियां अजमेर ट्रांसफर कर दीं, जहां पहली एफआईआर दायर हुई थी. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से भी कहा है कि देवगन और उनके परिवार के सदस्यों पर खतरे की धारणा की जांच करे और आवश्यक कदम उठाए.
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देवगन के खिलाफ सात एफआईआर दर्ज
15 जून को न्यूज़ 18 चैनल के डिबेट शो में सूफी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के खिलाफ अपमानजनक शब्द बोलने पर देवगन के खिलाफ राजस्थान, तेलंगाना, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में सात एफआईआर दर्ज कराई गईं थीं.
एफआईआर में कहा गया था कि डिबेट होस्ट करने के दौरान देवगन ने ख्वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती के लिए कहा, ‘आक्रांतक चिश्ती आया… आक्रांतक चिश्ती आया…लुटेरा चिश्ती आया…उसके बाद धर्म बदले’.
पहली एफआईआर, जो अजमेर में दर्ज हुई, भारतीय दंड संहिता की धारा 153बी, (इल्ज़ाम व दावे जो राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक हों), धारा 295ए (जान बूझकर किया गए निंदनीय कृत्य, जिनमें किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों को अपमानित करने की मंशा से, उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाए) और 198 (जानबूझकर ऐसे शब्द बोलना जिनका, उद्देश्य किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना हो) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 66एफ के तहत थी.
अन्य प्राथमिकियों में भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (धर्म आदि के आधार पर अलग-अलग समूहों में वैमनस्य फैलाना और ऐसे काम करना जो समरसता बनाए रखने में हानिकारक हों) और धारा 505 (2) (वर्गों के बीच वैमनस्य, नफरत या दुर्भावना पैदा करने या बढ़ाने वाले बयान) भी शामिल की गईं थीं.
शब्द गलती से कहा: देवगन
देवगन ने आरोप लगाया कि प्रसारण के बाद, उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर गालियां और मार डालने की धमकियां मिलीं थीं, जिसके बाद उन्होंने धमकियों के खिलाफ 20 जून को नोएडा में एक एफआईआर दर्ज कराई थी.
इसके बाद 23 जून को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर, मांग की कि या तो प्राथमिकियां रद्द कर दी जाएं या उन्हें अजमेर में दायर पहली एफआईआर के साथ इकठ्ठा कर दिया जाए.
अन्य बातों के अलावा, देवगन ने निवेदन किया था कि जो शब्द उनके बताए गए हैं, वो ‘अनजाने में और गलती से’ अदा हो गए थे. उन्होंने कोर्ट से ये भी कहा कि उन्होंने ट्वीट करके माफी भी मांग ली थी और डिबेट के फौरन बाद चैनल ने भी, एक क्षमा वीडियो प्रसारित कर दिया था.
लेकिन कोर्ट ने कहा कि प्रभाव वाले लोगों को अधिक ज़िम्मेदार होने की ज़रूरत है. कोर्ट ने कहा, ‘उनसे अपेक्षा की जाती है कि वो बोले या लिखे गए शब्दों के अर्थ को जाने और समझेंगे, उस संभावित अर्थ को भी समझेंगे जो उनसे निकाला जा सकता है’.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसका मतलब ये नहीं है कि पत्रकारों जैसे प्रभाव वाले व्यक्तियों के पास, अन्य नागरिकों जैसी बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है लेकिन उसने आगे कहा कि वो कथित हेट स्पीच के नुकसान, प्रभाव, इरादे, या विषय की जांच करते हुए, ‘कौन’ फैक्टर को भी देखेगी.
कोर्ट ने व्याख्या करते हुए कहा कि ‘कौन’ फैक्टर में बोलने वाला और दर्शक, जिसे बयान में मुखातिब किया गया है, दोनों शामिल है.
अदालत ने ये भी कहा किसी भी हेट स्पीच के असर को, उचित, मज़बूत दिमाग वाले दृढ़ और साहसी लोगों के मानकों से आंका जाना चाहिए, उन लोगों से नहीं जो कमज़ोर और ढुलमुल दिमाग वाले हों और न ही उनसे जिन्हें हर विरोधी नज़रिए में खतरा महसूस होता हो’.
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