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Tuesday, 17 December, 2024
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पटना में खुला भारत का पहला डॉल्फिन रिसर्च सेंटर, गंगा डॉल्फिन के अध्ययन में मिलेगी मदद

30 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित और उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित किया जाने वाला राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र, शोधकर्ताओं और छात्रों को ‘नदी के पारिस्थितिकी तंत्र’ को समझने में भी मदद करेगा.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को पटना में भारत के पहले डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र का उद्घाटन किया. 30 करोड़ रुपये की लागत से बना ये राष्ट्रीय डॉल्फिन रिसर्च सेंटर (NDRC) पटना यूनिवर्सिटी कैंपस में गंगा किनारे बनाया गया है जो स्टूडेंट्स और रिसर्चर को मीठे पानी की डॉल्फिन, विशेष रूप से गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन के व्यवहार को समझने में मदद करेगा.

दरअसल, NDRC का उद्घाटन बीते साल दिसंबर में ही होने वाला था, लेकिन काम पूरा होने की वजह से इसे आगे बढ़ा दिया गया था. इस संस्थान का शिलान्यास भी साल 2020 में नीतीश कुमार ने ही किया था. शुरुआत में इसे बनाने का लक्ष्य 2022 तक रखा गया था, लेकिन इसे बनने में काफी विलंब हुआ.

पटना में राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसंधान केंद्र की स्थापना को बिहार के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन पीके गुप्ता ने पर्यावरण और वन्य जीव के शोध के प्रति मील का पत्थर बताया. उन्होंने कहा, “माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयासों के चलते राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध संस्थान पटना में खुला है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयास का ही परिणाम है कि डॉल्फिन को 2009 में राष्ट्रीय जल जीव घोषित किया गया था. यह खुशी की बात है कि देश का एकलौता राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध संस्थान बिहार राज्य को मिला है. इस रिसर्च सेंटर से मीठे पानी में पाई जाने वाली डॉल्फिन के व्यवहार को समझने एवं शोध करने में वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और शोध छात्रों को मदद मिलेगी. यह संस्थान भविष्य में सेंटर और एक्सीलेंस के रूप में स्थापित होगा.”

पर्यावरणविद् भी एनडीआरसी की स्थापना को एक बड़े वरदान के रूप में देखते हैं. पर्यावरणविद् और धरती फाउंडेशन के संस्थापक निशांत भारद्वाज राजपूत ने दिप्रिंट से कहा, “नदी में डॉल्फिन की उपस्थिति नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. अगर किसी नदी में डॉल्फिन की संख्या बढ़ती है, तो यह कहा जा सकता है कि नदी की जलवायु अच्छी है.”

उन्होंने कहा, “बिहार में गंगा और उसकी सहायक नदियों में डॉल्फिन की अच्छी संख्या है. एनडीआरसी की स्थापना से शोध में मदद मिलेगी. मैंने खुद पिछले महीने सेंटर का दौरा किया था. वहां डॉल्फिन से जुडे़ हर विषय के लिए अलग अलग लैब है जिससे रिसर्च में बहुत मदद मिलेगी. इस तरह के रिसर्च सेंटर से प्रकृति को सोसायटी से जोड़ने में मदद मिलेगी. विज्ञान और पर्यावरण के छात्र वहां जाकर शोध कर सकेंगे.”

गंगा डॉल्फिन की आधिकारिक तौर पर खोज 1801 में की गई थी. वे नेपाल, भारत और बांग्लादेश की गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु नदी प्रणालियों में रहती हैं. वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत गंगा डॉल्फिन का शिकार प्रतिबंधित है. बिहार सरकार द्वारा की गई गणना के अनुसार, 2018 में गंगा में 1,048 डॉल्फिन थीं.

एनडीआरसी का उद्घाटन पिछले साल दिसंबर में होना था, लेकिन काम पूरा होने में देरी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. इस संस्थान की आधारशिला साल 2020 में नीतीश कुमार ने रखी थी.

एनडीआर प्रोजेक्ट को अप्रूवल साल 2013 में योजना आयोग के तत्कालीन डिप्टी चेयरमैन मोंटेक सिंह द्वारा प्रो आर के सिन्हा — जिन्हें भारत के डॉल्फिन मैन के रूप में भी जाना जाता है — जो उस वक्त पटना यूनिवर्सिटी के जंतु विज्ञान के प्रोफेसर थे, के अनुरोध पर दी गई थी. प्रो सिन्हा अभी श्री माता वैष्णो देवी यूनिवर्सिटी के कुलपति हैं.

हालांकि, बिहार के भवन निर्माण विभाग से अनुमोदन की कमी के कारण परियोजना को निर्माण में देरी का सामना करना पड़ा. यह झटका परियोजना स्थल की गंगा नदी से निकटता के कारण उत्पन्न हुआ, जो केवल 200 मीटर की दूरी पर स्थित है, जिससे निर्माण कार्य आगे बढ़ाने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करने में देरी हुई.

विवेक सुहानी, जो कि पटना यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान के पूर्व छात्र हैं और वर्तमान में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट (NIFTEM), कुंडली में एक शोध विद्वान हैं, ने दिप्रिंट को बताया, “यह बिहार के लिए, खासकर पटना में रहने वाले छात्रों, जिन्हें पर्यावरण में शोध में रुचि है, को बहुत मदद करेगा. इस संस्थान से डॉल्फिन के अलावा नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को भी समझने में मदद मिलेगी.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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