नई दिल्लीः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि ‘हिंदू की कोई विशेष परिभाषा’ नहीं है. उन्होंने कहा कि ‘भारतीय’ और ‘हिंदू’ शब्दों को पर्यायवाची बताते हुए कहा कि हिंदू एक ‘भू-सांस्कृतिक पहचान’ है.
भागवत ने कहा कि भारत ने अपनी स्वतंत्रता इसलिए खो दी थी क्योंकि वह अपने सभ्यतागत आदर्श वाक्य और मूल्यों को भूल गया है. भागवत ने रविवार को शिलांग में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम एक प्राचीन राष्ट्र हैं, लेकिन अपने सभ्यतागत आदर्श वाक्य और मूल्यों को भूल जाने के कारण हमने अपनी स्वतंत्रता खो दी. एक दूसरे के बीच हमारी बाध्यकारी शक्ति हमारे सदियों पुराने मूल्यों में हमारी अंतर्निहित आस्था है जो आध्यात्मिकता में निहित है.
इस देश की कभी न मिटने वाली सभ्यता के इन मूल्यों को हमारे देश के बाहर के लोगों ने हिंदुत्व का नाम दिया था. हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदू की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है, हालांकि यह हमारी पहचान है. भारतीय और हिंदू दोनों शब्द पर्यायवाची हैं. यह वास्तव में एक भू-सांस्कृतिक पहचान है.’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि संगठन देश के लिए बलिदान देना और अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को छोड़ना सिखाता है. भागवत ने कहा, ‘एक घंटे की संघ शाखाओं में लोग इन परोपकारी मूल्यों और मातृभूमि के प्रति कर्तव्य के बारे में सीखते हैं.
उन्होंने कहा, ‘आरएसएस ने बलिदान की इस परंपरा को देश के प्राचीन इतिहास से लिया है. हमारे पूर्वजों ने परे विभिन्न देशों का दौरा किया था और जापान, कोरिया, इंडोनेशिया और कई अन्य देशों में समान मूल्यों को छोड़ दिया था. हम आज भी उसी परंपरा का पालन कर रहे हैं.
भागवत ने ‘वैक्सीन मैत्री’ और आर्थिक संकटग्रस्त श्रीलंका को भारत की सहायता का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने इन मामलों में मानवता की सेवा की. उन्होंने कहा, ‘हमारे पूर्वजों ने महान काम किए हैं. हमने गणित, विज्ञान और आयुर्वेद पढ़ाया. आज भी हम वही करते हैं, जिन्होंने संकट के दौरान श्रीलंका की मदद की और उन्हें ऋण प्रदान किया. वह हम थे. कोविड में दुनिया को वैक्सीन किसने दी? हमने दिया.’
आरएसएस प्रमुख ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे संघ ने कार्यकर्ताओं की मदद से पांच पीढ़ियों तक वर्षों से राष्ट्रीय पुनर्निर्माण कार्यों में योगदान दिया है. भागवत ने भारत को ‘सर्वांगीण विकास’ की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करने पर जोर दिया और कहा कि आरएसएस का मिशन इस उद्देश्य के लिए समाज को संगठित बनाना है.
भागवत ने भारत को ‘सर्वांगीण विकास’ की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करने पर जोर दिया और कहा कि आरएसएस का मिशन इस उद्देश्य के लिए समाज को संगठित बनाना है. उन्होंने कहा कि संघ सिर्फ एक अन्य संगठन नहीं है जो संगठन को मजबूत बनाने के लिए काम कर रहा है, बल्कि असली मिशन इस समाज को संगठित करना है ताकि भारत को उसका सर्वांगीण विकास मिल सके.
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