नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम का नेतृत्व कर रहे भारत के प्रधान सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल को दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने के लिए शीर्ष न्यायिक नियुक्ति निकाय की पहले की सिफारिश को दोहरा सकते हैं.
कॉलेजियम में जस्टिस संजय किशन कौल और के.एम. जोसेफ ने बुधवार दोपहर को मुलाकात की और कृपाल के नाम पर कायम रहने का फैसला किया. सौरभ कृपाल भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी.एन. कृपाल के बेटे हैं.
2017 में जब उनका नाम दिल्ली हाई कोर्ट कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित किया गया था तब वह 45 साल के थे. उनके विषय में सभी जानते हैं कि वह समलैंगिक वकील हैं.
हालांकि, शीर्ष अदालत के कॉलेजियम ने उनका नाम साफ़ करने और इसे केंद्र सरकार को आगे बढ़ाने में चार साल लग गए. यह नवंबर 2021 में मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना के नेतृत्व वाले कॉलेजियम द्वारा किया गया था.
कृपाल की उम्मीदवारी पर आपत्ति जताते हुए केंद्र सरकार ने नवंबर 2022 में फाइलें वापस कर दीं थीं. सूत्रों ने तब दिप्रिंट को बताया था कि सरकार की मुख्य आपत्ति सौरभ के 50 वर्षीय साथी को लेकर थी, जो स्विस नागरिक है. यह कहा गया था कि सरकार का मानना है कि वरिष्ठ वकील का यूरोपीय साथी सुरक्षा जोखिम बन सकता है.
हालांकि, SC कॉलेजियम ने बुधवार को आपत्ति को खारिज कर दिया और कहा कि कृपाल सभी पहलुओं में हाई कोर्ट के न्यायाधीश बनने के योग्य हैं.
इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के समय कॉलेजियम के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया. शीर्ष अदालत द्वारा औपचारिक संकल्प जारी किए जाने पर रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
कृपाल का नाम उन 20 फाइलों में शामिल था, जिन्हें केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को पुनर्विचार के लिए भेजा था. जबकि 11 ताजा मामले थे – जिसका अर्थ है कि कृपाल सहित पहली बार कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नौ ऐसे नाम थे जिन्हें पहले शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा दोहराया गया था.
कृपाल के नाम के अलावा, कॉलेजियम ने कई अन्य हाई कोर्ट में नई नियुक्तियों के प्रस्तावों पर भी चर्चा की, जिन्हें अधिसूचना के लिए सरकार को भेजे जाने की संभावना है.
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नियुक्तियों को लेकर खींचतान
कृपाल के नाम पर अडिग रहने का SC का फैसला ऐसे समय में आया है जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार और शीर्ष अदालत एक बार फिर न्यायिक नियुक्ति प्रणाली को लेकर आमने-सामने हैं.
टकराव हाल ही में तब तेज हो गया जब केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को एक पत्र लिखा, जिसमें मांग की गई कि सभी हाई कोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में एक सर्च-कम इवैल्यएशन गठित की जाए, ताकि प्रस्तावित उम्मीदवारों के बारे में जानकारी और डेटा एकत्र किया जा सके.
मंत्री ने ऐसी समितियों में राज्य स्तर पर सरकार का प्रतिनिधित्व भी मांगा है, रिजिजू ने राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार के नामांकित व्यक्ति को शामिल करने का प्रस्ताव दिया, जबकि SC में सर्च-कम-इवैल्यूएशन कमीटी, उन्होंने केंद्र सरकार के नामित व्यक्ति की सदस्यता का सुझाव दिया.
मंत्री ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम पर 2015 के SC के फैसले का हवाला देते हुए अपने पत्र का समर्थन किया, जिसने नए कानून को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए रद्द कर दिया था.
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को अधिकार देने वाले अधिनियम को न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए एक खतरे के रूप में देखा गया, जो संविधान के मूल ढांचे, एक अपरिवर्तनीय पहलू का हिस्सा है.
मंत्री ने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में नियुक्ति प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) को ठीक करने का आह्वान किया गया है, जिसे आलोचकों द्वारा अपारदर्शी बताया गया है. MoP हाई कोर्ट
और SC में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करता है.
हालांकि, अभी भी MoP का मुद्दा अनसुलझा है, मोदी सरकार ने दावा किया है कि SC कॉलेजियम ने पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए प्रक्रिया में सुधार के अपने सुझावों पर अभी तक ध्यान नहीं दिया है. दूसरी ओर शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि मौजूदा एमओपी देश का कानून है.
एमओपी के अनुसार, कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए नामों को केंद्र द्वारा अधिसूचित किया जाना है. हालांकि, हाल की घटनाओं से पता चलता है कि सरकार इस मानदंड को निर्धारित करने के लिए तैयार नहीं है और उन फाइलों को वापस कर दिया है जिन्हें SC कॉलेजियम ने अपने पहले दौर के विचार-विमर्श के दौरान दोहराया था.
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(संपादन: अलमिना खातून)
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