रांची: बीते 31 अगस्त को पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में एक दर्दनाक हादसा हुआ. यहां ट्रेन से कटकर एक साथ 5 हिरणों की मौत हो गई थी. इसमें हिरण के दो बच्चों सहित तीन मेल और दो फीमेल शामिल थे. ये बेजुबान जानवर चारे की तलाश में जंगल से निकल कर ग्रामीण इलाके में घुस गए थे. वापस लौटते वक्त ट्रेन की चपेट में आ गए और अपनी जान गंवा बैठे.
ट्रेन की चपेट में जानवरों के मारे जाने की यह कोई पहली घटना नहीं है अभी तक ट्रेन से कटकर 10 हाथी, नौ जंगली भैंसे और एक चीते की मौत हो चुकी है.
भारतीय रेलवे भारत के इस एतिहासिक और दुनिया को सबसे पहले टाइगर सेंसस देने वाले पलामू के सबसे बड़े टाइगर रिजर्व के बीचोबीच अब एक और 9 किमी. की रेल लाइन बिछाने की तैयारी कर चुका है, जो जानवरों के लिए हादसे का एक और कारण बनेगी.
जंगल के बीचोबीच लगभग 9 किलोमीटर की डबल रेल लाइन पहले से बिछी है. भारतीय रेल, वन विभाग और झारखंड सरकार जानवरों की रक्षा और ऐसे हादसों से सबक नहीं लिया है. और नई लाइन बिछाने की तैयारी में जुटी है. हालांकि, वन विभाग ने रेलवे के इस प्रोजेक्ट पर आपत्ति जताई है.
पीडीआर के डिप्टी डायरेक्टर कुमार आशीष ने इस संबंध में झारखंड के चीफ सेक्रेटरी, वन एवं पर्यावरण विभाग के सचिव, रेलवे सभी को पत्र लिखकर इसका रूट बदलने का आग्रह भी किया है.
पीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर कुमार आशीष ने बताया, ‘किसी भी टाइगर रिजर्व में कोर और बफर एरिया होता है. कोर एरिया बहुत सेसेंटिव होता है. बाघों की ब्रीडिंग इसी एरिया में होती है. कोर और गांव के आसपास का एरिया बफर कहलाता है. यह रेलवे लाइन कोर एरिया से जाने के लिए प्रस्तावित है.’
बता दें कि पीटीआर के इस इलाके से हर दिन 100 से अधिक मालगाड़ी और सवारी गाड़ी गुजर रही हैं. इस वजह से जानवरों का मूवमेंट दो भागों में बंट गया है.
पीटीआर में फिलहाल 25-30 किलोमटीर प्रति घंटे के रफ्तार से ट्रेनें चल रही हैं. नई रेल लाइन अगर कोर एरिया में बनती है तो यहां भी 25-30 किलोमीटर प्रति घन्टे की रफ्तार से दौड़ेगी, वहीं अगर किनारे से निर्माण करते हैं तो 100 किलोमीटर प्रति घन्टे की रफ्तार हो जायेगी.
कुमार आशीष बताते हैं, ‘इस 9 किलोमीटर के बीच छिपादोहर और हेहेगड़ा नाम से दो हॉल्ट आते हैं, यही हमारा कोर एरिया है. इससे सटी औरंगा नदी है. तीनों पटरी यानी दो पुरानी और एक जो नई बनाई जानी है.
आशीष कहते हैं, ‘मैंने रेलवे बोर्ड के अधिकारियों से मांग की है कि जंगल के किनारे से अगर लाइन ले जाते हैं तो पीटीआर पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगा और रेलवे का काम भी हो जाएगा.’
उनके मुताबिक, ‘फिलहाल यह प्रोजेक्ट 4000 करोड़ रुपए का है. अगर एनओसी मिलती है तो विभिन्न क्लीयरेंस के बदले रेलवे को लगभग 500 करोड़ रुपए का और भुगतान करना होगा. जबकि जंगल के किनारे से रेल लाइन निकालने पर पांच प्रतिशत अधिक यानी 200 करोड़ रुपए अतिरिक्त का खर्च आएगा. यानी 300 करोड़ रुपए के बचत के अलावा जानवरों के जीवन को भी सुरक्षित किया जा सकता है.’
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रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) इसका निर्माण कर रही है. इलाका धनबाद रेलवे जोन में पड़ता है. जोन के जीएम अखिलेश पांडेय ने बताया, ‘क्योंकि डबल लाइन पहले से ही व्यस्त थी. ऐसे में अधिक ढुलाई के लिए नई लाइन की जरूरत थी.’
क्लीयरेंस का है लंबा रास्ता
निर्माण से पहले इसे कई स्तरों पर क्लीयरेंस लेना होगा. वाइल्ड लाइफ और फॉरेस्ट क्लीयरेंस. दोनों क्लीयरेंस के लिए आवेदन पहले पीटीआर डीएफओ के पास जाएगा. यहां से पास होकर यह झारखंड सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग और स्टेट बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ के पास जाएगा.
फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय दिल्ली और वाइल्ड लाइफ के लिए नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ के पास भेजा जाएगा. जब यह सभी जगह से क्लीयर हो जाएगा तो इसका आखिरी पड़ाव सुप्रीम कोर्ट की कमेटी होगा. तब जाकर निर्माण प्रक्रिया शुरू हो पाएगी. जानकारी के मुताबिक रेलवे ने वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस के लिए आवेदन कर दिया है लेकिन फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए अभी नहीं किया है.
वहीं क्लीयरेंस को लेकर आरवीएनएल के अधिकारी विशाल आनंद ने बताया, ‘वह एरिया फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अंतर्गत नहीं आता है. रेलवे ने 1924 में वहां निर्माण कर लिया था और 1975 में डबल लाइन भी बन गई थी. जबकि 1976 में वाइल्ड लाइफ एरिया घोषित किया गया है. ऐसे में रेलवे को केवल वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस की जरूरत है, जिसके लिए आवेदन कर दिया गया है.’
जानकारी ही नहीं है
कुल 17 बार फोन करने और व्हाट्सएप पर सवाल भेजने के पर प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (पीसीसीएफ) पीके वर्मा ने बताया, ‘रेलवे की ओर से दिए गए वाइल्ड लाइफ क्लियरेंस के आवेदन की जानकारी मुझे नहीं है. किया होगा तो ऑनलाइन किया होगा.
‘जहां तक क्लीयरेंस की बात है, वह नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ तय करेगा, हम नहीं.’
‘रूट बदलने की बात है, हमने एक साल पहले ही रेलवे से कहा था लेकिन अभी तक उसका जवाब नहीं मिला है. रेलवे को विजिबिलिटी स्टडी करनी थी. इसके बाद क्या हुआ, मुझे नहीं पता. रही बात रेलवे के जमीन पर दावे की तो जब फैक्ट और डॉक्युमेंट्स सामने रखे जाएंगे, तब तय होगा.’
बाघों की संख्या है ज़ीरो
2010 में सेंट पीटर्सबर्ग में एक बैठक में तय किया गया था कि आने वाले 10 सालों में दुनियाभर में बाघों की संख्या दोगुनी की जाए. भारत ने इस लक्ष्य को समय से पहले ही हासिल कर लिया था. बीते साल में 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस के दिन पीएम मोदी ने इसके लिए वन विभाग और इस लक्ष्य को हासिल करने वाली सभी संस्थाओं, व्यक्तियों को बधाई दी थी. लेकिन इस बधाई में शायद पीटीआर शामिल नहीं था. क्योंकि सर्वे के मुताबिक यहां एक भी बाघ नहीं बचा है. वहीं पूरे झारखंड में मात्र पांच बाघ बचे हैं.
जानकारी के मुताबिक दुनिया का पहला टाइगर सेंसस 1932 में पहली बार इसी पलामू में हुआ था. इसके बाद 1973 में भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया, जिसके तहत देशभर में कुल 9 टाइगर रिजर्व बनाए गए. इसमें एक पीटीआर भी था.
वहीं इस पूरे मसले पर नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के एडीजीएफ एसपी यादव से संपर्क करने की कोशिश की गई. सवाल उन्हें ई-मेल किया गया है, जवाब मिलते ही इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.
फिलहाल दुनिया का पहला बाघ सेंसस कराने का तगमा हासिल करने वाला पीटीआर, एक बार फिर दो फाड़ होने के कगार पर है. रेलवे कह रही वह जमीन पहले से हमारी है, वन विभाग कह रहा जानवरों को बचाने में मदद कीजिए, रेल लाइन किनारे से ले जाइए. परिणाम तो आने वाला समय ही बता पाएगा.
(आनंद स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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