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Thursday, 21 November, 2024
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भारत में फार्मा सेक्टर में बूम के दौरान सैकड़ों कॉलेज बने, लेकिन सरकार अब और कॉलेज नहीं चाहती है

भारत ने फार्मा उद्योग की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए खराब गुणवत्ता वाले संस्थानों की जांच करने के लिए 2021-22 तक नए फार्मा कॉलेजों पर रोक लगा दी है.

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नई दिल्ली: उच्च वेतन, अच्छी विदेशी नौकरियों और उद्योग के लिए बड़ी विकास योजनाओं ने भारत में सैकड़ों फार्मेसी कॉलेजों की स्थापना को बढ़ावा दिया. लेकिन, इन कॉलेजो की 50,000 से अधिक सीटें खाली जा रही हैं.

केंद्र सरकार की संस्था ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2019-20 में भारत में फार्मेसी कॉलेजों की संख्या 2,694 हो गई है. वहीं, 2012-13 में यह संख्या 1,425 थी.

2012-13 में 1.61 लाख सीटें थीं, वहीं शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में यह संख्या 72 प्रतिशत बढ़कर 2.77 लाख हो गई. हालांकि, नामांकन ने इतनी तेजी से रफ़्तार नहीं पकड़ी है.

2016-17 में 58,650 सीटें खाली हुईं. वहीं, 2017-18 में 52,223 और 2018-19 में 50,106 सीटें खाली हुईं 2019-20 के नामांकन के आंकड़े अभी जारी नहीं किए गए हैं.

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यह ट्रेंड भारत के इंजीनियरिंग कॉलेजों के अनुभव को दर्शाता है, अच्छे वेतन के वादे और पेशे के लिए एक सांस्कृतिक आत्मीयता ने हजारों छात्रों को इस विकल्प को चुनने के लिए तैयार किया.

2014-15 तक इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई थी, लेकिन फिर नामांकन कम होने लगा और शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल खड़े होने लगे.

सीटों की संख्या 2012-13 में 2.69 लाख से बढ़कर 2014-15 में 3.18 लाख हो गई, लेकिन लगभग आधी सीटें खाली रह गईं.

बेरोजगार इंजीनियरों पर मंथन करके विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया के बाद केंद्र सरकार ने कई कॉलेज बंद कर दिए.

2019-20 शैक्षणिक सत्र तक सीटों की संख्या घटकर 2.53 लाख हो गई थी.


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2020 तक आते आते, नए इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना या अधिक सीटों को जोड़ने के लिए रोक लगानी पड़ेगी.

फार्मेसी सेक्टर में उत्पन्न होने वाली इसी तरह की स्थिति को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले महीने शैक्षणिक वर्ष 2021-22 तक फार्मेसी कॉलेजों की स्थापना या विस्तार को रोक दिया है. दिप्रिंट ने यह खबर पिछले महीने की थी.

एआईसीटीई के अध्यक्ष अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कहा, ‘अतीत में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज खोले गए, बाद में किसी ने एडमिशन नहीं लिया. हम नहीं चाहते कि फार्मेसी में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो, इसलिए नए फार्मेसी कॉलेजों को खोलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.’

उन्होंने कहा, ‘हम मौजूदा कॉलेजों से केवल गुणवत्ता वाले फार्मा स्नातक ही चाहते हैं.’

फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया एक सरकारी निकाय है जो फार्मा क्षेत्र के साथ-साथ पेशे में शिक्षा को नियंत्रित करता है. फार्मेसी काउंसिल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘मौजूदा संस्थान उन स्नातकों की आवश्यक संख्या का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त है, जो फार्मा उद्योग में भारत की मांगों को पूरा करने में सक्षम हों और वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं का ध्यान रखें.’

उन्होंने कहा, ‘अगर सीटों की संख्या बढ़ जाती है, तो गुणवत्ता में गिरावट आएगी. आधिकारिक तौर पर कहा गया है कि हाल के दिनों में कम गुणवत्ता वाले फार्मा कॉलेजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, इस कारण सीटें खाली रह गई हैं. सरकार उससे आगे की संख्या लेने का जोखिम नहीं उठा सकती है.

फार्मेसी में नौकरियों में उछाल

कई कारणों की वजह से हाल के वर्षों में फार्मेसी में रुचि बढ़ी है. भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के अनुसार सन फार्मा और ल्यूपिन जैसी शीर्ष घरेलू दवा निर्माता कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय फार्मा एलायंस के अनुसार भारतीय फार्मा उद्योग 38 बिलियन डॉलर से 2030 तक 120-130 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है.

उन्होंने यह भी कहा, खाड़ी के देशों में रोजगार के अवसर और सरकार की जन औषधि योजना की वजह से बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. एक नया बी.फार्मा स्नातक छात्र देश की एक प्रतिष्ठित फर्म के साथ नौकरी के लिए प्रति माह 50,000 रुपये और विदेश में 1 लाख रुपये प्रति माह प्राप्त करने की उम्मीद कर सकता है.

फार्मा मार्केट रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ऑल इंडिया आर्गनाइजेशन ऑफ कैमिस्ट एंड ड्रगिस्ट) के महासचिव राजीव सिंघल ने कहा, ‘यह वृद्धि रिटेल फार्मेसियों में प्रमुख रूप से नहीं है, लेकिन ज्यादातर फार्मा कंपनियों द्वारा अपने अनुसंधान एवं विनिर्माण विकास प्रयोगशालाओं और वितरण विभागों में अधिक से अधिक फार्मेसी स्नातकों को नियुक्त किया गया है.

सिंघल ने कहा कि भारतीय फार्मासिस्टों को ओमान, यूएई, मिस्र और कुवैत जैसे खाड़ी देशों में नौकरी के अच्छे अवसर प्रदान किए जा रहे हैं. एक अन्य स्थानीय फार्मासिस्ट ने बताया सऊदी अरब कथित तौर पर एक फार्मा हब बनने की तैयारी में है.


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सिंघल ने कहा, ‘अच्छे पैकेज के कारण भारतीय फार्मासिस्ट इन देशों में नौकरी के अच्छे अवसर देख रहे हैं, जहां फार्मेसियों और दवा कंपनियों दोनों का विस्तार हो रहा है और … भारतीयों के पास बेहतर विशेषज्ञता है.

प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना भी विकास में योगदान दे रही है

फार्मा सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) को श्रेय दिया जा सकता है, जिसके तहत केंद्र सरकार सस्ती दरों पर दवाएं बेचती है. इस योजना के तहत दुकानों की संख्या 2014 में 99 थी, जो अब बढ़कर 5,000 हो गई है.

प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना को चलाने वाली एजेंसी बीपीपीआई के सीईओ सचिन सिंह ने कहा, ‘हर जन औषधि आउटलेट पर फार्मासिस्ट को रखने की अनिवार्य आवश्यकता के अलावा, फार्मासिस्ट हमारे स्टोरेज और लॉजिस्टिक्स में भी शामिल होते हैं.

इसका मतलब यह है कि लगभग 6,000 फार्मासिस्ट हैं जो इस योजना के तहत काम कर रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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