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Thursday, 26 December, 2024
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भारत में अफगान कैडेट्स को सरकार की तरफ से मिली थी लाइफलाइन, अब ‘तालिबान’ को सौंपे जाने का सता रहा डर

भारत में रह रहे 48 अफगान कैडेट का दावा है कि उनके वीजा या तो रद्द कर दिए गए हैं या वीजा विस्तार का अनुरोध खारिज कर दिया गया है. हालांकि, विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि ‘किसी को भी वापस जाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा.’

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नई दिल्ली: मालवीय नगर में एक टू बीएचके अपार्टमेंट की धूल भरी खिड़की पर अफगान झंडा और सेना की वर्दी लटकी है. छह युवा अफगान सैन्य कैडेट अवैध अप्रवासी के रूप में पिछले दो माह से इसी छोटे से फ्लैट में रह रहे हैं. वे इस पर बात करते हैं कि इफ्तार के लिए कुछ ताजा पकाना है या पिछली रात का बचा खाना ही खाना है. उनके द्वारा दूसरा विकल्प अपनाते की संभावना अधिक है, क्योंकि इस समय बचत ही उनकी सबसे बड़ी जरूरत है और अमान्य वीजा के कारण नौकरियां मिलना बहुत ही मुश्किल काम है.

यह पूरी तस्वीर पिछले साल से एकदम अलग है.

फरवरी 2022 में, भारत सरकार ने विभिन्न भारतीय सैन्य अकादमियों में अपने पाठ्यक्रम पूरा करने वाले लगभग 80 अफगान कैडेट्स के लिए अंग्रेजी और मार्केटिंग में एक साल के ट्रेनिंग प्रोग्राम की पेशकश की थी.

पात्र कैडेट 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने पहले से ही भारत में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए), भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) और अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में उच्च सैन्य शिक्षा प्राप्त करते रहे हैं.

इस प्रोग्राम के लाभार्थियों में एक 27 वर्षीय युवा भी है जो मालवीय नगर के उस फ्लैट में रह रहा है, जिसका ऊपर जिक्र किया गया है.

अगस्त, 2021 में जब तालिबान ने सत्ता में वापसी की, उस समय वह देहरादून स्थित आईएमए में ट्रेनिंग ले रहा था. दिसंबर में अपना कोर्स पूरा होने के बाद उसे तब बड़ी राहत मिली जब भारत सरकार ने 7 फरवरी, 2022 से पंजाब की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी और बिजनेस मार्केटिंग में एक साल के कोर्स की पेशकश की. इस कोर्स का सारा खर्चा भारत सरकार उठाती.

उसने दिप्रिंट को बताया, ‘भारत सरकार की तरफ से हमें पिछले साल तो एक लाइफलाइन मिली थी, लेकिन अब उन्होंने हमें अपने हाल पर छोड़ दिया है. फरवरी 2023 में जैसे ही पंजाब में हमारा कोर्स पूरा हुआ, वीजा विस्तार के हमारे आवेदन को खारिज कर दिया गया.’

उसकी तरह कई अन्य कैडेट भी इसी स्थिति से गुजर रहे हैं, जिनके कोर्स फरवरी में पूरे हो गए. लेकिन वो भारत में ही रहना चाहते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अपने देश में उन्हें जान का खतरा हो सकता है. कुछ का कहना है कि उनके वीजा विस्तार आवेदन को खारिज कर दिया गया है, जबकि अन्य का दावा है कि उनके मौजूदा वीजा को भारत के विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) की तरफ से रद्द कर दिया गया था. और अब उन्हें निर्वासन का डर सता रहा है.

उसने कहा, ‘हम अब यहां अवैध आप्रवासियों के तौर पर रह रहे हैं. हमें डर है कि कहीं भारत ‘उपहार’ के तौर पर हमें तालिबान को न सौंप दे.’

हालांकि, विदेश मंत्रालय (एमईए) के सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि ऐसा कुछ नहीं है.

विदेश मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, ‘हम नियमित रूप से सभी अफगान नागरिकों का वीजा विस्तार कर रहे हैं. कुछ स्वेच्छा से अफगानिस्तान लौट आए हैं. वीजा बढ़ाया जाएगा और किसी को वापस जाने को मजबूर नहीं किया जाएगा.’

तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत सरकार की अफगानिस्तान में कोई राजनयिक उपस्थिति नहीं रही है. यद्यपि पिछले जून में एक ‘तकनीकी’ टीम काबुल मिशन पर भेजी गई थी.

इस माह के शुरू में तालिबान सरकार के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के यहां विदेश मंत्रालय के प्रमुख कैपेसिटी बिल्डिंग प्लेटफॉर्म भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (आईटीईसी) के तहत आयोजित एक ऑनलाइन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में भाग लेने की उम्मीद थी.

ऐसी रिपोर्टें भी आई हैं कि तालिबान ने नई दिल्ली स्थित अपने दूतावास में एक प्रतिनिधि तैनात करने की अनुमति देने के लिए भारत पर जोर डालना शुरू कर दिया है. प्रस्तावित उम्मीदवारों में से एक अब्दुल कहर बाल्खी है, जो तालिबान शासन के विदेश मंत्रालय के विवादास्पद प्रवक्ता हैं और जिसने कथित तौर पर पत्रकारों को जान से मारने की धमकियां देकर डराने की कोशिश की थी.


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बेरोजगार, डिलीवरी बॉय जैसे छोटे-मोटे काम कर रहे

भारत ने पिछले साल करीब 80 अफगान कैडेटों को अंग्रेजी और मार्केटिंग के ट्रेनिंग कोर्सेज की पेशकश की थी. कुछ को पंजाब के फगवाड़ा स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में और अन्य को दिल्ली में एप्टेक ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में प्रशिक्षित किया गया.

इन्हीं में कुछ कैडेट्स ने दिप्रिंट से बताया कि फरवरी में अपना पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद लगभग 30 कैडेट वित्तीय दिक्कतों या फिर पारिवारिक वजहों से अफगानिस्तान लौट गए. उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान में अपनी सुरक्षा को लेकर डर की वजह से कुछ अन्य ईरान या पाकिस्तान चले गए.

फिलहाल, 48 कैडेट भारत में रह रहे हैं, जिनमें लगभग सभी का कहना है कि उनके वीजा या तो रद्द कर दिए गए हैं या विस्तार अनुरोध को खारिज कर दिया गया है.

इन कैडेट्स की उम्र 22 से 28 वर्ष के बीच है और वे दिल्ली के तिलक नगर, मालवीय नगर और भोगल आदि इलाकों में रहते हैं.

किराया वहन करने के उद्देश्य से पांच से सात कैडेट एक साथ मिलकर किसी अपार्टमेंट में रहते हैं. उदाहरण के तौर पर, सात अफगान कैडेट भोगल में टू बीएचके फ्लैट में साथ रहते हैं और 14,000 रुपये का मासिक किराया मिलजुलकर भरते हैं.

Afghan cadets' uniforms in a Delhi flat
राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले दो अफगान कैडेटों ने अपनी सैन्य वर्दी दिखाई | फोटो: पिया कृष्णनकुट्टी | दिप्रिंट

इनमें से एनडीए में तीन साल और आईएमए में एक साल की ट्रेनिंग पूरी कर चुके एक कैडेट ने बताया, ‘हम सभी अपनी बचत से भुगतान कर रहे हैं. हममें से कुछ ने अनौपचारिक नौकरियां पाने की कोशिशें भी कीं, जिसके लिए आधार और वैध वीजा जैसे दस्तावेज आवश्यक नहीं होते हैं.’

उसके मुताबिक, उनके दो फ्लैटमेट एक पैकेज्ड वॉटर कंपनी के लिए डिलीवरी बॉय के तौर पर काम कर रहे थे, लेकिन रमजान की वजह से उन्हें यह काम छोड़ना पड़ा.

उसने बताया, ‘उनके लिए उपवास के दौरान दिन में आठ घंटे काम करना मुश्किल था. लिहाजा, उन्हें इसे छोड़ना पड़ा. इसके अलावा, एक सैन्य कैडेट के तौर पर जब आपको इस तरह के छोटे-मोटे काम करने को बाध्य होना पड़ता है, तो आपकी गरिमा को भी ठेस पहुंचती है.’


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एग्जिट फॉर्म, ‘प्रतिशोध में हत्या’ की आशंका

भारत में अटके कुछ अफगान सैन्य कैडेटों को एग्जिट फॉर्म मिल चुके हैं, जो सरकार की तरफ से जारी ऐसा दस्तावेज है, जो किसी व्यक्ति को देश छोड़ने की अनुमति देता हैं. हालांकि, फॉर्म में इस्तेमाल की गई भाषा ने कुछ कैडेट्स को भ्रमित कर दिया है.

उदाहरण के तौर पर, पंजाब की लवली यूनिवर्सिटी में पाठ्यक्रम पूरा करने वाले एक कैडेट को कोर्स पूरा होने के दो दिन बाद ही 9 फरवरी को एक्जिट फॉर्म मिला. इसमें कहा गया है कि उसे 22 फरवरी तक भारत छोड़ देना चाहिए.

दिप्रिंट ने इस एग्जिट फॉर्म की एक कॉपी देखी है, जिसमें लिखा है-‘वीजा एक्सटेंशन नहीं दिया जा सकता. इसलिए निर्धारित समय के भीतर देश से बाहर चले जाएं.’

उसने सवाल उठाया, ‘निर्धारित समय के भीतर बाहर चले जाएं’ से उनका क्या आशय है? क्या इसका मतलब यह है कि हम यहां अनिश्चितकाल तक रह सकते हैं, या फिर वे मुझे निर्वासित कर देंगे?’

उसने फॉर्म मिलने के बाद से दो बार वीजा विस्तार के लिए फिर आवेदन करने का दावा किया, लेकिन कहा कि एफआरआरओ से मिली ईमेल में कहा गया है कि आवेदन ‘बंद’ है.

उन्होंने कहा कि इन कैडेट्स को अफगानिस्तान में रह रहे उनके परिवार न लौटने के लिए आगाह कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें आशंका है कि लौटते ही उन्हें निशाना बनाया जा सकता है.

2021 में न्यूयॉर्क स्थित गैर-लाभकारी संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की तरफ से की गई एक पड़ताल बताती है कि तालिबान शासन के पहले तीन महीनों के दौरान अफगान सुरक्षा बलों के 100 से अधिक पूर्व सदस्य या तो मारे गए या फिर गायब कर दिए गए. इसे तालिबान द्वारा उन सभी के खिलाफ ‘प्रतिशोध की कार्रवाई’ के तौर पर देखा गया, क्योंकि ये अफगानिस्तान में पिछली लोकतांत्रिक सरकार का हिस्सा थे.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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