नई दिल्ली: प्लेयर्स अननोन बैटलग्राउंड (पब्जी) अब तक की सबसे अनोखी वजह से चर्चा में है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र हो या सीमा पर तैनात जवान हो सभी न केवल इस गेम का भरपूर आनंद उठा रहे हैं, कई तो इसके आदी हो गए है. आलम ये है कि सेंट्रल रिज़र्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) को तो इसे लेकर लगभग दो महीने पहले एक सर्कुलर भी जारी करना पड़ा है. सर्कुलर में सीआरपीएफ जवानों को इस गेम से दूर रहने को कहा गया है.
सीआरपीएफ ने जारी किया सर्कुलर
सीआरपीएफ के एक उच्च अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘इसे लेकर एक सर्कुलर तो जारी किया गया है लेकिन वो हेडक्वॉटर से जारी नहीं हुआ.’ अधिकारी ने जानकारी देते हुए कहा कि बिहार सेक्टर ने ये सर्कुलर जारी किया है. उन्होंने कहा कि ऐसे सर्कुलर तब जारी किए जाते हैं जब लगता है कि ऐसी किसी चीज़ से जवानों पर असर पड़ सकता है.
अधिकारी ने कहा, ‘हालांकि, अभी ये कोई बहुत बड़ी चिंता की बात नहीं है. लेकिन कई जवान इसे खेलने में लगे रहते हैं. इसकी वजह से जवानों के आपसी संबंध पर असर पड़ने का डर है. इससे जवानों की नींद भी प्रभावित होने की चिंता है.’ दिप्रिंट ने जब कोलकाता में तैनात एक सीआरपीएफ जवान से बात की तो उन्होंने भी सर्कुलर जारी किए जाने की पुष्टि की. उन्होंने कहा, ‘हमें अपने फोन में पब्जी रखने से साफ मना किया गया है.’
‘अटैक हो गया!’
ये मामला सिर्फ सीआरपीएफ तक सीमित नहीं है. एयरफोर्स के एक जवान ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि एयरफोर्स के बैरकों में भी जवान पब्जी खेल रहे हैं. एयरफोर्स के जवान ने दिप्रिंट को अपना निजी अनुभव बताया, ‘ये किस्सा 2018 की जुलाई का है. मेरा तबादला इलाहाबाद में हुआ था. हम फ़ौज के नियम के हिसाब से रात 10 बजे अपने बेड चले आए. मैं थका हारा था और सोने वाला था. वैसे भी सुबह-सुबह हेल्थ रन पीटी के हिसाब से सब सोकर जल्दी उठते हैं. लेकिन एक बंदा था जो कानों में हेड फोन लगाए हुए था और लाइट बंद करके हाथ में मोबाइल लिए कुछ बड़बड़ा रहा था. मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और सो गया.’
‘अचानक मुझे आवाज़ सुनाई दी की अटैक हो गया! अटैक हो गया! मेरे तो कान खड़े हो गए और सोचा ये क्या हो गया? आज ही आया और आज ही अटैक भी हो गया? तुरंत उठा और उस बन्दे से पूछा, ‘सर क्या हुआ? कहां अटैक हुआ?’ लेकिन वो सुन नहीं रहा था. तो मैंने और ज़ोर से बोला! जो भी लोग जो बैरक में सो रहे थे जाग गए. उन्होंने पूछा, ‘क्या हुआ? क्या हुआ?’ मैंने बोला, ‘अरे वो चिल्ला रहे हैं कि अटैक हो गया.’ सब हंसने लगे और बोले कि अरे वो पब्जी खेल रहा है! मैं उस दिन सो नहीं पाया क्योंकिवो पब्जी में लगा था और आवाज़ कानो में गूंज रही थी.’
उस एयरफोर्स जवान ने आगे कहा, ‘ मैंने सोचा कि यार, मेरी तो छोड़ो, वो कैसे सोएगा. तब से मैंने देखा कि वही नहीं, बल्कि और लोगों का भी पब्जी में इंटरेस्ट बढ़ता चला जा रहा है. बहुत लोग देर रात तक जागने लगे हैं इस गेम को खेलते रहते हैं. पता नहीं देर रात तक पब्जी खेल कर ये लोग कैसे ड्यूटी कैसे लेते हैं.’
नाम नहीं बताने की शर्त पर कोयंबटूर के सुलूर में तैनात एक और एयरफोर्स जवान ने बताया कि वहां तैनात कई जवान भी इस गेम को खेलते हैं. इन जवानों की तादात अच्छी ख़ासी है. शादी शुदा जीवन बिता रहे इस जवान का कहना था कि वो ख़ुद तो ये गेम नहीं खेलते क्योंकि वो यूपीएससी की तैयारी में लगे हैं. लेकिन कई ऐसे जवान हैं जो अभी शादी शुदा नहीं है, ऐसे में काम से छूटने के बाद ये जवान इस गेम में रम जाते हैं. सेना के एक अधिकारी ने भी दिप्रिंट को यही जानकारी दी कि सेना का भी बिलकुल यही हाल है.
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक?
भारतीय फौज और सीआरपीएफ से जुड़े रहे मनोवैज्ञानिक डॉ सिद्धार्थ सिन्हा का कहना है, ‘मैंने पब्जी का आगमन देखा है. लेकिन जो लोग जवानों के पब्जी खेलने से चिंतित हैं, उन्हें ये चिंता तब ही करनी चाहिए जब इसकी वजह से जवानों के प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ने लगे. अगर इसे खेलने से कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता तो सिर्फ इतनी सी सलाह दी जा सकती है कि कितनी देर तक ये गेम खेलना उनके लिए ठीक है.’
सिद्धार्थ का कहना है कि ये सिर्फ गेमिंग है और इसे लेकर चिंता करने की दरकार नहीं है. उन्होंने ये भी कहा कि इसे लेकर जितना बवाल मचाया जाता है वो भी ठीक नहीं है. सिद्धार्थ कहते हैं कि ऐसे गेम्स से जुड़ी ज़्यादातर ख़बरों को बेहद बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है.
गेमिंग जैसे विषयों पर लिखने वाली मनोवैज्ञानिक बिंदा सिंह का कहना है कि गेमिंग एक नशे की तरह होता है. उन्होंने ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर (ओसीडी) नाम की एक बीमारी का ज़िक्र किया. इससे ग्रस्त व्यक्ति को बार-बार अपनी लत की तरफ लौटने का मन करता है. जवानों के मामले पर बिंदा कहती हैं, ‘इनके पास मनोरंजन के नाम पर बहुत कुछ नहीं होता.’ ख़ास तौर पर वो जवान जो शादी शुदा नहीं होते या शादी शुदा होकर भी अकेले रह रहे होते हैं, उन्हें दिमाग़ को कहीं लगाए रखने के लिए साधन चाहिए होता है.
बिंदा कहती हैं कि उनकी जानकारी के मुताबिक बिहार पुलिस के जवान भी इस गेम से अछूते नहीं है. उनके मुताबिक सबके पास फोन और मुफ्त इंटरनेट है जिसकी वजह से गेमिंग की ओर मुड़ना बेहद आसान हो गया है. गेमिंग में नशे से जुड़ी चीज़ों की तरह कुछ ख़र्च भी नहीं करना पड़ता. जबकि ये किसी नशे की तरह ही काम करता है. बिंदा का मानना है, ‘जवानों के लिए मनोरंजन के साधनों की व्यवस्था करवाने की दरकार है.’
कई वजहों से विवादों में रहा पब्जी
आपको बता दें कि इसके पहले कोरियाई कंपनी ब्लूहोल के इस गेम को लेकर कई विवादित ख़बरें आई हैं. एक ख़बर ये आई थी कि इसे 48 घंटे से अधिक समय तक खेलने वाले एक लड़के की मौत हो गई. हालांकि, बाद में इस ख़बर का खंडन भी हुआ था. वहीं, ये ख़बर भी आई थी कि एक दूल्हा शादी के मंडप में पब्जी खेलते देखा गया था. वहीं, देश भर के कई जगहों पर इसके बैन से जुड़ी ख़बरे ंभी आई हैं.
पीएम मोदी ने नाम लेकर और फेमस किया
इसके फेम का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी तक ने एक महिला के सवाल के जवाब में इस गेम का ज़िक्र करके इस हर घर में पहुंचा दिया. पीएम मोदी की परीक्षा पर चर्चा के दौरान उनको एक महिला ने जब बताया कि उनका बेटा ऑनलाइन गेमिंग की लत में पढ़ाई नहीं कर पा रहा. जवाब में पीएम ने पूछा था, ‘ये पब्जी वाला है क्या?’ पीएम के इस सवाल के बाद मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिए ये गेम घर-घर की जानकारी में आ गया.
आपको बता दें कि पब्जी का सातवां सीज़न आने वाला है. इस अपडेट का वर्जन 0.12.5. होगा जिसमें नए हथियारों समेत कई नए फीचर होंगे. ऐसे में ज़ाहिर सी बात है कि आम हो या ख़ास, वो फिलहाल तो इस खेल की लत से दूर नहीं जाने वाले. वहीं, देश के जवान भले ही असली युद्ध के मैदान से दूर हों. लेकिन प्लेयर्स अननोन बैटलग्राउंड यानी पब्जी में उनकी जंग जारी रहने वाली है. एक आशंका ये भी है कि जिस रफ्तार में इस गेम का चलन बढ़ रहा है उसकी वजह से जवानों की कार्यक्षमता पर असर पड़ सकता है और भविष्य में और भी सर्कुलर देखने को मिल सकते हैं.