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Monday, 25 November, 2024
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भारत ने बनाया था प्लान, इसी F-16 से पाकिस्तान का न्यूक्लियर प्लांट उड़ने वाला था

पुलवामा हमले के बाद भारत द्वारा की गई एयर स्ट्राइक के बाद लोग न्यूक्लियर हमले की बात करने लगे थे, लेकिन न्यूक्लियर युद्ध की बात जितना आसान है, होना उतना ही मुश्किल.

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पुलवामा हमले के बाद भारत द्वारा की गई एयर स्ट्राइक के बाद लोग न्यूक्लियर हमले की बात करने लगे थे. कहा जा रहा था कि अब भारत और पाकिस्तान न्यूक्लियर युद्ध शुरू कर देंगे, लेकिन न्यूक्लियर युद्ध की बात करना जितना आसान है उसका होना उतना ही मुश्किल. कहा जा रहा है कि भारत-पाक के बीच इस बार मध्यस्थता अमेरिका ने करवाई है और इसी के साथ दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर युद्ध की बातें हवा-हवाई हो गई हैं. पर इस न्यूक्लियर जोशो-खरोश के साथ एक रोचक घटना जुड़ी है.

एक समय ऐसा भी था जब भारत पाकिस्तान के न्यूक्लियर लैब को उड़ा देना चाहता था, ताकि पाकिस्तान एटम बम बना ही न सके. मगर उसकी योजनाओं पर पानी फिर गया.

भारत और पाकिस्तान दोनों ही हथियारों की रेस में थे

भारत द्वारा पाकिस्तान की परमाणु लैब को उड़ाने के प्लान का किस्सा (डिसेप्शनः पाकिस्तान, द यूनाइटेड स्टेट्स एंड द ग्लोबल न्यूक्लियर विपन्स कांस्पायरेसी) नामक किताब में मिलता है. जिसे एड्रियन लेवी और कैथिरिन स्कॉट क्लार्क ने मिलकर लिखा था.

1947 में दो देश बनने के बाद भारत और पाकिस्तान तीन बार भिड़ चुके थे और हथियारों की रेस में भी लग रहे थे. भारत तो चीन से भी भिड़ चुका था. नतीजन 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने अपना एटम बम टेस्ट कर लिया था. मगर इस बम की क्षमता द्वितीय विश्व युद्ध में हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से भी कम थी. पर इसकी वजह से भारत को कई आर्थिक प्रतिबंध भी झेलने पड़े थे. पाकिस्तान को जब भारत के परमाणु बम का पता चला तो उन्होंने भी अपना कार्यक्रम बढ़ाना शुरू किया.

किताब के मुताबिक जब पाकिस्तान ने एटम बम बनाने की योजना शुरू की तब पाक के खिलाफ कई यूरोपीय देशों ने आवाज उठाई, लेकिन अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया. इस बीच पाक को अब्दुल कादिर खान नाम के कथित वैज्ञानिक ने 7 साल में एटम बम बनाने का वादा कर दिया.

अमेरिका से परमाणु बम बनाने का फॉर्मूला मिला पाकिस्तान को

किताब के मुताबिक दिसंबर 1975 में पाकिस्तानी आर्मी के टॉप कमांडर कराची एयरपोर्ट पर पहुंचे. अब्दुल कादिर खान एक सूटकेस लेकर आया था जिसमें परमाणु बम बनाने का तरीका था.

कादिर खान एक ट्रांसलेटर के तौर पर किसी खुफिया लैब में काम करता था. यहीं से उसने सारे जरूरी दस्तावेज चुराकर परमाणु बनाने का फॉर्मूला पाकिस्तान के तात्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार भुट्टो को सौंपा. इस बम को पश्चिमी अखबारों ने ‘इस्लामिक बम’ कहा.

पाक अधिकृत कश्मीर के कहूटा में बम बनाने के लिए लैब बनाई गई. पाक में परमाणु बम बनाने के लिए दुनिया के उन देशों ने मदद करनी शुरू की, जो अब तक यूएन के प्रतिबंध के कारण कुछ कर नहीं पा रहे थे. चीन ने ये सुनिश्चित किया कि इस बीच कोई समस्या न आए. पाकिस्तान के सहयोगी देशों की तरफ से उनको हर जरूरी सामान पहुंचाया जाने लगा.

इजराइल और भारत ने मिलकर बनाई योजना

भारत में उस वक्त काफी राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई थी. इंदिरा गांधी की सरकार इमरजेंसी के बाद विदा हुई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का मत था कि पाकिस्तान ने अगर बम बना भी लिया तो भारत की आर्मी पाक को हरा देगी. लेकिन बाकी मंत्रियों का कहना था कि हमें भी अपना परमाणु बम बनाने का प्रोग्राम शुरू कर देना चाहिए, लेकिन मोरारजी देसाई और अटल बिहारी वाजपेयी इसके पक्ष में नहीं थे. तब तक ये सरकार ही गिर गई.

1980 में इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में आईं. लेकिन पिछली बार के अमेरिका की धमकियों के बाद उन्होंने बम बनाने का साहस नहीं किया. पर इंदिरा सरकार ने सोचा कि परमाणु बम बनाने से अच्छा है कि पाकिस्तान के कहूटा वाले एटम बम की लैब को ही उड़ा दिया जाए. इसके लिए भारत ने तय किया कि इसमें इजराइल की मदद ली जाएगी.

किताब के मुताबिक इजराइल पहले ही इराक के न्यूक्लियर रिएक्टर को उड़ा चुका था. उसे पाक में बन रहे ‘इस्लामिक बम’ से डर था. योजना में तय किया गया कि पाक एयरफोर्स को भारत के वेस्ट बॉर्डर पर व्यस्त किया जाएगा. इस बीच इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद कहूटा वाली लैब को उड़ा देगी.

अमेरिका ने पता चलते ही इजराइल पर दबाव बनाया

1980 के आस-पास अमेरिका, रूस के प्रभाव को रोकने के लिए अफगानिस्तान में ‘मुजाहिदीन’ ट्रेनिंग कैंप चला रहा था. पाकिस्तान में भी इसका प्रभाव था. अमेरिका ने भारत-इजराइल के मास्टर प्लान के बारे में पाक को बता दिया. किताब के मुताबिक पाकिस्तान ने भारत को आगाह किया कि अगर ऐसा कुछ भी हुआ तो वो भारत के ट्रॉम्बे वाले न्यूक्लियर प्लांट को उड़ा देगा. कारणवश भारत को अपना प्लान बदलना पड़ा.

बाद में 1984 में इजराइल ने प्रस्ताव दिया कि वह खुद ही F-16 मिसाइल दाग कर पाकिस्तान की लैब को उड़ा देगा. लेकिन जैसे ही अमेरिका को इस बात की खबर लगी, उसने खुले तौर पर पाक के समर्थन में आने की बात कह दी. इजराइल ने अटैक करने का अपना इरादा बदल लिया.

(इस आर्टिकल में इस्तेमाल किये गये फैक्ट्स ‘डिसेप्शनः पाकिस्तान, द यूनाइटेड स्टेट्स एंड द ग्लोबल न्यूक्लियर विपन्स कांस्पायरेसी’ किताब से लिये गये हैं.)

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