नई दिल्ली: मार्केट रिसर्च डेटा से पता चला है कि पिछले तीन महीने में भारत के घरेलू बाज़ार में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन या एचसीक्यू की 22 करोड़ से अधिक गोलियां बेची गई हैं, जो शुरुआती दौर में कोविड की रोकथाम और इलाज में अग्रणी दवा बनकर उभरी थीं.
केमिस्ट्स, ई-फार्मासीज़ और सरकार के जन औषधि आउटलेट्स की बिक्री और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की खरीद को मिलाकर, एक अनुमान के मुताबिक भारत में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की 22.5 करोड़ से अधिक गोलियां बेची गई हैं. और इसमें अस्पतालों द्वारा खरीदी गई दवा शामिल नहीं है क्योंकि वो आंकड़े आसानी से उपलब्ध नहीं हैं.
दवा विक्रेताओं के अखिल भारतीय संगठन, (एआईओसीडी) की मार्केट रिसर्च विंग, एडब्लूएसीएस द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक दवा ने न सिर्फ घरेलू बाज़ार में रिकॉर्ड बिक्री दर्ज की बल्कि मार्च और मई के बीच इसके निर्यात में भी 700 प्रतिशत की ज़बर्दस्त उछाल देखी गई. ये संगठन 8.5 लाख दवा विक्रेताओं की लॉबी है.
एआईओसीडी के डेटा के अनुसार, पिछले साल तक भारत में करीब 24 करोड़ गोलियां खाई गईं थीं- हर महीने लगभग 1.6 करोड़ पत्ते.
मलेरिया की दवा- जो एचसीक्यू के नाम से लोकप्रिय है, विश्व स्तर पर भारत की रणनीतिक सम्पत्ति बन गई और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में, 3 रुपए की इस गोली को, एक ‘गेम चेंजर’ करार दिया.
मार्च में, ट्रम्प के दावे के बाद, भारत की टॉप दवा निर्माता कम्पनियों- इपका लैबोरेट्रीज़ और ज़ाइडस कैडिला- को अमेरिका और दूसरे विदेशी बाज़ारों के लिए, दवा बनाने के ‘बड़े ऑर्डर‘ मिल गए थे.
कैमिस्ट्स, ई-फार्मासीज़ ने 11 करोड़ गोलियां बेचीं
फरवरी तक ऑफलाइन और ऑनलाइन फार्मासीज़ पर एचसीक्यू की बिक्री, करीब 2 करोड़ गोलियां या उससे कम चल रही थी. आंकड़ों के मुताबिक ये दवा मलेरिया की रोकथाम व इलाज या लूपस और रूमेटाइड आरथ्राइटिस जैसी कुछ ऑटो-इम्यून बीमारियों के इलाज के लिए खरीदी जाती थी.
लेकिन मार्च में, घबराहट में हुई खरीद और पूरे भारत में की गई जमाख़ोरी से, इस दवा की मांग में उछाल आ गया.
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मार्च के अंत तक इनकी बिक्री, तेज़ी से बढ़कर 3.8 करोड़ गोलियों तक पहुंच गई, जो 90 प्रतिशत का उछाल था.
अप्रैल में, ये करीब 3.4 करोड़ गोलियां थीं, जिसके बाद मई में 3.7 करोड़ गोलियां हो गईं. इस तरह कुल मिलाकर कैमिस्ट्स और ई-फार्मासीज़ ने पिछले तीन महीने में करीब 11 करोड़ गोलियां बेची.
एचसीक्यूज़ एपीआई और तैयार गोलियों का निर्यात
भारत, जो कोरोना वैश्विक महामारी से पहले भी दवाओं का एक प्रमुख निर्यातक रहा है, ने कई देशों को एचसीक्यू निर्यात की है. ये दवा दो श्रेणियों में निर्यात की गई- मानवीय सहायता और आर्थिक कारण.
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली, फार्मास्यूटिकल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (फार्मएक्सिल) की ओर से साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत ने जनवरी में दस लाख डॉलर से भी कम मूल्य की एचसीक्यूज़ (तैयार गोलियां) निर्यात की थीं. मई तक आते-आते ये संख्या 15 गुना बढ़ गई, जब भारत ने 1.49 करोड़ डॉलर मूल्य की एचसीक्यूज़ निर्यात की.
जनवरी के बाद से भारत का, एचसीक्यू की तैयार गोलियां बनाने वाले कच्चे माल- एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स (एपीआई)- निर्यात भी चार गुना बढ़ गया.
आंकड़ों के अनुसार, जनवरी में भारत ने दस लाख डॉलर से कम मूल्य की एपीआईज़ का निर्यात किया था, जो मई में बढ़कर चार गुना हो गया, जब सरकार ने दुनिया भर में 44 लाख डॉलर मूल्य की एपीआईज़ निर्यात की.
सरकार की एचसीक्यू खरीद
नरेंद्र मोदी सरकार ने इस महीने के शुरू में ऐलान किया कि प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि परियोजना (पीएम-बीजेपी) स्कीम के तहत, मार्च और अप्रैल के बीच एचसीक्यू की 50 लाख गोलियां बेची गईं. लेकिन उसने अप्रैल के बाद के बिक्री आंकड़े जारी नहीं किए.
अप्रैल में, दवा की भारी मांग को देखते हुए, जन-औषधि दवा केंद्रों ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की, एक करोड़ गोलियों की खरीद की.
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उसी महीने एक अलग ऑर्डर में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने इपका लैबोरेट्रीज़ और ज़ाइडस कैडिला से, दस करोड़ गोलियां खरीदीं.
केंद्र ने ये ऑर्डर तब दिया था, जब देश की शीर्ष रिसर्च बॉडी, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने सिफारिश की थी कि कोविड के ऊंचे जोखिम वाले ग्रुप्स के लिए, रोकथाम के तौर पर एचसीक्यू दवा इस्तेमाल की जाए.
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