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Friday, 22 November, 2024
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अर्थशास्त्र विशेषज्ञ मार्टिन वुल्फ की सलाह- भारत मांग पैदा करने के लिए खर्च बढ़ाये, घाटे की चिंता छोड़े

द फाइनेंशियल टाइम्स के मुख्य आर्थिक स्तंभकार मार्टिन वुल्फ ने दिप्रिंट के कार्यक्रम ऑफ द कफ में कहा कि भारत अपना कर्ज-जीडीपी अनुपात 90 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है, लेकिन उसे विदेशी मुद्रा में उधार लेने से बचना चाहिए.

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नई दिल्ली : द फाइनेंशियल टाइम्स के मुख्य आर्थिक स्तंभकार मार्टिन वुल्फ का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को महामारी ने गहरी चोट पहुंचाई है और सरकार के लिए जरूरी है कि मांग बढ़ाने पर ज्यादा व्यय करे.

दिप्रिंट के डिजिटल कार्यक्रम ऑफ द कफ में एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ बातचीत के दौरान वुल्फ ने कहा कि सरकार को वित्तीय प्रोत्साहन को और मजबूती से बढ़ाना चाहिए, खासकर यह देखते हुए कि 2020-21 में अर्थव्यवस्था के चौतरफा दबाव में घिरने का अनुमान है.

उन्होंने कहा, ‘सरकार को मांग बनाए रखने के लिए और अधिक सहायता देनी होगी.’ साथ ही जोड़ा कि सरकार सीधे लोगों तक और अधिक पैसा पहुंचा सकती है.

उन्होंने कहा कि इस कठिन समय में एक साल के लिए आय के साधन बनाए रखना सबसे जरूरी है और राजकोषीय घाटे की चिंता छोड़ देनी चाहिए, साथ ही जोड़ा कि भारत और उधार लेने की स्थिति में है और अपने कर्ज-जीडीपी अनुपात को मौजूदा 70 फीसदी से बढ़ाकर 90 प्रतिशत तक कर सकता है. हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विदेशी मुद्रा में उधार लेना भारत के लिए अच्छा विचार नहीं होगा.

उन्होंने कहा, ‘मांग फिर बढ़ने से आर्थिक गिरावट थमेगी और व्यापारिक विश्वास की स्थिति में सुधार होगा.’ साथ ही जोड़ा इससे बेरोजगारी की समस्या भी घटेगी.

उन्होंने कहा, ‘अर्थव्यवस्था को इतना ज्यादा सिकुड़ने देना चिंताजनक है. महामारी से पहले भी बेरोजगारी एक बड़ी समस्या थी.’

कोविड-19 महामारी और उसके बाद लंबे लॉकडाउन, जिसने आर्थिक गतिविधियों को पूरी तरह बाधित कर दिया, के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था 5-12 प्रतिशत के बीच ही सीमित रहने का अनुमान है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपने हालिया अध्ययन में भारतीय अर्थव्यवस्था 4.5 प्रतिशत से कम रहने का अनुमान लगाया है.

वुल्फ ने कहा कि आकलन 10 फीसदी अंकों की स्विंग का संकेत देते हैं और गिरावट नाटकीय है क्योंकि शुरुआत में अर्थव्यवस्था 5-6 फीसदी की दर से बढ़ने की संभावना थी और अब 4.5 प्रतिशत तक सीमित रहने के आसार हैं.

वुल्फ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बोल्ड करार दिया. लेकिन साथ ही कहा कि कुछ मामलों में यह बोल्डनेस बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं रही. उन्होंने कहा, ‘नोटबंदी समझदारी भरा फैसला नहीं था और न ही रातोरात लॉकडाउन का निर्णय उचित था.’

सवालों के घेरे में भारत के आंकड़े

वुल्फ ने कहा कि वह भारतीय आर्थिक आंकड़ों पर भरोसा नहीं करते. हालांकि, भारतीय आंकड़े हमेशा विश्वसनीय रहे हैं.

वुल्फ ने कहा, ‘मुझे लगता है कि कुछ वर्षों की वास्तविक वृद्धि रिपोर्ट में दिए आंकड़ों की तुलना में काफी कम हो सकती है. यह दुनिया में भारत की विश्वसनीयता को प्रभावित करने वाला है.’ साथ ही जोड़ा, ‘मैंने सोचा था अब तक विसंगतियों को समझने और उन्हें दूर करने के लिए गंभीर प्रयास हो चुके होंगे. लेकिन ऐसा होता दिख नहीं है. यह कहीं न कहीं कुछ छिपाने का सचेष्ट प्रयास नजर आता है.’

सरकारी बैंकों का निजीकरण

वुल्फ ने सरकार संचालित बैंकों के निजीकरण के कदम का समर्थन किया और बताया कि कैसे भारत की इस तात्कालिक समस्या ने ट्विन बैलेंस शीट को लेकर बैंकों और कॉरपोरेट दोनों के झंझट खत्म कर दिए.


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उन्होंने कहा, ‘मैं सरकारी बैंक के निजीकरण के पक्ष में है, जैसा कि मुझे लगता है कि इनमें कुछ के मामले में फैसला राजनीतिक तौर पर काफी मुश्किल रहा होगा.’

चीनी उत्पाद हटाने से लागत बढ़ेगी

वुल्फ ने कहा कि चीनी उत्पादों की जगह घरेलू उत्पादों को बढ़ावा एक महंगा उपाय साबित होगा.

उन्होंने कहा, ‘चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर है. उत्पाद विनिर्माण में उसका दायरा बहुत बड़ा है जो आमतौर पर सस्ते और गुणवत्तापूर्ण भी होते हैं. कोई भी इसे न तो विस्थापित कर सकता और न इसकी जगह ले सकता है क्योंकि इसे बदलने का सीधा असर लागत पर पड़ेगा.

वुल्फ कहते हैं, इसकी बजाये भारत चीन और पश्चिमी देशों के बीच चलने वाले व्यापार युद्ध के मौके को भुना सकता है, लेकिन इन अवसरों का फायदा उठाने के लिए उपयुक्त बदलाव करने होंगे और श्रम-प्रोत्साहन, निर्यात-उन्मुख उद्योगों को मिलाना होगा.

उन्होंने कहा, ‘आपके पास विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचे, विश्वस्तरीय इंटरनेट कनेक्शन, मेहनती, सुप्रशिक्षित तथा अनुशासित कार्यबल और नौकरशाही के दखल बिना सारी व्यवस्था करने की क्षमता होनी जरूरी है.’

7-8 फीसदी वृद्धि के लिए भारत का निर्यात बढ़ाना जरूरी

वुल्फ ने कहा कि भारत के लिए निर्यात को कम से कम जीडीपी की जितनी तेजी से बढ़ाए बिना 7-8 फीसदी की वृद्धि दर हासिल करना असंभव है.

उन्होंने कहा, ‘निर्यात 8-10 फीसदी बढ़ाने की जरूरत है. यह संभव नहीं हो सकता कि भारत एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था हो और तेजी से आगे बढ़े. इसे फॉरवर्ड लुकिंग, आउटवर्ड लुकिंग और मुक्त होने की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘अगर भारत एक विकसित अर्थव्यवस्था बनना चाहता है तो विश्वस्तरीय उत्पादों को तैयार करने वाले विश्वस्तरीय उद्योगों की जरूरत होगी और यह कारोबार को लेकर सशंकित होने से संभव नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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