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Saturday, 16 November, 2024
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अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो का बयान- चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से मुकाबले में भारत खुद को अकेला महसूस न करे

दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ़ शेखर गुप्ता को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पियो कहते हैं कि सीसीपी दुनिया भर में मुसीबतों की जड़ है और सभी देश अब इसे समझ रहे हैं.

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नई दिल्ली: हठधर्मी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को पीछे धकेलने और उसके खिलाफ डट कर खड़े होने में भारत को ‘अकेला महसूस नहीं करना चाहिए’, क्योंकि दुनिया भर के देशों को ‘मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा का ख़तरा’ नज़र आने लगा है. ये विचार हैं अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल आर पोम्पियो के, जो उन्होंने मंगलवार को दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ़ शेखर गुप्ता को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में व्यक्त किए.

पोम्पियो, जो अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क टी एस्पर के साथ 26 घंटे के दिल्ली दौरे पर थे, ने कहा कि भारत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे समान विचारधारा वाले देशों के साथ है और ‘चाइनीज़ कम्यूनिस्ट पार्टी’ के खिलाफ संघर्ष में, कभी ख़ुद को अकेला महसूस नहीं कर सकता.

पोम्पियो ने कहा, ‘मैंने अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच के रिश्तों को आगे बढ़ते, गहराते और व्यापक होते देखा है. हमें क्वॉड कहा जाता है, लेकिन एक पल के लिए नाम को अलग रख दीजिए. हम चार बड़े लोकतंत्र हैं. जिनकी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं और जो क़ानून का शासन और पारदर्शिता साझा करते हैं. इस तरह के रिश्तों के साथ इनमें से कोई देश कभी अकेला नहीं होता.’

डोनाल्ड ट्रंप की कैबिनेट के शीर्ष सदस्य ने उइगर मुसलमानों के साथ हो रहे चीन के बर्ताव की तुलना 1930 के दशक में नाज़ी जर्मनी के हाथों यहूदियों पर हुए ज़ुल्म से की.

पोम्पियो भारत-अमेरिका के बीच तीसरे दौर की टू प्लस टू मंत्री वार्ता के लिए नई दिल्ली आए थे, जिसके बाद एक प्रमुख रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर हुए और दोनों पक्षों ने अपनी रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत करने का वचन लिया.

वो ‘चाइनीज़ कम्यूनिस्ट पार्टी’ क्यों कहते हैं, चीन क्यों नहीं

पोम्पियो के अनुसार ये चीन के लोग नहीं बल्कि चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी है, जो मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा पर चलती है, जिसका अब दुनिया को ‘मुक़ाबला’ करना चाहिए.

विदेश मंत्री ने कहा, ‘चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी हर जगह एक ही चीज़ चाहती है- वो नियंत्रण करना चाहते हैं, हावी होना चाहते हैं, वो राजनीतिक प्रभाव चाहते हैं, कुछ निकालना चाहते हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में आप यही देखते हैं…ये सब शिकारी आर्थिक गतिविधियां हैं, जिनका एक छोटा सा मक़सद किसी के लिए सड़क बनाना होता है, लेकिन अस्ली मक़सद उस देश में अपने दांत गड़ाना होता है, जिससे उस जगह सियासी प्रभाव डाल सकें और सही समय आने पर, उस मुल्क से नज़राना वसूल कर सकें.’

पोम्पियो ने आगे कहा, ‘चीनियों का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसमें उन्हें लगता है कि कुछ देशों को उन्हें नज़राना पेश करना चाहिए. ये वही मॉडल है जिसे अब चाइनीज़ कम्यूनिस्ट पार्टी ने अपनाया है. ये दुनिया के लिए ख़तरनाक है और मुझे यक़ीन है कि भारत, अमेरिका और दूसरे आज़ादी पसंद देश  इसे इस तरह पीछे धकेलेंगे कि दुनिया एक ज़्यादा स्थिर और सुरक्षित जगह बन जाएगी.’

उन्होंने कहा, ‘इस साझा चिंता के साथ कि चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी क्या करना चाहती है…चाहे वो जापानियों के मामले में सेंकाकू आईलैण्ड्स हों, या ऑस्ट्रेलियंस के मामले में उसके चारों ओर फैले पैसिफिक आईलैण्ड्स में मौजूद वास्तविक ख़तरे हों…उन्होंने ऑस्ट्रेलिया पर पूरा बोझ डाल दिया है, जबकि ऑस्ट्रेलिया ने सिर्फ ये कहने की गुस्ताख़ी की थी, कि वूहान से शुरू हुए वायरस की जांच जाएगी. ये दादागिरी है, और चाइनीज़ कम्यूनिस्ट पार्टी इसी तरह की तरकीबें इस्तेमाल करती है, और इसलिए हमें बस साथ खड़े होने की ज़रूरत है’.

पोम्पियो ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि, लद्दाख़ में एलएसी पर छह महीने से चल रहे गतिरोध के मामले में, भारत चीन के साथ जो मुसीबत झेल रहा है, जिसमें उसके 20 सैनिक मारे गए हैं, वो भी चाइनीज़ कम्यूनिस्ट पार्टी की वजह से है.

उन्होंने कहा, ‘दुनिया में जो मुसीबत है, जो चुनौतियां हैं, चाहे वो फिलहाल आपकी (भारत के) उत्तरी सीमा पर हों, या ये तथ्य हो कि वायरस बाहर निकल गया, और चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी समय रहते, दुनिया को इससे अवगत कराने में नाकाम रही, जिससे इस अनकही मुसीबत को रोका नहीं जा सका’.

‘वो चीनी लोग नहीं थे, वो कम्युनिस्ट पार्टी थी, एक सत्तावादी शासन जो ऐसे संकट से उस तरह निपटने में, बिल्कुल नाकारा साबित हुआ, जिसकी पूरी दुनिया जायज़ तौर पर उम्मीद करती है और जिसका उसने वास्तव में दुनिया से वादा किया था.’

महासचिव शी के राष्ट्रीय पुनर्जागरण में है अस्ली इरादा

पोम्पियो, जो शी जिंपिंग को भी ‘राष्ट्रपति शी’ कहने की बजाय, सीसीपी में उनके ओहदे की वजह से, ‘महासचिव शी’ कहते हैं, ने कहा कि शी की ‘राष्ट्रीय पुनर्जागरण’ योजना में, ‘असली अर्थ और असली इरादा है’.

बाद के मालदीव, श्रीलंका और इंडोनेशिया के उनके दौरे के बारे में पूछे जाने पर, पोम्पियो ने कहा: ‘दुनिया के सामने जो चुनौती है उसी विचारधारा से आती है, जिसका प्रतिनिधित्व महासचिव शी जिंपिंग करते हैं, जो राष्ट्रीय पुनर्जागरण की बात करते हैं. असली मायने इन्हीं शब्दों में हैं, इन्हीं के पीछे उनकी असली मंशा है’.

उस ‘इरादे’ को उन्होंने ऐसे समझाया, ‘ये सिर्फ चीन पर राज करना नहीं है. चीन में सिर्फ ये काफी नहीं है, कि पूरी पहली द्वीप श्रंखला में आपकी ताक़त हो, ये एक विचार है जो कहता है, कि चीन एक मध्य साम्राज्य है, ये एक केंद्र है और इसका आधिपत्य, सिर्फ अपने स्थानीय इलाक़े से आगे बढ़कर, कहीं अधिक व्यापक क्षेत्र में होना चाहिए. वो चुनौती चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा का नतीजा है, और हमें इसका हर जगह मुक़ाबला करना है, जहां हम कर सकते हैं’.

विदेश मंत्री ने ये भी कहा कि शी की ‘कई उपाधियां’ हैं, और ‘बहुत से लोग, जो जीवन भर के लिए राष्ट्रपति थे, उन्हें पता चला कि उनके देश के ही लोग कुछ और सोचते थे. शी जिंपिंग महासचिव हैं और उनकी सेनाओं के कमांडर भी हैं. उनकी बहुत सी उपाधियां हैं…वहां कम्युनिस्ट पार्टी ही सब कुछ चलाती है. वो कोई लोकतंत्र नहीं है. वो कठोर नियंत्रण के साथ शासन करते हैं. उनका प्रमुख मिशन ये सुनिश्चित करना है, कि देश के अंदर उनकी राजनीतिक प्रधानता लगातार बनी रहे’.

दुनिया चीन की चुनौती को समझने लगी है

पोम्पियो ने इस बात पर ज़ोर दिया, कि दूसरे देशों की तरह, भारत ने ‘चीनी चुनौती’ को अब जाकर समझना शुरू किया है, और अमेरिका ने भी ‘यही ग़लती’ की है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि (भारत) वो (चीनी चुनौती को समझता है)…मैं तो यहां तक कहूंगा जहां तक वो नहीं कहते; कि अमेरिका ने भी वही ग़लती की है. बहुत लंबे समय तक दुनिया का तक़रीबन हर देश, घुटनों के बल चीन के पास जाता रहा. कुछ नियम होते थे और फिर उन नियमों के चीनी अपवाद होते थे, चाहे वो व्यापार और शुल्क हों…लिस्ट बहुत लंबी है.’

‘लेकिन अब सूरते हाल बदल गई है…मुझे लगता है कि दुनिया को अब वो ख़तरा नज़र आने लगा है, जो चाइनीज़ कम्यूनिस्ट पार्टी की विचारधारा ने पैदा किया है. मुझे लगता है कि मेरे भारतीय समकक्षी इसे समझते हैं, मुझे लगता ही कि वो देख सकते हैं, कि इससे भारत के लोगों को किस तरह से ख़तरा है, और मैं समझता हूं कि वो, अब इस क्षेत्र और पूरी दुनिया में, सहयोगियों के साथ काम करना चाहते हैं, जिससे कि भारत में कुछ बुरा होने से बच जाए’.

‘वीग़र मुद्दा 1930 के दशक के जर्मनी का प्रतिबिंब’

डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने उइगर मुसलमानों के साथ उसके रवैये और उनके लिए नज़रबंदी शिविर चलाने को लेकर, चीन की तीखी आलोचना की है. बीजिंग द्वारा उइगर लोगों को ज़बर्दस्ती देश के अंदर रखने पर ट्रंप प्रशासन ने बहुत सी चीनी कंपनियों और शीर्ष अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए हैं.

पोम्पियो ने कहा, ‘जब आप देखते हैं कि (चीन के) पश्चिम में उइगर मुसलमानों के साथ क्या हो रहा है, तो ये ऐसी चीज़ें हैं जो आपको सिर्फ सत्तावादी हुकूमतों में दिखती हैं…मानवाधिकारों के ज़बर्दस्त उल्लंघन’.

उन्होंने आगे कहा, ‘कोई भी इंसान जो देखेगा कि पश्चिमी चीन में क्या हो रहा है, उसे इससे घृणा हो जाएगी, वो देखेगा कि ये इंसानियत का सबसे ख़राब रूप है, ये ऐसे कार्य हैं जो बेहद अपमानजनक और अत्याचारी हैं…ये हमें याद दिलाते हैं कि 1930 के दशक में, जर्मनी में क्या हुआ था, और ये कि सारी दुनिया- चाहे वो इस्लामी देश हों, हिंदू देश हों या ईसाई देश हों- के अंदर एक साझा समझ पैदा होगी, और वो चीन को ऐसा न करने के लिए राज़ी कर पाएगी’.

चीन से सदाबहार दोस्ती के कारण, पाकिस्तान के उइगर समस्या को नज़रअंदाज़ करने के मुद्दे पर पोम्पियो ने कहा, ‘हम उन्हें (पाकिस्तान को) याद दिलाते हैं कि वहां पर क्या चल रहा है, और उम्मीद है कि हम इस बारे में, खुलकर और सार्वजनिक रूप से बातचीत करने का रास्ता निकाल लेंगे, उनका सामना करने या उन्हें नुक़सान पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि इन भयानक कार्यों को रोकने के लिए, जो पश्चिम चीन में किए जा रहे हैं’.

बढ़ते भारत-अमेरिकी रिश्ते

पोम्पियो का मानना है कि ‘चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी ने जब ये परेशानियां पैदा करनी शुरू कीं’, उससे बहुत पहले अमेरिका और भारत के बीच, द्विपक्षीय रिश्ते बढ़ने शुरू हो गए थे.

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला, ‘ये एक साझा समझ पर आधारित है- हम दोनों लोकतंत्र हैं, बड़े लोकतंत्र हैं, जीवंत लोकतंत्र हैं, जिनमें बहुत से अलग अलग विचार हैं. ये रिश्ते इस साझा समझ पर आधारित हैं, कि दुनिया कैसे काम करती है, क़ानून का राज क्या है, पारदर्शिता क्या है, दो राष्ट्रों को बेहतर बनाने के लिए व्यापार क्या है’.


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56 वर्षीय लीडर ने कहा, ‘हमारे यहां बहुत से भारतीय छात्र हैं, जो पढ़ने के लिए अमेरिका आते हैं; हमारे बीच बहुत गहरे रिश्ते हैं, जो चाइनीज़ कम्यूनिस्ट पार्टी की पैदा की मौजूदा चुनौतियों से, बहुत आगे तक जाते हैं’.

अमेरिका- एक शानदार मिसाल

पोम्पियो के अनुसार, अमेरिका की उम्मीद और अपेक्षा ये है, कि दुनिया ऐसे विचारों पर चलेगी जो क़ानून और संप्रभुता पर आधारित होंगे, जहां हर देश अपने फैसले ख़ुद लेगा.

उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है, और हमारी अपेक्षा है कि वो दुनिया, ऐसे विचारों पर आधारित होगी, जो क़ानून के राज और संप्रभुता से निकलते होंगे; जहां हर देश अपने फैसले ख़ुद ले सकेगा, ऐसी दुनिया जहां जो लोग अपनी धार्मिक आज़ादी का इस्तेमाल करना चाहते हैं, उन्हें वो करने का अधिकार होगा. हम उम्मीद करते हैं कि ये वो मूल्य हैं, जिन्हें दुनिया अगले 150 वर्षों तक अपने अंदर रखेगी’.

उन्होंने ये भी कहा कि अगर अमेरिका अपना काम अच्छे से करता है, तो वो दुनिया के लिए एक ‘शानदार मिसाल’ बना रहेगा, जिससे वो ‘असली लोकतंत्र’ की प्रेरणा लेती रहेगी.

उन्होंने कहा, ‘अगर हम अपना काम अच्छे से करते हैं, अगर अमेरिका अपने अंदरूनी कामकाज में सफल रहता है, तो हम एक शानदार मिसाल होंगे, और वो हमारा इतिहास है. मुझे उम्मीद है कि हम वो करते रहेंगे, मुझे उम्मीद है कि हम एक ज़ोरदार बहस और अस्ली लोकतंत्र की, एक शानदार मिसाल बने रहेंगे…यही तरीक़ा है जिससे लोगों का सम्मान किया जाता है, मानव गरिमा का सम्मान किया जाता है’.

‘अगर हम वो कर लेते हैं, तो हम एक अहम किरदार बन सकते हैं. हमारे पास एक बड़ी इकॉनमी है, नई सोच के लोग हैं, एक ऐसा सिस्टम है जो नवीनता को बढ़ावा देता है, और मेहनत को पुरस्कृत करता है. ये ऐसी चीज़ें हैं जो उम्मीद है हर देश अपनाएगा. और जब वो ऐसा करेंगे, तो वो उस मॉडल से बिल्कुल अलग होगा, जो चाइनीज़ कम्यूनिस्ट पार्टी दुनिया के सामने पेश कर रही है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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