नई दिल्ली: लॉकडाउन शुरू हुए क़रीब 60 दिन हो गए हैं, लेकिन कोरोनावायरस से ग्रस्त देशों में, प्रति दस लाख की आबादी के हिसाब से देखें, तो टेस्ट करने के मामले में भारत नीचे है. इसके बावजूद कि सरकार जांच और बीमारी की निगरानी बढ़ाने के प्रयास कर रही है.
देश की सबसे प्रमुख शोध संस्था, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, जो रोग निगरानी के काम में लगी है, अभी तक 25 लाख से अधिक टेस्ट किए जा चुके हैं.
दिप्रिंट ने 9 मई तक राज्यों के बुलेटिन्स में दिए गए टेस्टिंग के आंकड़ों का अध्य्यन किया और पता लगाया कि भारत में हर दस लाख लोगों पर, केवल 1,700 से कुछ अधिक टेस्ट हुए हैं. ये आंकड़े ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी एंड ग्लोबल चेंज डेटा लैब की एक पहल, ‘अवर वर्ल्ड इन डेटा’ के आंकड़ों की पुष्टि करते हैं. वेबसाइट के मुताबिक़, अमेरिका में ये संख्या 36,961, इटली में 51,347, यूके में 29,412 (18 मई तक) और रूस में 50,381 है.
टेस्टिंग की नीची दरों के बाद भी, भारत में कुल मामलों की संख्या, इस सप्ताह एक लाख को पार कर गई.
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बृहस्पतिवार सुबह तक, भारत में कुल 1,12,359 मामले, और 3,435 मौतें दर्ज हो चुकीं थीं. लेकिन बुधवार को अपनी ब्रीफिंग में मंत्रालय ने, मामलों की बढ़ती संख्या अथवा जांच की स्थिति पर कोई टिप्पणी नहीं की, और केवल इस तथ्य पर रोशनी डाली कि प्रति दस लाख लोगों पर, कुल केस और मौतों के मामले में, भारत ने दूसरे देशों से बेहतर प्रदर्शन किया है.
स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा, ‘समान आबादी होने के बावजूद, टॉप 15 देशों में कोविड-19 के कुल मामले, भारत से 34 गुना अधिक हैं, और इन टॉप 15 देशों में कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या भारत से 83 गुना ज़्यादा है.’
दिप्रिंट ने अलग-अलग राज्यों में कुल मामलों की संख्या, मृत्यु दर, रिकवरी और टेस्टिंग दर का विश्लेषण किया, ये देखने के लिए कि उनका प्रदर्शन कैसा रहा. हमें ये पता चला.
टेस्टिंग की स्थिति
कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए भारत का प्लान मुख्यत: बीमारी की जांच, उसके स्रोत की खोज, और रोकथाम का रहा है- दुनिया भर के देश इसी रणनीति पर अमल कर रहे हैं. हर दस लाख की आबादी पर हुई जांचों की संख्या, देशों व राज्यों की टेस्टिंग क्षमता की तुलना का, एक मुख्य मानदंड बन गई है.
दिप्रिंट को पता चला कि जिन राज्यों में सबसे अधिक प्रकोप हुआ, प्रति दस लाख लोगों पर जांच के मामले में, दिल्ली (8340.3) सबसे ऊपर है, जिसके बाद तमिलनाडु (4675.9), और राजस्थान (3492.7) हैं. इस बीच पश्चिम बंगाल (1024.3), उत्तर प्रदेश (875.5), और बिहार (452.7) में ये दरें, बड़े राज्यों में सबसे कम हैं.
महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश राज्यों इस लिस्ट में बीच में आते हैं, जहां प्रति दस लाख लोगों पर ये संख्या, क्रमश: 2513.4, 2464.6, और 1545.1 दर्ज की गई.
सबसे कम संख्या वालों में तेलंगाना था (649.03), जिससे राज्य सरकार विवादों में घिर गई है, कि वो अपने टेस्टिंग के आंकड़ों पर रहस्य का पर्दा डाले हुए है. पिछले हफ्ते प्रदेश स्वास्थ्य विभाग ने आंकड़े जारी किए, जिनके हिसाब से 14 मई तक वहां केवल 22,842 टेस्ट किए गए थे.
तेलंगाना के मुख्य सचिव सुमेश कुमार को 7 मई को लिखे एक पत्र में, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन ने कहा, ‘हमें वायरस का पीछा करने की ज़रूरत है न कि वायरस को हमारा.
इस सप्ताह के शुरू में, आईसीएमआर ने अपनी टेस्टिंग रणनीति में बदलाव करते हुए अनिवार्य कर दिया कि राज्य सरकारों को इनफ्लुएंज़ा जैसी बीमारियों के लिए अस्पताल में भर्ती मरीज़ों, लक्षण वाले प्रवासियों, और मोर्चे पर काम कर रहे बिना लक्षण वाले वर्कर्स की भी, अतिरिक्त जांच करानी होगी. केवल किसी पक्के केस के सीधे, या अधिक ख़तरे वाले सम्पर्क में आए लोगों की जांच की जाएगी, भले ही उनमें लक्षण न हों.
पहले की रणनीति में लक्षण वाले अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों, पॉज़िटिव मामलों के सम्पर्क में आने वालों, मोर्चे पर लगे वर्कर्स, सीवियर अक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस (सार्स) के मरीज़ों, कनफर्म मामलों के बिना लक्षण वाले सम्पर्कों, तथा हॉटस्पॉट्स में रह रहे लक्षण वाले लोगों का ही टेस्ट किया जाता था.
इस संकट में नोडल बॉडी बनी आईसीएमआर ने, भारत में जांच सुविधाओं की संख्या बढ़ाने में एक अहम रोल अदा किया है. जनवरी में कोविड-19 के नमूनों की जांच के लिए केवल एक लैब थी- पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वाइरोलॉजी. आज 569 सरकारी और निजी लैब्स में कोरोनावायरस के लिए, नमूनों की जांच की जा सकती है.
राज्यवार आंकड़े
कुल 1.1 लाख मामलों में से 76,113 मामले, केवल चार राज्यों में सामने आए. कुल संख्या के 67 प्रतिशत केस महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात और दिल्ली में हैं, जिनमें एक्टिव और ठीक हो गए केस शामिल हैं. अप्रैल से इन चार राज्यों में, मामलों की संख्या लगातार ऊंची बनी हुई है.
महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली पॉजिटिव रेट में भी टॉप पर थे. इस दर का मतलब है, कि जांच के नमूनों में से कितने लोग पॉज़िटिव पाए गए. महाराष्ट्र में ये दर सबसे अधिक (13.07 प्रतिशत) है, जबकि गुजरात (7.89 प्रतिशत) और दिल्ली (7.2 प्रतिशत) भी बस थोड़ा ही पीछे हैं.
5 मई को, स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की थी, कि पूरे भारत की पॉजिटिव रेट 3.8 प्रतिशत थी.
सबसे अधिक मौतें महाराष्ट्र (1390), गुजरात (749), मध्य प्रदेश (267) और पश्चिम बंगाल (253) में दर्ज हुईं. कुल मौतों में इन चार राज्यों का योगदान 77.4 प्रतिशत था.
मृत्यु दर के मामले में पश्चिम बंगाल (8.1 प्रतिशत) सबसे ऊपर है.
अप्रैल में पश्चिम बंगाल भेजी गई, एक पांच सदस्यीय अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम (आईएमसीटी) ने, ऊंची मृत्यु दर को लेकर ममता बनर्जी सरकार की खिंचाई की, और इसे ‘साफ तौर पर कम टेस्टिंग और कमज़ोर निगरानी व ट्रैकिंग’ का मामला बताया.
पश्चिम बंगाल के पीछे मेघालय (7.1 प्रतिशत) है, जिसमें कुल 14 मामलों में एक मौत दर्ज हुई. 749 मौतों के साथ गुजरात में मृत्यु दर 6 प्रतिशत थी, जो तीसरी सबसे अधिक थी. इसके बाद मध्य प्रदेश (5735 मामलों में 267 मौतें, यानी 4.7 प्रतिशत) था.
सबसे अधिक दर्ज मामलों वाले दस राज्यों में, सबसे ऊंची रिकवरी दर पंजाब (लगभग 90 प्रतिशत) में थी, जिसके बाद आंध्र प्रदेश (63 प्रतिशत) था.
भारत में संक्रमण के फैलाव का बेहतर ढंग से पता लगाने के लिए, जिसमें बिना-लक्षण वाले कैरियर्स भी शामिल होंगे, आईसीएमआर ने इस हफ्ते एक सेरो-सर्वे शुरू किया.
इस सर्वे में आईजीजी एंटीबॉडीज़ का पता लगाया जा सकता है, जो किसी इंसान में इंफेक्शन से उबर जाने के बाद पैदा होते हैं.
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