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Friday, 26 April, 2024
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भारत को मिल सकता है दूसरा दलित जज, सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने की सिफारिश

अगर मोदी सरकार न्यायाधीश भूषण रामाकृष्णा गवई को प्रोन्नति दे देती है तो वह सीजेआई केजी बालाकृष्णन के बाद दलित मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने मोदी सरकार को जजों की प्रोन्नति के लिए दो जजों के नाम भेजे हैं जिसमें एक जिसमें एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल हैं जो 2025 में भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपना कार्यकाल समाप्त कर सकते हैं. इनमें दो अन्य नामों को दोहराया गया है.

कॉलेजियम ने बॉंबे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्णा गवई और हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश सूर्या कांत का नाम बुधवार को पदोन्नति के लिए आगे बढ़ाया है. और सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की है. अगर मोदी सरकार इस प्रस्तावना को स्वीकार कर लेती है तो दोनों जज देश के मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं.

दिप्रिंट ने इन दोनों जजों के नामांकन किए जाने की बात जनवरी में प्रकाशित की थी.अगर केंद्र न्यायाधीश गवई की नियुक्ति को हरी झंडी दे देता है तो वह 11 मई 2010 के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पहले दलित जज होंगे. बता दें कि मुख्य न्यायधीश बालाकृष्णन 11 मई 2010 को सेवानिवृत्त हुए ते उसके बाद अभी तक भारत के टॉप कोर्ट में कोई दलित जज नहीं हुआ है. बालाकृष्णन के बाद गवई ही सीजेआई के रूप में 13 मई 2025 को शपथ लेंगे.


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गवई के सेवानिवृत्त होने के बाद कांत मुख्य न्यायाधीश की कतार में अग्रणी होंगे.

नरेंद्र मोदी सरकार ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई से गुजारिश की है कि हाशिए पर मौजूद तबके को उच्चस्तरीय न्यायाधीशों की श्रृंखला में शामिल किए जाएं. बता दें पिछली सरकारें भी इसपर बात करती रहीं हैं.

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गुरुवार को कोलेजियम ने एकबार फिर से झारखंड हाई कोर्ट के मुख्यन्यायाधीश अनिरुद्ध बोस और उनके गुवाहटी उच्च न्यायालय के सहयोगी ए.एस बोपन्ना के लिए भी सिफारिश की है. केंद्र ने इन दोनों का नाम पिछले महीने कॉलेजियम को इनदोनों जजों की सिफारिश की थी.

वरिष्ठता और हाशिए पर पड़े लोगों का प्रतिनिधित्व

गवई की सिफारिश करने वाला कॉलेजियम जिसमें शीर्ष अदालत के पांच सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल हैं. उन्होंने यह स्वीकार किया कि उनकी वरिष्ठता भारत के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच क्रम संख्या 8 पर हैं. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत की शीर्ष अदालत ने एक दशक से दलित न्यायाधीश नहीं था.

कॉलेजियम का प्रस्ताव जो सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध है उसमें लिखा है कि उनकी सिफारिश का किसी भी तरह से गलत अर्थ निकाला जाना चाहिए कि बॉम्बे हाई कोर्ट के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीश (जिनमें से दो मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा कर रहे हैं) न्यायमूर्ति गवई की तुलना में कम उपयुक्त हैं.

कॉलेजियम के प्रस्ताव में कहा गया है कि उनकी नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच में लगभग एक दशक के बाद अनुसूचित जाति वर्ग से ताल्लुख रखने वाले जज होंगे.

सूर्यकांत, जो वरीयता की क्रम संख्या 11 पर हैं वो पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व करेंगे यह उनका मूल न्यायालय है, जो अभी सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश के लिए जिम्मेदार हैं

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 27 न्यायाधीश हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट की स्वीकृत संख्या 31 है. यदि सभी चार सिफारिशों को मंजूरी दे दी जाती है. तो न्यायालय के पदों कि संख्या पूर्ण होगी.

दो न्यायाधीश

गवई ने 2017 में तब सुर्खियां बटोरीं. जब वह सीबीआई जज बीएच लोया के परिवार द्वारा किए गए बेईमानी के आरोपों का खंडन किया था. लोया, जिनकी कथित तौर पर 2014 में नागपुर में एक शादी में शामिल होने के दौरान दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी. उस समय, न्यायाधीश लोया सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ सीबीआई के मामले की सुनवाई कर रहे थे.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को इस मामले में मुक्त कर दिया गया है.

कारवां पत्रिका को दिए साक्षात्कार में जब जज लोया के परिवार ने उनकी मृत्यु की परिस्थितियों पर सवाल उठाया तब शादी में मौजूद जज गवई ने भी आरोपों को खारिज कर दिया है.

परिवार ने कहा था कि लोया को एक ऑटोरिक्शा में अस्पताल ले जाया गया था और उनके कपड़े पर खून थे इन दोनों दावों को जज गवई द्वारा इनकार कर दिया गया.

सूर्यकांत को सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने के लिए कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी देने में बहुत समय लिया था.

सूत्रों के अनुसार इन बातों के अलावा सरकार परामर्शदाता न्यायाधीशों में से एक वर्तमान राष्ट्रीय हरित अधिकरण अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल द्वारा भेजी गई नोट और शिकायत पर गौर करना चाहती थी.


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एक सरकारी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, जब से एक विस्तृत जांच हुई तब से सरकार कोई मौका नहीं लेना चाहती थी. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जस्टिस गोयल ने खुद एक स्वतंत्र जांच के लिए कहा था.

सूत्र ने कहा, ‘न्यायाधीश और उनके परिवार के सदस्यों के कुछ संपत्ति सौदों का विवरण था, जिसके बारे में न्यायमूर्ति गोयल ने शिकायत दर्ज की थी.

सूत्र ने यह भी कहा कि ‘शिकायत में किए गए दावे निराधार पाए गए और यह तभी हुआ जब हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी गई’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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