नई दिल्ली: भारत को अपना एलन मस्क हासिल करने के लिए क्या करना होगा? जो अंतरिक्ष में निजी भागेदारी के अगुवाओं में से एक हैं? भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बुधवार को भारत के निजी अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ावा देने में अंतरिक्ष एजेंसी के अहम रोल को अदा करने पर बल देते हुए कुछ सुझाव पेश किए.
‘हमारे सामने चुनौती ये है कि इसरो में हमारे पास जो ज्ञान है, उसे उद्योग में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है. पिछले 50 वर्षों में डिजाइनिंग और चीजों को बनाने के मामले में, इसरो में एक खास कौशल और क्षमता विकसित हो गई है,’ ये कहते हुए सोमनाथ ने आगे कहा कि इसरो एक ‘व्यवसाय-केंद्रित संगठन नहीं है’.
दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन और एक्सपो सेंटर में एक आयोजन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘उन्हें नहीं मालूम कि पैसा कैसे बनाते हैं लेकिन उन्हें ये जरूर मालूम है कि चीजे कैसे विकसित करते हैं. भारत से भी कोई एलन मस्क सामने आ सकता है लेकिन (यहां पर) चुनौतियां ज्यादा बड़ी हैं.
उन्होंने कहा कि भारत को जिस चीज की जरूरत है, वो है और अधिक एप्लीकेशन-सेंट्रिक-स्टार्ट-अप्स- यानी लॉन्च व्हिकल और सैटेलाइट-सेंट्रिक स्टार्ट-अप्स की बजाए, कंपनियां ऐसे एप्लीकेशन में लगी हों जिनका सीधे तौर पर लोगों से सरोकार हो.
उन्होंने कहा कि भारत के निजी क्षेत्र की सफलता को अंतरिक्ष उद्योग में विस्तार देने के लिए इसरो को अपने ज्ञान से सहायता उपलब्ध करानी होगी.
उन्होंने आगे कहा कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र का 447 बिलियन डॉलर के विश्व अंतरिक्ष उद्योग में 2 प्रतिशत से भी कम योगदान है लेकिन उसके अंदर इतनी क्षमता है कि 2047 तक वो इसे 50 प्रतिशत तक कर सकता है.
सोमनाथ ने कहा, ‘अंतरिक्ष क्षेत्र की अर्थव्यवस्था जो आज करीब 447 बिलियन डॉलर की है, उसके करीब 1.5 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ जाने की अपेक्षा है. उसका 50 प्रतिशत 2047 में भारत की अनुमानित जीडीपी का केवल 1.8 प्रतिशत होगा’.
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ISRO से सहायता
सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष टेक्नॉलजी को उद्योग में ले जाने के लिए मानसिकता में बदलाव की जरूरत है. उन्होंने मस्क की अंतरिक्षयान इंजीनियरिंग कंपनी स्पेसएक्स की मिसाल दी.
उन्होंने कहा कि कंपनी केवल इसलिए सफल हो पाई क्योंकि उसे नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) से सहायता हासिल हुई. उन्होंने आगे कहा, ‘इतना मतलब ये नहीं है इस प्रक्रिया में नासा कमजोर हो गई’.
सोमनाथ ने कहा कि इसरो को भी एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है जिससे वो उद्योग और स्टार्ट-अप्स के साथ ज्ञान और तकनीकें साझा कर सके, जिससे बदले में वस्तुओं का व्यवसायीकरण हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘इसरो से ज्ञान को उद्योग को स्थानांतरित करने का काम पहले ही हो रहा है. हमारे बहुत से रिटायर्ड सहयोगी पहले बहुत से स्टार्ट-अप्स के सलाहकारों के रूप में काम कर रहे हैं, और आगे बढ़ने में उनकी सहायता कर रहे हैं’.
उन्होंने आगे कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र में अगले दो दशकों में एक परिवर्तन देखने को मिलेगा क्योंकि अधिक अंतरिक्ष यात्रा की करेंगे.
उन्होंने कहा, ‘हम (अंतरिक्ष उद्योग) बहुत से क्षेत्रों पर नजर डालेंगे, जैसे दुर्लभ जमीनी धातुओं का खनन, कृषि, अंतरिक्ष अचल संपत्ति और हॉस्पिटैलिटी आदि’.
उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र का विस्तार तभी हो सकता है अगर इसरो सिकुड़कर एक ‘टेक्नॉलजी इनेबलर’ की भूमिका में आ जाए और निजी उद्योग को आगे बढ़कर नई टेक्नॉलजी के कार्यान्वयन की अगुवाई करने दे.
उन्होंने आगे कहा कि बड़ी कंपनियां अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश करने में झिझकती रहती हैं, जिसकी मुख्य वजह धीमी प्रतिफल दर होती है जो विशेष रूप से उन कंपनियों के मामले में सही है जो लॉन्च व्हिकल बनाने में लगी हैं.
भारत को अंतरिक्ष निर्माण केंद्र में बदलना और ISRO की भूमिका
सोमनाथ ने कहा कि जैसे जैसे ज्यादा कंपनियां अंतरिक्ष में दाखिल हो रही हैं उन्हें लगता है कि इसरो की व्यवसायिक इकाई- न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) केवल इसरो के लॉन्च व्हिकल की मार्केटिंग से दूर हो जाएगी और उसकी बजाए फंडिंग सुविधा जुटाने में अंतरिक्ष स्टार्ट-अप्स की सहायता करेगी.
उन्होंने आगे कहा कि भारत को एक वैश्विक अंतरिक्ष निर्माण केंद्र भी बन जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘उपग्रह उत्पादन ऐसी चीज है जिसे भारत में किया जा सकता है. मैं पहले ही देख रहा हूं कि कुछ कंपनियां भारत में मैन्युफेक्चरिंग सुविधाएं स्थापित कर रही हैं (इस उम्मीद में कि) उनके लिए ऑर्डर्स आएंगे’.
उन्होंने आगे कहा कि भारत के आईटी बूम की तरह इससे भी रोजगार के अवसर पैदा होंगे.
उन्होंने कहा, ‘भारत के आईटी क्षेत्र में हमने जिस तरह की तेज़ी देखी, (अंतरिक्ष उद्यम से) उद्योग में गौण प्रभाव, रोजगार अवसरों, और यहां पर जो तमाम गतिविधियां जरूरी हैं, उनके मामले में हम उसी तरह के फायदे देखेंगे’.
उन्होंने आगे कहा कि इस बीच, इसरो गंगायान, आदित्य एल1 और मार्स ऑर्बिटर मिशन 2 जैसे प्रोजेक्ट्स के साथ जो पाइपलाइन में हैं, अंतरिक्ष खोज पर फोकस करता रहेगा. उन्होंने कहा कि नई तकनीकें विकसित करने के लिए, भविष्य में उद्योग और इसरो को साथ मिलकर काम करना होगा.
उन्होंने आगे कहा, ‘जिस तरह से युवा पीढ़ी काम कर रही है वो उससे बिल्कुल अलग है जैसे इसरो काम करती रही है. यही इसकी खूबसूरती है. अगर पुरानी पीढ़ी उचित मार्गदर्शन करेगी तो बहुत सी स्टार्ट-अप्स मजबूत कारोबार खड़े कर सकती हैं’.
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