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सोमवार, 5 मई, 2025
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भारत ने बगलिहार और सलाल जलाशयों की फ्लशिंग शुरू की, पाकिस्तान में खरीफ फसल की बुआई पर पड़ेगा असर

ऐसा माना जा रहा है कि अब फ्लशिंग की प्रक्रिया शुरू करने से चेनाब नदी पर स्थित बगलिहार और सलाल दोनों जलविद्युत परियोजनाओं में बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ेगा.

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नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि (IWT) को निलंबित कर दिया है और इसी क्रम में सप्ताहांत में जम्मू-कश्मीर की चिनाब नदी पर स्थित बगलिहार और सलाल—दोनों रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजनाओं—के जलाशयों की फ्लशिंग शुरू कर दी गई है.

फ्लशिंग एक तकनीक है जिसके तहत जलाशय या बांध में जमा गाद और तलछट को अधिक प्रवाह वाले पानी के जरिए हटाया जाता है, जिससे ये तलछट नीचे की ओर बह जाती हैं.

भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को पुष्टि करते हुए बताया कि 900 मेगावाट की बगलिहार और 690 मेगावाट की सलाल जलविद्युत परियोजनाओं, जो क्रमशः रामबन और रियासी जिलों में स्थित हैं, के जलाशयों की फ्लशिंग की प्रक्रिया सप्ताहांत में शुरू हुई.

“फ्लशिंग पूरी होने के बाद, जलाशयों को दोबारा भरा जाएगा. यह पूरी प्रक्रिया एक सप्ताह से लेकर पंद्रह दिन तक में पूरी हो सकती है. इस दौरान पाकिस्तान की ओर नीचे की ओर बहने वाले पानी का प्रवाह प्रभावित होगा, जिससे खरीफ फसलों की बुवाई पर असर पड़ेगा,” एक अन्य सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया.

इस अधिकारी ने आगे बताया कि जल की कमी के चलते, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सियालकोट जिले के पास स्थित मराला बैराज सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी छोड़ने में सक्षम नहीं होगा, जिससे धान, मक्का और कपास जैसी खरीफ फसलों की बुवाई प्रभावित होगी, जो जल्द ही शुरू होने वाली है.

चूंकि बगलिहार और सलाल दोनों ही रन-ऑफ-द-रिवर परियोजनाएं हैं, इसलिए इनकी भंडारण क्षमता सीमित है और ये लंबे समय तक जल प्रवाह को रोकने के लिए उपयोग नहीं की जा सकतीं.

सरकारी सूत्रों ने बताया कि IWT निलंबित होने के बाद, भारत पश्चिमी नदियों—सिंधु, चिनाब और झेलम—के जलाशयों की फ्लशिंग कभी भी कर सकता है. IWT के अनुसार, जलाशयों की फ्लशिंग केवल अगस्त में, मानसून के चरम मौसम में की जानी चाहिए.

फ्लशिंग के अभाव में, समय के साथ जलाशयों में गाद और तलछट जमा हो जाती है, जिससे संचालन की दक्षता पर असर पड़ता है.

वर्तमान सूखे मौसम के दौरान बगलिहार और सलाल बांधों की फ्लशिंग शुरू करने का निर्णय भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए दंडात्मक उपायों में से एक है. भारत को संदेह है कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले, जिसमें 25 पर्यटकों और एक स्थानीय कश्मीरी की जान गई, में पाकिस्तान की संलिप्तता है.

IWT के तहत, पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों के जल का अबाधित उपयोग करने की अनुमति है, जो सिंधु प्रणाली द्वारा वहन किए जाने वाले कुल जल का लगभग 80 प्रतिशत है, जबकि भारत को सतलुज, रावी और ब्यास—तीन पूर्वी नदियों—के जल का उपयोग करने का अधिकार है.

भारत को तीन पश्चिमी नदियों के जल का उपयोग “गैर-खपतकारी” तरीकों से करने की भी अनुमति है, जिसमें घरेलू और कृषि उपयोग तथा रन-ऑफ-दि-रिवर जलविद्युत परियोजनाओं के जरिए बिजली उत्पादन शामिल है, बशर्ते ये IWT द्वारा निर्धारित डिजाइन और संचालन मानदंडों के अनुरूप हों.

एक ‘रन-ऑफ-द-रिवर’ संयंत्र विद्युत उत्पादन के लिए जीवंत भंडारण का उपयोग नहीं करता, सिवाय तालाबनुमा भंडारण और अधिभार भंडारण के.

फ्लशिंग जलाशय, एक शॉर्ट टर्म उपाय

बगलिहार 900 मेगावाट और सलाल 690 मेगावाट जलविद्युत परियोजनाओं के जलाशयों की फ्लशिंग, पाकिस्तान के खिलाफ भारत द्वारा उठाए गए तात्कालिक दंडात्मक उपायों में से एक है.

इस निर्णय के तहत, सूखा मौसम होने के बावजूद बांधों की फ्लशिंग करने से दोनों जलविद्युत परियोजनाओं में बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ेगा, जैसा कि पहले उद्धृत एक अधिकारी ने कहा. “लेकिन चूंकि पानी का प्रवाह कम है, उत्पादन में होने वाली हानि भी कम होगी,” एक अन्य अधिकारी ने कहा.

1 मई तक, बगलिहार जलविद्युत परियोजना 150 मेगावाट बिजली का उत्पादन कर रही थी, जबकि सलाल 115 मेगावाट का उत्पादन कर रहा था, जैसा कि भारत की केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा संकलित दैनिक उत्पादन रिपोर्ट में बताया गया है.

भारत सरकार के अधिकारियों का मानना है कि तीन पश्चिमी नदियों के जल का बेहतर उपयोग करने के लिए, भारत को अपनी अवसंरचना में वृद्धि करनी होगी.  पहले अधिकारी ने कहा, “हमने अभी तक पश्चिमी नदियों पर पर्याप्त भंडारण क्षमता विकसित नहीं की है ताकि हमारे हिस्से का बेहतर उपयोग किया जा सके.”

भारत को पश्चिमी नदियों से जो जल उपयोग करने की अनुमति है, वह 18,569 मेगावाट की जलविद्युत क्षमता उत्पन्न करने में सक्षम है. हालांकि, वर्तमान में भारत ने केवल 3,500 मेगावाट की जलविद्युत उत्पादन क्षमता विकसित की है. इसके अलावा, भारत 13.4 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई के लिए जल का उपयोग कर सकता है, लेकिन वर्तमान में यह केवल 8 लाख एकड़ भूमि के लिए इसका उपयोग कर रहा है.

भारत, जैसा कि सूचित किया गया है, सिंधु, झेलम और चिनाब के जल का बेहतर उपयोग करने के लिए कई विकल्पों पर विचार कर रहा है, जिसमें चिनाब नदी से रावी में जल स्थानांतरित करने के लिए 10-12 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने का प्रस्ताव भी शामिल है. यह प्रस्ताव 25 अप्रैल को प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई दो उच्चस्तरीय बैठकों में सामने आया, जिनका उद्देश्य तीन पश्चिमी नदियों के जल का उपयोग भारत के लिए करने के तरीके पर चर्चा करना था, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने बताया.

इसके अलावा, चिनाब पर चल रहे जलविद्युत परियोजनाओं पर कार्य को तेज़ी से आगे बढ़ाने पर भी चर्चा हुई. जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में 850 मेगावाट रतले, 1,000 मेगावाट पाकल डुल, 624 मेगावाट किरु और 540 मेगावाट कवार परियोजनाओं पर कार्य विभिन्न चरणों में है.

इसके अलावा, विद्युत मंत्रालय को पश्चिमी नदियों पर प्रस्तावित चार जलविद्युत परियोजनाओं पर भी कार्य को तेज़ी से पूरा करने का निर्देश दिया गया है, जिनमें 1,856 मेगावाट सावलकोट, 930 मेगावाट कर्थई- II, 260 मेगावाट दुलहस्ती स्टेज-II और 240 मेगावाट उरी-I स्टेज-II परियोजनाएं भी शामिल हैं, जो जम्मू और कश्मीर में स्थित हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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