नई दिल्ली: हीटवेव के पीछे जलवायु परिवर्तन एक बड़ा कारण बनकर उभर रहा है. भारत और पाकिस्तान में लंबे समय से चल रही हीटवेव, जिसने व्यापक तौर पर लोगों को काफी परेशान किया और वैश्विक गेहूं की आपूर्ति को प्रभावित किया, इसके पीछे मानव-जनित जलवायु परिवर्तन ने 30 गुना खतरा बढ़ा दिया है.
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए), जो कि जलवायु पर काम करने वाले वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम है, ने अपने एट्रिब्यूशन विश्लेषण में पाया है कि दुनिया भर में आज होने वाली गर्मी की लहरों को जलवायु परिवर्तन ने और बढ़ा दिया है.
भारत और पाकिस्तान में लंबे समय से बढ़ते तापमान पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मापने के लिए, वैज्ञानिकों ने जलवायु की तुलना करने के लिए मौसम के आंकड़ों और कंप्यूटर सिमुलेशन का विश्लेषण किया.
विश्लेषण में उत्तर-पश्चिमी भारत और दक्षिण-पूर्वी पाकिस्तान में मार्च और अप्रैल के दौरान औसत अधिकतम दैनिक तापमान का विश्लेषण किया गया. ये इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित थे. भारत में मार्च का महीना बीते 122 साल में सबसे ज्यादा गर्म दर्ज किया गया वहीं पाकिस्तान के कई इलाकों में भी पारा 50 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया था.
एट्रिब्यूशन अध्ययन के परिणामों से पता चला कि वर्तमान में लंबे समय तक चलने वाली हीटवेव जैसी घटना अभी भी दुर्लभ है. हर साल इसके होने की 1% संभावना है लेकिन मानव-जनित जलवायु परिवर्तन ने इसके होने की संभावना लगभग 30 गुना बढ़ा दी है.
हालांकि यूनाइटेड किंगडम के मेट ऑफिस के हालिया स्टडी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर-पश्चिम भारत और पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ने वाली हीटवेव की संभावना 100 गुना ज्यादा बढ़ने की बात कही गई थी.
आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के प्रोफेसर कृष्णा अच्युत राव का कहना है कि भारत और पाकिस्तान में तापमान में वृद्धि सामान्य है लेकिन इसके जल्द शुरू होने और काफी लंबे समय तक चलने ने इसे असामान्य बना दिया.
वहीं इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रांथम इंस्टीट्यूट में जलवायु विज्ञान के वरिष्ठ लेक्चरर डॉ. फ्रेडरिक ओटो ने कहा, ‘जिन देशों के हमारे पास डेटा हैं, वहां हीटवेव सबसे खतरनाक वेदर इवेंट्स में से एक है. जब तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रहेगा, इस तरह की घटनाएं तेजी से आपदा बनती रहेंगी.’
वैज्ञानिकों ने पाया कि अगर वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है तो इस तरह की हीटवेव आने की संभावना हर पांच साल में एक बार होगी. पाकिस्तान के इस्लामाबाद स्थित जलवायु वैज्ञानिक डॉ. फहाद सईद ने कहा, ‘मजबूत अनुकूलन और मिटिगेशन एक्शन के अभाव में, अगर 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान बढ़ता है तो ये कमजोर आबादी के ‘अस्तित्व के लिए खतरा’ पैदा कर सकता है.’
इस अध्ययन को दुनियाभर के 29 रिसर्चर्स ने मिलकर किया है जो कि वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप का हिस्सा हैं. इसमें भारत, पाकिस्तान, डेनमार्क, फ्रांस, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, यूके, यूएस, स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक और मौसम विभाग की एजेंसियां शामिल हैं.
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गेहूं के पैदावार पर भी पड़ा असर
अध्ययन के अनुसार 2022 की हीटवेव के दौरान भारत और पाकिस्तान में तकरीबन 90 लोगों की जान गई और भारत में जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ीं. वहीं भारत के हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब में हीटवेव के कारण 10-35 प्रतिशत पैदावार के प्रभावित होने की भी संभावना जताई गई है.
मार्च के महीने में पाकिस्तान में 62 प्रतिशत कम बारिश हुई वहीं भारत में 71 प्रतिशत से कम बारिश हुई. बता दें कि इस साल मार्च महीने से ही भारत में हीटवेव के कई चरण देखने को मिले. मार्च 11 से 19, 27 मार्च से 12 अप्रैल, 17 अप्रैल से 19 अप्रैल और फिर 26 अप्रैल से 30 अप्रैल को कई चरणों में हीटवेव ने लोगों पर असर डाला.
स्टडी के अनुसार, हीटवेव के जल्दी आने और बारिश की कमी के कारण भारत में गेहूं की पैदावार पर असर पड़ा है. परिणामस्वरूप सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. भारत ने पहले रिकॉर्ड 10 मिलियन टन गेहूं का निर्यात करने की उम्मीद की थी, जो रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के कारण हुई कमी को पूरा करने में मदद करता.
सोरबोन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रोबर्ट वॉटर्ड ने कहा, जलवायु परिवर्तन के कारण हीटवेव की बढ़ी तीव्रता ने खाद्य पदार्थों के दामों में वृद्धि की.
स्टडी के मुताबिक भारत ने इस साल रिकॉर्ड मात्रा में गेहूं निर्यात करने की योजना बनाई थी लेकिन अब, जलवायु परिवर्तन के कारण बनी स्थिति की वजह से अधिकांश निर्यात को रद्द कर दिया गया है, जिससे वैश्विक गेहूं की कीमतें बढ़ रही हैं और दुनिया भर में भुखमरी भी बढ़ रही है.
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