लखनऊ: ‘हमने (कभी) इतनी डेड बॉडीज़ तो देखी ही नहीं हैं…वो घाट पर प्लेटफॉर्म बने हैं, वो ख़ाली पड़े रहते थे, (पर) आज पैर रखने की जगह नहीं है, चारों ओर लाशें ही लाशें’.
लखनऊ के मुक्तिधाम में काम करने वाले 29 वर्षीय अमर सिंह ने, कभी ‘इतने सारे शव’ नहीं देखे थे. उन्होंने कहा कि परिसर में दाह संस्कार के लिए बने ऊंचे चबूतरों पर, पहले गिनी चुनी चिताएं जलती थीं, लेकिन अब किसी के खड़े होने की जगह नहीं है. उन्होंने आगे कहा: ‘अब तो हर जगह शव ही शव हैं’.
बृहस्पतिवार को, शाम 6 बजे जब ये रिपोर्टर मुक्तिधाम पहुंची, तो चार युवक घाट के एक ओर लकड़ियां जमा कर रहे थे, ताकि कोविड दाह- संस्कार के लिए, चिताओं की एक क़तार तैयार की जा सके. उन्होंने पीपीई सूट नहीं पहने हुए थे. 30 से अधिक चिताएं पहले से जल रहीं थीं, और कुछ और शव लपटों के हवाले होने के इंतज़ार में थे.
अंतिम संस्कार का इंतज़ार कर रहे शवों में, एक शव मनोज का भी था. उसके रिश्तेदार ने बताया कि मरने से पहले, 40 की उम्र पार कर चुके मनोज ने, सिर्फ बुख़ार और बदन दर्द की शिकायत की थी. ‘हमने उसे हर अस्पताल में ले जाने का प्रयास किया, लेकिन वो गुज़र गया’, ये बताने वाला रिश्तेदार उन सैकड़ों लोगों में एक था, जो अपने प्रियजनों को अंतिम विदाई देने के लिए वहां मौजूद थे.
उसे नहीं मालूम कि मनोज को कोविड था कि नहीं, क्योंकि टेस्ट किए जाने से पहली उसकी मौत हो गई. रिश्तेदार ने कहा, ‘जो ज़िंदा हैं उनके टेस्ट के रिज़ल्ट तो आ नहीं रहे, डेड का कहां से टेस्ट कराते’. मनोज का दाह संस्कार ग़ैर-कोविड शवों के लिए बनी चिता पर कर दिया गया.
अतिरिक्त स्वास्थ्य सचिव अमित मोहन प्रसाद, और लखनऊ ज़िला मजिस्ट्रेट अभिषेक प्रकाश ने, टिप्पणी के लिए की गईं दिप्रिंट की फोन कॉल्स का जवाब नहीं दिया, लेकिन बहुत से सरकारी अधिकारियों ने, नाम छिपाने के अनुरोध पर कहा, कि मरने वालों की संख्या बढ़ गई है. उन्होंने ये भी कहा कि ‘समय पर चिकित्सकीय तवज्जो नहीं मिल रही है’ जिसकी वजह से लोग मर रहे हैं, और सभी लोगों के टेस्ट भी नहीं हो पा रहे हैं, जिसकी वजह से यक़ीन से नहीं कहा जा सकता, कि श्मशान घरों में हो रहे सभी ग़ैर-कोविड दाह-संस्कार, वास्तव में कोविड मौतें नहीं हैं.
श्मशान घर उन हिस्सों में प्रोटोकोल्स का पालन कर रहे थे, जहां कोविड दाह-संस्कार किए जा रहे थे. निगम कर्मचारी पूरे दिन मुआयना कर रहे थे, और कर्मचारी समय समय पर सैनिटाइज़ कर रहे थे. लेकिन ग़ैर-कोविड हिस्सों में लापरवाही नज़र आ रही थी, जहां लोगों को सुरक्षा तथा सैनिटाइज़ेशन की उतनी चिंता नहीं थी, जितना ध्यान क़तार में अपनी बारी को लेकर था.
और ये नज़ारा सिर्फ शहर के श्मशान घाटों का है. लखनऊ में दो बड़े ईसाई क़ब्रिस्तान हैं, और छोटे बड़े मिलाकर तक़रीबन 100 मुस्लिम क़ब्रिस्तान हैं, और वहां भी हालत कुछ बहुत अलग नहीं है.
श्मशान घाट भरे हैं, आंकड़े बेमेल
कोविड दाह-संस्कार के लिए अधिकृत दो शवदाहगृहों, मुक्ति धाम और बैकुंठ धाम की ज़मीनी हक़ीक़त, यूपी सरकार के स्वास्थ्य आंकड़ों के बिल्कुल उलट है. 15 अप्रैल को योगी सरकार के हेल्थ बुलेटिन में कहा गया, कि 24 घंटे में UP में 104 मौतें दर्ज की गईं. जिनमें से लखनऊ में 26 मौतें हुईं.
लेकिन शवदाह गृहों से दिप्रिंट के हाथ लगे आंकड़े, एक बिल्कुल अलग कहानी कहते हैं.
15 अप्रैल को शाम 6 बजे तक, दोनों श्मशान घरों से 108 कोविड शवों की ख़बर मिली थी- 80 बैकुंठ धाम में थे और 28 मुक्ति धाम में.
एक दिन पहले, 14 अप्रैल को, दोनों घाटों पर दाह-संस्कार किए गए शवों की संख्या 101 थी, जबकि सरकारी आंकड़ों में ये संख्या सिर्फ 14 थी.
13 अप्रैल को, लखनऊ में 84 कोविड शवों का अंतिम संस्कार किया गया, लेकिन सरकारी आंकड़े कहते हैं कि ऐसी मौतों की संख्या केवल 18 थी. 12 अप्रैल के लिए ये आंकड़े, क्रमश: 92 और 21 थे. शहर के क़ब्रिस्तानों का भी दावा था, कि मरने वालों की संख्या बढ़ गई है.
लखनऊ के सबसे बड़े क़ब्रिस्तानों में से एक, ऐशबाग़ क़ब्रिस्तान में 1 अप्रैल के बाद से 350 से अधिक जनाज़े आ चुके हैं, और वहां काम करने वाले स्टाफ ने बताया, कि ‘पिछले महीने से’ ये संख्या तीन गुना बढ़ गई है.
मृतकों की संख्या साझा करते हुए, क़ब्रिस्तान की देखभाल करने वाली कमेटी के एक मेम्बर ने बताया, कि फरवरी और मार्च के महीनों में, उनके यहां ज़्यादा कोविड शव नहीं आए, लेकिन 1 अप्रैल से ऐसे 22 शव आ चुके हैं. उन्होंने कहा कि ज़्यादा चिंताजनक बात ये है, कि पिछले कुछ दिनों से वहां आने वाले ‘ग़ैर-कोविड शवों’ की संख्या बहुत बढ़ गई है.
जुमे की दोपहर जब दिप्रिंट ने ऐशबाग़ क़ब्रिस्तान का दौरा किया, तो वहां काफी भीड़ जमा थी, और लोग लंबी लाइनें लगाकर, अपने मृत परिजनों या परिचितों को दफ्नाने के लिए, अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे.
बृहस्पतिवार के स्वास्थ्य बुलेटिन के अनुसार, यूपी में कुल 1,29,848 एक्टिव मामले हैं. राजधानी लखनऊ अभी भी राज्य में सबसे अधिक प्रभावित है, जहां बृहस्पतिवार को ये संख्या 35,865 पहुंच गई, जबकि केवल पिछले 24 घंटों में 5,183 ताज़ा मामले दर्ज हुए.
दिप्रिंट ने अतिरिक्त स्वास्थ्य सचिव अमित मोहन प्रसाद, और लखनऊ ज़िला मजिस्ट्रेट अभिषेक प्रकाश से, मौतों के बेमेल आंकड़ों पर टिप्पणी लेने के लिए, फोन कॉल्स और संदेशों के ज़रिए संपर्क किया, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया.
निगम आयुक्त अजय द्विवेदी ने कहा, ‘संबंधित अधिकारी ही आंकड़ों पर टिप्पणी कर पाएंगे, हम (केवल) कोविड शवों के दाह-संस्कार की निगरानी कर रहे हैं’.
लखनऊ नगर निगम के एक अधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘डीएम (अभिषेक प्रकाश) के वीडियो, जिसमें वो कह रहे हैं कि लोग सड़कों पर मर रहे हैं, के वायरल होने के बाद से, वो ख़ामोश हो गए हैं. लोगों का सारा रोष अब (लखनऊ निगम आयुक्त) अजय द्विवेदी की तरफ मुड़ गया है, जिन्हें कोविड दाह-संस्कारों की निगरानी का ज़िम्मा मिला हुआ है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे पास पहले ही फंड्स ख़त्म हो रहे हैं. उसके ऊपर हमें हर रोज़ चिता की लकड़ियों के लिए, 8-10 लाख रुपए ख़र्च करने पड़ते हैं. हम हर रोज़ 5 क्विंटल लकड़ी मंगा रहे हैं’.
हर 10 मिनट पर एक शव, ग़ैर-कोविड मौतों में 2.5 गुना उछाल
सिर्फ कोविड शव ही नहीं, स्टाफ का कहना है कि श्मशान घरों में, सामान्य शवों की संख्या में भी, भारी इज़ाफा देखा जा रहा है. दिप्रिंट ने दोनों घाटों पर कुछ घंटे बिताए, और देखा कि वहां हर 10 मिनट पर, एक शव पहुंच रहा था.
बैकुंठ धाम के एक कर्मचारी ने दिप्रिंट से कहा: ‘हम पर काम का बहुत बोझ है. होली के बाद संख्या बढ़नी शुरू हो गई थी. मैंने पिछले साल से कोई छुट्टी नहीं ली है. लेकिन जैसे ही मैंने छुट्टी लेने का मन बनाया, तक़रीबन 60-65 शव हर रोज़ आने लगे’.
अपनी घायल टांग की ओर इशारा करते हुए उसने कहा, ‘मेरे साथ एक दुर्घटना हो गई थी, लेकिन मैं आराम नहीं कर सकता. ये कोई मामूली संख्या नहीं है. कुछ लोगों को अपने लाए हुए शवों के अंतिम संस्कार के लिए, 5-6 घंटे तक इंतज़ार करना पड़ा. पहले ये औसत संख्या 20-25 शव प्रतिदिन हुआ करती थी. पिछले एक हफ्ते में ग़ैर-कोविड शवों की संख्या में भी भारी उछाल देखा गया’.
और कोई नहीं जानता कि ये शव कोविड-संक्रमित थे कि नहीं.
निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, समझाया, ‘हम भी इन आंकड़ों को देखकर हैरान हैं. हम इन्हें (आंकड़े) माडिया के लिए जारी नहीं कर रहे हैं, लेकिन ये कोई सामान्य स्थिति नहीं है. बहुत से (मरीज़) निमोनिया की शिकायत नहीं कर रहे हैं. उनमें से कुछ को एंबुलेंस नहीं मिली, तो कुछ को अस्पतालों ने वापस लौटा दिया. उनकी मौत चिकित्सा देखभाल न मिलने की वजह से हुई. ये संख्या 2.5 गुना बढ़ गई है. उनके टेस्ट भी नहीं किए जा रहे हैं, इसलिए हमें नहीं मालूम कि वो वायरस से संक्रमित थे कि नहीं’.
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