सूरत का यह मुस्लिम व्यक्ति कोविड मरीजों का अंतिम संस्कार हिन्दू रीति रिवाज़ से करता है
दायित्व निभाने वाले के रूप में अब्दुल मालबारी ने कुछ सबसे खराब आपदाएं देखी हैं -जिसमें 1998 गुजरात चक्रवात, 2001 भुज भूकंप, 2013 केदारनाथ बाढ़ और अब सूची में 2020 का कोविड भी जुड़ गया है.
सूरत: अब्दुल रहमान मालबारी, जो 62 वर्षों से लावारिस शवों को संभालते आ रहे हैं ने कोरोनोवायरस महामारी के दौरान और भी अधिक उल्लेखनीय काम किया है.
1998 में गुजरात चक्रवात से लेकर 2006 की सूरत में आई बाढ़, 2001 का भुज भूकंप और 2005 और 2013 में मुंबई और केदारनाथ में बाढ़ अब्दुल हमेशा मौके पर रहे हैं. वह कई पीड़ितों की मदद कर चुके हैं.
चाहे लाशों को दफन करना हो या विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार उनका दाह संस्कार करना हो अब्दुल ने इन सभी संस्कारों को उन लोगों के लिए निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है जिनके लिए कोई और आगे नहीं आता है.
अभी हाल ही में, जब से कोविड-19 ने देश पर हमला किया हैं उन्होंने और भी अधिक जिम्मेदारियों को निभाया है और वायरस के कारण मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार के साथ सूरत प्रशासन को मदद करने वाले उपक्रमों में से एक बन गया है. सूरत नगर निगम ने अपने संगठन, एकता ट्रस्ट को कोविड पीड़ितों के शवों का दाह संस्कार और दफनाने का काम सौंपा है.
मार्च के बाद से अब्दुल ने कोविड रोगियों के 1,200 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया है, जिनमें से लगभग 800 हिंदू थे. यद्यपि वह हर संभव सावधानी बरत रहा है, फिर भी उसने मार्च के अंत में उनको कोरोना हो गया था, लेकिन ठीक होते ही काम पर लौट आया.
दिप्रिंट के नेशनल फोटो एडिटर प्रवीण जैन आपको उनकी कहानी चित्रों के माध्यम से बताते हैं.
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