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Monday, 6 May, 2024
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SC ने 7 जोड़ों के लिए सरोगेसी नियमों पर लगाई रोक, डोनर अंडो के इस्तेमाल की दी अनुमति

सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वह सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 के उस प्रावधान पर रोक लगा सकता है, जो इच्छुक माता-पिता को सरोगेट बच्चे को जन्म देने के लिए डोनर अंडे स्वीकार करने से रोकता है.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सात जोड़ों के लिए सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 के एक विवादास्पद प्रावधान पर रोक लगा दी, जिससे उन्हें सरोगेट बच्चे को जन्म देने के लिए डोनर अंडे स्वीकार करने की अनुमति मिल गई है.

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की अगुवाई वाली दो-न्यायाधीशों की पीठ ने प्रत्येक मामले में मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद जोड़ों के लिए एक अपवाद बनाया, जिसमें पुष्टि की गई कि महिलाएं मेडिकल स्थितियों के कारण अपने स्वयं के अंडे का प्रोडक्शन करने में असमर्थ थीं.

इस आदेश से दंपतियों को राहत मिली क्योंकि उन्होंने सरोगेसी के लिए प्रोसेस शुरू कर दिए थे, लेकिन पिछले साल मार्च में नियमों में अचानक संशोधन के कारण वे इसे पूरा नहीं कर सके.

इन जोड़ों ने अपने-अपने डॉक्टर की मेडिकल सलाह के आधार पर सरोगेसी का विकल्प चुना था.

14 मार्च 2023 को अधिसूचित सरोगेसी नियमों में संशोधन ने सरोगेसी के लिए डोनर गैमेट्स को अनुमति नहीं दी. संशोधित नियम के हिसाब से, “सरोगेसी से गुज़रने वाले जोड़े के पास इच्छुक जोड़े से दोनों गैमेट्स होने चाहिए और डोनर गैमेट्स की अनुमति नहीं है”.

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हालांकि, नए नियम एकल महिलाओं — केवल विधवा या तलाकशुदा — को सरोगेसी का लाभ उठाने के लिए अपने स्वयं के अंडे और डोनर के स्पर्म का इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं.

जोड़ों ने संशोधन के पीछे के तर्क पर सवाल उठाते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था और कहा था कि यह मनमाना है और इसे “मनमौजी तरीके” से किया गया है और मूल कानून, सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के उद्देश्य को नकारता है.

उन्होंने महिलाओं की मेडिकल कंडीशन के कारण अदालत से सरोगेसी के लिए आगे बढ़ने की अनुमति मांगी.

जोड़ों ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत ज़रूरी सर्टिफिकेट हासिल कर लिए थे.

चूंकि, यह प्रक्रिया सरोगेसी विनियमन में संशोधन से पहले शुरू हुई थी, इसलिए जोड़ों ने तर्क दिया कि वे नए नियमों के दायरे में नहीं आते हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए जोड़ों की वकील, प्रिया मोहिनी ने कहा, “चूंकि नियम सरोगेसी का लाभ उठाने के लिए महिलाओं के लिए ऊपरी आयु सीमा तय करते हैं, जो कि 50 वर्ष है, हमने पीठ से अनुमति के लिए जोड़ों के आवेदन पर जल्द ही फैसला करने का अनुरोध किया क्योंकि किसी भी देरी के इससे उनके बच्चा पैदा करने की संभावना कम हो जाएगी.”

पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति संजय करोल भी शामिल थे, ने मंगलवार को उन क्षेत्रों के संबंधित जिला मेडिकल बोर्डों की राय के बाद सरोगेसी नियमों के नियम 7 पर रोक लगाने का अपवाद दिया, जहां जोड़ों को मेडिकल कंडीशन की पुष्टि की जाती है.

अदालत द्वारा मामलों को इन बोर्डों को भेजे जाने के जवाब में राय भेजी गई थी.


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पूरी तरह से कार्ड पर बने रहने की संभावना?

मंगलवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी संकेत दिया कि वह समान जोड़ों को सरोगेसी के लिए सक्षम करने के लिए चुनौती दिए गए नियम पर रोक लगा सकती है.

जस्टिस करोल का विचार था कि जोड़ों को दी गई राहत उन लोगों तक सीमित नहीं होनी चाहिए जो सुप्रीम कोर्ट आने का खर्च उठा सकते हैं.

जज ने कहा, “यह (राहत) समृद्धों को क्यों उपलब्ध होनी चाहिए. हर कोई अदालत नहीं जा सकता.”

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भट्टी ने पीठ को बताया कि सरोगेसी के लिए एक रूपरेखा विकसित करने के लिए सरोगेसी अधिनियम के तहत गठित राष्ट्रीय बोर्ड इस पहलू पर गौर कर रहा है.

उन्होंने कहा कि उन्होंने उक्त नियम पर पुनर्विचार करने के लिए सरकार को व्यक्तिगत अभ्यावेदन दिया है.

पीठ ने सात जोड़ों को सरोगेसी की अनुमति देने के लिए नियम 14 का सहारा लिया. नियम 14 उन स्थितियों को रेखांकित करता है जिनमें एक जोड़ा सरोगेसी का विकल्प चुन सकता है, जिसमें गंभीर मेडिकल कंडीशन भी उनमें से एक हैं.

पांच अन्य मामलों के संबंध में पीठ ने सुनवाई की तारीख 5 फरवरी तय की है. उनमें से तीन को संबंधित मेडिकल बोर्ड को भेजा गया था और शेष दो में, बोर्ड से रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है.

जोड़ों ने एक लंबित मामले में डोनर अंडो का उपयोग करने की अनुमति देने के लिए अपना आवेदन दायर किया था, जिसमें कई आधारों पर सरोगेसी अधिनियम, 2021 को चुनौती दी गई है.

याचिकाओं में कई कारणों से मूल कानून पर सवाल उठाया गया है, जैसे वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध और यहां तक कि सरोगेसी को विवाहित जोड़ों, या उन महिलाओं तक सीमित करना जो न्यायिक रूप से अलग हो गए हैं या अपने पति या पत्नी को खो चुके हैं.

सरोगेसी नियमों में अचानक संशोधन मार्च 2023 में अदालत के एक सवाल के बाद किया गया था, जिसने केंद्र से यह स्पष्ट करने के लिए कहा था कि क्या सरोगेट मां को इच्छुक जोड़े से जैविक रूप से संबंधित होना चाहिए.

यह स्पष्ट करते हुए कि सरोगेट मां को आनुवंशिक रूप से संबंधित होने की ज़रूरत नहीं है. सरोगेसी नियमों में संशोधन के बाद 3 मई 2023 को इस रुख को स्पष्ट करते हुए एक हलफनामा अदालत में दायर किया गया था.

संशोधन पर सवाल उठाने वाले जोड़ों के अनुसार, परिवर्तन “केवल राष्ट्रीय बोर्ड के कुछ सदस्यों के पूर्वाग्रहों पर आधारित एक बाद का विचार था, जिसमें कोई तर्क या मजबूत निर्धारण सिद्धांत नहीं था”.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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