बेंगलुरू: भगवद गीता कर्नाटक में बीजेपी तथा कांग्रेस दोनों के बीच चर्चा का एक ताज़ा विषय बन गई है, जहां इस मामले में दोनों पार्टियां, एक दूसरे पर बढ़त हासिल करने की कोशिश कर रही हैं.
ये चर्चा तब शुरू हुई जब पिछले हफ्ते गुजरात सरकार ने ऐलान किया, कि वो धर्म ग्रंथ संबंधी लेख को, जो महाकाव्य महाभारत का हिस्सा है, छठी से 12वीं कक्षा तक के पाठ्यक्रम में शामिल करेगी.
उसके बाद से कर्नाटक में बीजेपी तथा कांग्रेस दोनों पार्टियों के नेताओं में, भगवद गीता के प्रति आत्मीयता दिखाने की होड़ सी मच गई है, भले ही कर्नाटक के स्कूलों में इस लेख को शुरू किए जाने का कोई अधिकारिक प्रस्ताव, अभी दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा है.
जहां कर्नाटक मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई, और केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी जैसे बीजेपी नेताओं ने तुरंत ही, कर्नाटक के गुजरात का अनुकरण करने पर अपनी स्वीकृति दे दी, वहीं कांग्रेस भी मौक़े का फायदा उठाते हुए, हिंदू महाकाव्यों को मुख्यधारा में लाने का श्रेय ले रही है.
कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने रविवार को पत्रकारों से कहा, ‘हम भी हिंदू हैं. कर्नाटक को छोड़िए, प्रधानमंत्री की हैसियत से राजीव गांधी ने, सिर्फ स्कूली बच्चों नहीं बल्कि देश भर में सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए, रामायण और महाभारत को मुख्यधारा में लाने की बुनियाद रखी थी’.
ये इशारा टीवी धारावाहिक रामायण की ओर था, जिसे दूरदर्शन पर उस समय प्रसारित किया जा रहा था, जब केंद्र में कांग्रेस सत्ता में थी. शिवकुमार ने अपने ट्वीट के तुरंत बाद एक ट्वीट भी कर दिया.
Remembering those Sundays when every morning the nation used to be glued to their TVs, watching the epic Ramayana, aired for the first time during former PM Sh. Rajiv Gandhi's tenure. pic.twitter.com/q6JwD2RNL1
— DK Shivakumar (@DKShivakumar) March 20, 2022
हिंदू महाकाव्यों के प्रति आत्मीयता जताने की कांग्रेस की उत्सुकता ऐसे समय पर देखी जा रही है, जब कर्नाटक में पार्टी 2023 के विधान सभा चुनावों से पहले, ‘हिंदूवाद बनाम हिंदुत्व’ की बहस को उठा रही है, भले ही बीजेपी हर मौक़े पर सोशल मीडिया में उसपर ‘हिंदू-विरोधी’ होने का आरोप लगाती रहती है, जिनमें हिजाब विवाद से लेकर धर्मांतरण-विरोधी बिल, और मवेशी-हत्या विरोधी क़ानून तक शामिल हैं.
यह भी पढ़ें : मुस्लिम धर्मगुरू ने किया HC के हिजाब आदेश के खिलाफ कर्नाटक बंद का आह्वान, दलित संगठन का मिला समर्थन
कांग्रेस का ‘हिंदू-समर्थक’ जवाबी नैरेटिव
कांग्रेस हिंदुत्व के मुक़ाबले, जिसे वो बीजेपी और आरएसएस का ‘विभाजनकारी एजेंडा’ मानती है, हिंदूवाद का नैरेटिव खड़ा करने में जूझती आ रही है, जिसे वो एक समावेशी और सहनशील धर्म के तौर पर परिभाषित करती है.
इसलिए भगवद गीता को स्कूलों में पढ़ाने के विचार का विरोध न करने को, पार्टी अपनी हिंदू-समर्थक मानसिकता को साबित करने के, एक अवसर के रूप में देखती है.
मसलन, पूर्व मुख्यमंत्री और कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सिद्धारमैया ने, ये घोषणा करने में देर नहीं लगाई कि कांग्रेस को, स्कूलों में ‘नैतिक विज्ञान’ के पाठ्यक्रम के तहत, भगवद गीता के पढ़ाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है.
सिद्धारमैया ने कहा, ‘मैं भी एक हिंदू हूं, और मुझे घर पर भी भगवद गीता पढ़ाई गई है. रामायण का गांवों में नाटकों की तरह मंचन होता है. नैतिक शिक्षा की आवश्यकता है’. लेकिन, उन्होंने आगे कहा, कि ऐसी शिक्षा से ‘संविधान का उल्लंघन नहीं होना चाहिए’.
सिद्धारमैया ने कहा, ‘चाहे वो भगवग गीता पढ़ाएं, या बाइबिल या क़ुरान, बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए जिससे वो आज के बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बन सकें…हम सभी धर्मों को बराबर सम्मान देने में विश्वास रखते हैं, चाहे वो हिंदू धर्म हो, ईसाइयत हो, इस्लाम हो या फिर सिख धर्म या (पारसी धर्म) हो, हम सभी का समान रूप से आदर करते हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का रुख़, पहले के उस धर्म-निर्पेक्ष तर्क से प्रस्थान है, जिसमें धर्म को राजनीतिक चर्चा के पहलुओं से बाहर रखने की बात की जाती थी.
बेंगलुरू के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़ में स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़ के डीन और राजनीतिक विश्लेषक, प्रोफेसर नरेंदर पानी ने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर कांग्रेस हिंदू धार्मिक संगठनों के एक वर्ग का समर्थन चाहती है, तो वो इसके अलावा कोई दूसरा रुख़ इख़्तियार नहीं कर सकती. इस रुख़ का सार ये है कि क्या आप ऐसा मानते हैं, कि हिंदू धर्म समेत देश भर की संस्कृतियों पर हिंदुत्व बहुसंख्यकवाद का अधिकार है, या सभी संस्कृतियों की अपनी एक जगह है, जिसमें से कांग्रेस एक वर्ग का समर्थन चाहती है.
स्कूलों में भगवदगीता शुरू करने का ‘कोई प्रस्ताव नहीं’
हालांकि मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने काफी बखान किया, कि किस तरह भगवद गीता छात्रों को ‘नैतिक मूल्यों’ का पाठ पढ़ाएगी, लेकिन अभी तक निकट भविष्य में, उसे पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की दिशा में कोई प्रस्ताव सामने नहीं आया है.
बोम्मई ने शनिवार को पत्रकारों से कहा, ‘अगर भगवद गीता नहीं तो फिर नैतिक मूल्य और किससे हासिल होंगे? इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में, छात्रों को नैतिक शिक्षा की ज़रूरत है, और गीता इसमें उनकी मदद करेगी’. उन्होंने आगे कहा कि इसे शुरू किए जाने का निर्णय बातचीत के बाद ही लिया जाएगा.
मुख्यमंत्री प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश का समर्थन कर रहे थे, जिन्होंने नैतिक विज्ञान की कक्षाओं में ग्रंथ को शुरू किए जाने का प्रस्ताव रखा था.
लेकिन, अगले ही दिन राज्य के क़ानून एवं संसदीय कार्य मंत्री जेसी मधुस्वामी ने कहा, कि भगवद गीता को स्कूलों में शुरू किए जाने का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है.
मंत्री ने रविवार को कहा, ‘स्पष्ट कर दिया गया है कि स्कूलों पाठ्यक्रमों में भगवद गीता शामिल किए जाने का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है’.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें : कर्नाटक सरकार बोली- हिजाब पर फैसला ‘ऐतिहासिक’, मुस्लिम संगठनों को ‘निराशाजनक’ लगा हाई कोर्ट का फैसला