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Sunday, 22 December, 2024
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प्रयागराज के फ्लड प्लेन एरिया में गरीबों के ही नहीं अमीरों के भी हैं घर, कैसे ताक पर रखे जा रहे नियम

प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने 30,715 अवैध निर्माणों की पहचान की है. यह संख्या उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक है. अधिकारी का कहना है कि बाढ़ वाले क्षेत्रों में हुए निर्माण को गिराना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है.

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प्रयागराज : प्रयागराज में किराना दुकान चलाने वाले दीपक केसरवानी फिलहाल खासे परेशान हैं. उनके दो मंजिला मकान में चारों तरफ से सीवेज का पानी घुस गया है. लेकिन उनके लिए यह कोई नई बात नहीं है. मकान के भूतल में पानी भर जाने की समस्या से वह हर साल दो-चार होते आएं है. इसके चलते उनके तीन सदस्यों के परिवार को मानसून के दौरान लगभग एक महीने के लिए पहली मंजिल पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

परेशानी सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती है. गंगा के बाढ़ के मैदानों में बसे नवादा इलाके में अपने घर तक पहुंचने के लिए भी उन्हें खासी मशक्कत करनी पड़ती है. एक संकरे टूटे रास्ते पर चलते हुए हर कदम पर नजर रखनी पड़ती है, वरना दुर्घटना होने में देर नहीं लगेगी. इतनी परेशानियों के बावजूद वह वहां से जाने के लिए तैयार नहीं हैं.

दीपक से जब धूमनगंज, करेली और झूंसी जैसे इलाकों में अवैध घरों को गिराने के लिए चलाए जा रहे विध्वंस अभियान के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने जवाब में कहा, ‘ इस इलाके में कम से कम 50,000 घर हैं. बाढ़ के मैदानों में तो ऐसे लाखों घर बने हैं. मैं अकेला नहीं हूं. कुछ न होगा. अगर बुलडोजर चला, तो सभी के घर टूटेंगे. सरकार हमारे घरों को ऐसे ही नहीं गिरा देगी.’

दरअसल प्रयागराज की जेल में बंद गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद और उनके सहयोगियों की संपत्तियों पर कार्रवाई ने इस बहस को फिर से ताजा कर दिया है कि कैसे गंगा के उच्चतम बाढ़ स्तर के 500 मीटर के दायरे के भीतर निर्माण पर प्रतिबंध लगाने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2011 के आदेश के बावजूद, शहर भर में अवैध कॉलोनियां तेजी से बढ़ी हैं, खासतौर पर बाढ़ वाले मैदानों में.

उत्तर प्रदेश सरकार अतीक अहमद पर नकेल कस रही है. उधर प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने आवास और शहरी नियोजन विभाग को सूचित किया है कि उसने 30,715 अवैध निर्माणों की पहचान की है. यह संख्या राज्य में सबसे अधिक है.

आवास विभाग को दिए गए आंकड़ों के अनुसार, प्रयागराज के बाद वाराणसी (24,758) और गोरखपुर (23,389) का नंबर आता है. यह आंकड़े 28 फरवरी तक के थे.

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सभी विकास प्राधिकरणों से इकट्ठा किए गए डेटा को आवास विभाग के पोर्टल पर अपलोड किया गया है. उन्होंने यह भी बताया कि सरकार की तरफ से अवैध निर्माणों का ‘निपटान’ करने के लिए एक रोडमैप तैयार करने का निर्देश भी दिया गया है.

पीडीए के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को जानकारी देते हुए कहा कि नैनी, झालवा, झूंसी, सुलेमसराय और फाफामऊ जैसे क्षेत्रों और प्रयागराज के बाहरी इलाकों में अवैध मकानों की अधिकतम संख्या की पहचान की गई है.

जब प्रमुख सचिव (आवास) नितिन रमेश गोकर्ण से प्रयागराज के बाढ़ क्षेत्र में ऐसी अवैध कॉलोनियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘विभाग ने ऐसे अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई के लिए विभिन्न प्राधिकरणों से कार्य योजना मांगी है.’ बाढ़ के मैदानों में विध्वंस ही एक मात्र समाधान है, वह इस बात से सहमत नजर आए.


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क्या नंबरों में हेराफेरी की गई है?

गंगा प्रदूषण के मामले में ही 2011 में निर्माण प्रतिबंध का फैसला आया था. इस सुनवाई के दौरान ‘न्याय मित्र’ रहे सीनियर एडवोकेट अरुण गुप्ता का कहना है कि बताई जा रही संख्या बहुत कम है क्योंकि प्रयागराज के ‘कच्छर क्षेत्र’ (स्थानीय बोलचाल में बाढ़ के मैदानों को कहा जाता है) में हर जगह अवैध कॉलोनियों फैली हुई हैं.

उन्होंने कहा, ‘कुछ कॉलोनियां अदालत के आदेश से पहले बनी थीं, लेकिन रोक लगाने के बाद भी हजारों घरों का निर्माण कार्य हुआ है. करेली, दारागंज, नीवा आदि में तो लाखों नए घर बन गए हैं. मुकदमे की कार्यवाही के दौरान सरकार ने कई हलफनामे दायर किए और अदालत के निर्देश पर निर्माण का विवरण साझा किया था.’

सुनील कुमार का मामला इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे बाढ़ के मैदानों में कुकरमुत्तों की तरह कॉलोनियां उग आई हैं. वह एक प्लंबर हैं, जिनके पिता 20 साल पहले जौनपुर से आए प्रयागराज आए थे.

दीपक की तरह सुनील को भी पता है कि उनका घर ‘कछार क्षेत्र’ में बना है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जब हमने घर बनाया था, तो यहां शायद ही कोई घर था. मेरे पिता पेंशन विभाग में क्लर्क थे और शहर के मुकाबले यहां जमीन काफी सस्ती थी. हमारे पास बिजली और पानी के कनेक्शन हैं. सीवर लाइन काफी पुरानी है. यहां जजों, वकीलों और सरकारी अधिकारियों के घर हैं. एक स्थानीय पार्षद पवन भारती ने यहां कई प्लॉट बेचे हैं.’

दिप्रिंट ने पार्षद भारती के बाढ़ के मैदान में बने ग्रे रंग के तीन मंजिला घर का दौरा किया.

दिप्रिंट से बात करते हुए भारती ने कहा, ‘अदालत का आदेश अधिकतम बाढ़ बिंदु से 500 मीटर के भीतर निर्माण पर रोक लगाता है. अगर इस मानदंड के हिसाब से देखा जाए तो प्रयागराज का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ के मैदानों से भरा हुआ है, कहीं पर पानी का स्तर ऊंचा है तो कहीं कम. राजापुर से नवादा की ओर बहने वाला एक बड़ा नाला है जो बाढ़ का कारण बनता है. जो लोग यहां संपत्ति खरीदते हैं, वे शहर के बीचोबीच घर नहीं खरीद सकते हैं. वहां 100 वर्ग मीटर जमीन की कीमत लगभग 1.5 करोड़ रुपये है. रिक्शा चालक सहित मजदूर वर्ग के परिवार यहां जमीन खरीदते हैं. अगर सरकार निर्माण नहीं चाहती है तो उन्हें आवास मुहैया कराये…’

उन्होंने कई भूखंडों को बेचने की बात स्वीकार करते हुए दावा है किया कि वह या तो उसकी पुश्तैनी जमीन थी या फिर उनके रिश्तेदार की.

भू-माफिया और राजनीतिक गठजोड़

उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि माफिया ने यहां जबरदस्ती जमीन हथिया ली है. उनमें से तो कई वकील के रूप में काम करते हैं.’

दिप्रिंट ने नवादा और अशोक नगर क्षेत्रों का सर्वे किया तो पाया कि वहां रिटायर्ड जजों के साथ-साथ वकीलों और आईपीएस अधिकारियों के नेम प्लेट वाले घर भी मौजूद हैं. ये नेमप्लेट खुलासा कर रहीं थीं कि गंगा और यमुना बाढ़ के मैदानों में किस तरह से निर्माण अनियंत्रित होता चला जा रहा है.

The house of a police officer in one of the many colonies that have come up in the Ganga floodplain area across Prayagraj | Shikha Salaria | ThePrint
प्रयागराज गंगा फ्लड प्लेन एरिया में आने वाले तमाम घर । शिखा सलारिया । दिप्रिंट

गुप्ता का आरोप है कि तेजी से हो रहे निर्माण के पीछे नेताओं, बिल्डरों और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत है.

उन्होंने ऐसे निर्माणों की जांच करने में विफल रहने के लिए प्रयागराज विकास प्राधिकरण को भी दोषी ठहराया. एडवोकेट ने कहा, ‘बाढ़ से प्रभावित इलाकों में सरकारी कार्यालय भी बने हैं. पर्यटन विभाग का एक होटल है, एक एसटीपी प्लस पम्पिंग स्टेशन है. पीडीए और स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसे निर्माणों की जांच करे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. यहां लाखों घर बन गए हैं.’

1978 की विनाशकारी बाढ़ के बाद बाबा चौराहा जैसी जगहों के पास उच्चतम बाढ़ स्तर (HFL) वाले इलाकों की पहचान करने के लिए खंभे लगाए गए थे ताकि आगे के निर्माण को रोका जा सके. गुप्ता ने कहा, ‘एचएफएल सीमा के भीतर निर्माण को रोकने के लिए कई मौकों पर कई जगहों पर खंभे लगाए गए थे. लेकिन माफिया, स्थानीय पुलिस और प्रशासन की सांठगांठ के कारण बार-बार खंभों को उखाड़ दिया जाता है.’

रिटायर्ड जज निशेश बाजपेई का अशोक नगर इलाके के पत्रकार कॉलोनी में एक घर है. उनके मुताबिक ये कॉलोनी 1988-89 के आस-पास बनाई गई थी. उसके बाद से काफी लोगों ने बाढ़ के मैदानों में अपने घर बनाए हैं और अभी भी निर्माण कार्य रुका नहीं है.

वह कहते हैं, ‘घरों के कुछ नक्शों को पीडीए ने पास किया हुआ है. आगे कोई निर्माण कार्य न हो यह सुनिश्चित करने के लिए एक बार इस इलाके को चिह्नित भी किया गया था. लेकिन इसके बावजूद निर्माण कार्य नहीं रुका, इमारतें बनती चली आई हैं. जैसे-जैसे हम गंगा की ओर आगे बढ़ते चलेंगे, हमें बाढ़ के मैदानों में कई और कॉलोनियां बनती दिखाई देंगी.’


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सरकारी फंड से बनाई सड़कें

सुनील की पत्नी मीरा देवी का कहना है कि इलाहाबाद उत्तर के विधायक हर्षवर्धन बाजपेयी ने करीब दो साल पहले नेवादा की एक कॉलोनी में घरों को जोड़ने वाली इंटरलॉकिंग सड़क बनाने में मदद की थी. दीपक जैसे अन्य परिवार भी अब इसी तरह की सड़कों की मांग कर रहे हैं.

A board with details of interlocking road construction in Prayagraj's Newada area. Next to it is the plaque showing the road's inauguration by local MLA | Shikha Salaria | ThePrint
प्रयागराज के नवादा इलाके में इंटरलॉकिंग की सूचना के साथ एक बोर्ड. साथ ही एक सूचना पट्ट लगा है जिसमें कहा गया है कि रोड का उद्घाटन स्थानीय विधायक द्वारा किया गया है । शिखा सलारिया । दिप्रिंट

सुनील के घर की ओर जाने वाली सड़क के एक कोने पर लगे पीले रंग के बोर्ड में ‘पूर्वांचल विकास निधि-2020-21′ के तहत बनाई गई इंटरलॉकिंग सड़क का बोर्ड टंगा है, वहीं एक पट्टिका में फूलपुर सांसद केशरी देवी की उपस्थिति में विधायक द्वारा इसके उद्घाटन का जिक्र है.

सरकारी सहायता से ऐसी सड़कों के निर्माण के बारे में पूछे जाने पर बाजपेयी कहते हैं कि अतीत में कुप्रबंधन हुआ है और वैसे भी लाखों लोगों को बुनियादी सुविधाओं से वंचित करना मुश्किल है.

वह ऐसी कॉलोनियों के बढ़ने के पीछे भू-माफिया, स्थानीय पुलिस और पीडीए अधिकारियों की मिलीभगत को स्वीकार करते है. उन्होंने कहा, ‘पहली बार में ही यहां निर्माण किए जाने पर रोक लगी दी जानी चाहिए थी. यह एक और धारावी बन गया है. कोई भी समस्या का समाधान नहीं कर पाया है. आगे के निर्माण से बचने के लिए बाढ़ के मैदान क्षेत्र का सीमांकन करने के लिए कई खंभे लगाए गए थे, लेकिन शरारती तत्वों ने उन्हें हटा दिया. इसमें भू-माफिया, स्थानीय पुलिस और पीडीए की मिलीभगत है. नहीं तो इतने सालों में इतनी अवैध कॉलोनियां कैसे बन गईं?’

स्थानीय विधायक का दावा है कि उन्होंने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया था और सुझाव दिया था कि निर्माण रोकने के लिए एचएफएल क्षेत्र का सीमांकन करने के लिए एक रिबन सड़क बनाई जाए.

पीडीए के एक अधिकारी इस बड़ी पहेली को समझाते हुए कहते हैं कि प्राधिकरण को ऐसे अवैध घरों को बनने से रोकना चाहिए था, लेकिन नगर निगम ही इन कॉलोनियों को सुविधाएं देता है. उन्होंने कहा, ‘रजिस्ट्री विभाग अभी भी ऐसी संपत्तियों की रजिस्ट्री कर रहा है. हमारी आपत्तियों के बावजूद उन्होंने ऐसा करना जारी रखा हुआ है क्योंकि इससे उन्हें कमाई होती है.’

पीडीए के संयुक्त सचिव अजय कुमार का कहना है कि प्राधिकरण अवैध संपत्तियों के मालिकों पर उनके भवन के नक्शे पास कराने के लिए दबाव डालता है.

उन्होंने कहा, ‘कई अवैध संपत्तियों की पहचान की गई और उनके मालिकों को कंपाउंडिंग फीस के भुगतान के बदले में नक्शे पास कराने का दबाव डाला गया ताकि उन्हें वैध बनाया जा सके. हालांकि बाढ़ के मैदानों में निर्माण को वैध नहीं किया जा सकता है. आखिर में इन्हें ध्वस्त करना ही पड़ेगा, लेकिन व्यावहारिक रूप से विध्वंस संभव नहीं है.’

दिप्रिंट ने फोन और मैसेज के जरिए पीडीए के उपाध्यक्ष अरविंद चौहान से संपर्क किया था, लेकिन उनकी तरफ से रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया.

नवादा में वापस दीपक के पास आते हैं. उनके आत्मविश्वास को देखते हुए हम सहज तौर पर अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां निर्माण क्यों नहीं रोका जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘ यहां एक जज ने भी घर बनाया हुआ है. IPS अधिकारी और राजनेताओं के भी घर हैं. अगर बुलडोजर चलता है, तो सरकार को इसका विकल्प तलाशना होगा.’

नवादा में याद मोहम्मद जैसे अन्य लोग कम चौकस हैं. दीपक ने कहा, ‘ये घर पिछले 35 सालों में बने हैं. अब लोग गंगा किनारे चंद मीटर के दायरे में जमीन बेच रहे हैं. उन्हें पता है कि उनका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है.’ दुकानदार का कहना है कि वह अगस्त में फिर से आने वाली बारिश को झेलने के लिए लिए तैयार है. उनका परिवार फिर से पहली मंजिल पर शिफ्ट हो जाएगा.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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