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Monday, 23 December, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने जय शाह-द वायर मामले में प्रेस की स्वतंत्रता को सर्वोपरि बताया, मीडिया को लगाई फटकार

द वायर की पत्रकार रोहिणी सिंह ने अपने एक लेख व्यापारी जय शाह के बारे में छापा था, तब जय शाह ने निचली अदालत में मानहानि का दावा ठोका था.

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नई दिल्ली: जय शाह और समाचार वेबसाइट ‘द वायर’ की पत्रकार के मानहानि मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक को हटा दी है. जय शाह ने पत्रकार रोहिणी सिंह के एक लेख को लेकर उन पर मानहानि का केस किया था. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात की अदालत को आदेश दिया है कि वो जल्द से जल्द मामले की सुनवाई पूरी करें.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरुण मिश्रा की तीन जजों की पीठ ने जय शाह द्वारा द वायर की पत्रकार रोहिणी सिंह पर लगाए मानहानि मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर लगी रोक को हटाते हुए मीडिया पर खासकर वेब मीडिया को भी सलाह दी है. मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘प्रेस की स्वतंत्रता सर्वोपरि है लेकिन ये एक तरफा नहीं होना चाहिए.’

तीन जजों की पीठ में न्यायाधीश अरुण मिश्रा के साथ न्यायाधीश एमआर शाह और न्यायाधीश बीआर गवई भी थे.द वायर की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा, ‘वो बिना किसी शर्त के अपने तीनों याचिका को वापस ले रहे हैं और वो ट्रायल को लेकर तैयार हैं.’

जय शाह की तरफ से वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने जल्दी ट्रायल पूरी होने पर जोर दिया और कहा, ‘उनके मुवक्किल को द वायर की तरफ से रात के 1 बजे सवाल भेजे गए और स्टोरी को अगले दिन शाम 6 बजे छाप दिया गया.’ अदालत ये जानना चाहती है कि इतने कम समय दिए जाने का क्या मकसद था और संस्थान को इससे क्या नुकसान हो रहा था.

अदालत ने सुनवाई के दौरान साफ किया कि वो सिर्फ महत्वपूर्ण पहलुओं की ही सुनवाई करेगा. अदालत ने यह भी कहा वो सिर्फ इस बात पर सुनवाई करेगा कि इस मामले में संस्था को कहां नुकसान हुआ है.

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा ‘जिस तरह से नोटिस केवल 10 या 12 घंटे पहले भेजा गया है यह एक ऐसा सवाल है, जिस पर अदालत को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. इस तरह के खुलासे की धमकी नहीं दी जा सकती है . हम सवाल को बाद के लिए रखेंगे.

हालांकि, सिब्बल इस बात से चिंतित थे कि इस बयान का इस्तेमाल जय शाह के वकील द्वारा मुकदमे को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है, अदालत ने कहा कि ‘इस अवलोकन से मामलों की टिप्पणियों का प्रभाव नहीं पड़ेगा.’

यहां तक कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि उन्होंने इस तरह के नोटिसों के बारे में क्या महसूस किया, जिस पर मेहता ने जवाब दिया कि ‘बिना तथ्यों की पत्रकारिता पर अंकुश लगाने की जरूरत है. जहां तक प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का संबंध है उनके लिए तो दिशानिर्देश हैं, लेकिन वेब मीडिया के लिए अभी तक कोई गाइडलाइन नहीं बनाई गई है.’

गंभीर बहस के दौरान अदालत ने आदेश देते हुए कहा कि ‘कोर्ट बहुत सी बातें कहना चाहती है, लेकिन उन चीजों को नहीं कह सकती है और ‘कई मामले थे जिनमें देश को सच्चाई बताने की आवश्यकता है.

इस बहस के दौरान अदालत ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि पत्रकारों पर ‘खुलासों के खतरों’ को देखते हुए पत्रकारों को कम समय सीमा दिए जाने की परेशानी को भी देखे जाने की जरूरत है.

सुनवाई के बाद प्रेस को जारी किए गए एक बयान में द वायर ने कहा है कि ‘परिस्थितियां ऐसी उत्पन्न हुई हैं जिसके अनुसार हम मानते हैं कि यह सबसे अच्छा है अगर हम इस अवसर पर अपने लेख में बताई गई हर चीज को सही ठहराएं. इसलिए हम इसे वापस ले रहे हैं.

द वायर ने अपने बयान में कहा है हमारा मानना है कि मीडिया की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई को सभी स्तर पर आगे बढ़ाना होगा. हमारा लेख तथ्यात्मक था, न केवल रिकॉर्ड पर बल्कि जय अमित शाह द्वारा स्वीकार किए गए तथ्यों पर आधारित था.


यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ याचिकाओं की बाढ़- पूर्व न्यायाधीश और पत्रकार आये आगे


हालांकि, अभी भी बहुत हद तक हमारा मानना है कि न तो कोई आपराधिक मामला और न ही कोई निषेधाज्ञा कानूनी रूप से न्यायसंगत है, हम गुजरात में मुकदमे का सामना करने का इरादा रखते हैं जिससे मीडिया के संवैधानिक रूप से अनिवार्य अधिकार आखिरकार प्रबल हो जाएंगे.

गुजरात की अदालत में सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

पिछले साल सितंबर में, जय शाह के वकील हरीश साल्वे ने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की थी कि वो गुजरात उच्च न्यायालय में उनके द्वारा द वायर और उसके पत्रकार के खिलाफ दायर की गई आपराधिक मानहानि की शिकायत पर लगी रोक को हटाएं.

द वायर और उसके पत्रकार पर एक लेख में उनके मुवक्किल की मानहानि का आरोप लगाया था. साल्वे का कहना था कि वो देखना चाहते हैं कि अदालत में सुनवाई में क्या तथ्य पेश किए जाते हैं.

सर्वोच्च न्यायालय ने समाचार संगठन की गुहार पर ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी. गुजरात हाई कोर्ट ने मानहानि के दावे को निरस्त करने से इंकार कर दिया था. हालांकि, समाचार संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी सभी अर्जियां वापिस ले ली है.

सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को सुलटाने का ऑफर दिया

पहले हुई एक सुनवाई में जब मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के सामने सुनवाई हो रही थी, तब भी उच्चत्तम न्यायालय ने दोनो पक्षों से पूछा था कि क्या वो समझौते के लिए तैयार हैं.

जय शाह के वकील ने संकेत दिया था कि वो इसके लिए तैयार हैं पर समाचार संगठन ने ऐसी किसी भी संभावना को सिरे से खारिज कर दिया था क्योंकि उनके अनुसार , उनका लेख ‘तथ्यपरक और सही’ था.

क्या था मामला

द वायर की पत्रकार रोहिणी सिंह ने अपने एक लेख व्यापारी जय शाह के बारे में छापा था, तब जय शाह ने निचली अदालत में मानहानि का दावा ठोका था. जय शाह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पुत्र है. इस लेख में दावा किया गया था कि जब भाजपा सरकार 2014 में सत्ता में आई तो जय शाह के व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हुई है. जय शाह ने अलग से 100 करोड़ का मानहानि का मामला इस वेबसाइट के खिलाफ दायर किया था. जय शाह का कहना था कि उस लेख में लगाए गए सभी आरोप ‘बेबुनियाद है, आपत्तिजक है और मानहानि हुई  हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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