गुरुग्राम: हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने शनिवार को राज्य की महिला कल्याण नकद सहायता योजना ‘लाडो लक्ष्मी योजना’ के तहत 5.22 लाख महिलाओं को 2,100 की पहली किस्त जारी की. यह कदम पिछले साल विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वादे को पूरा करने के तौर पर देखा गया.
लेकिन राज्य में कुल 95 लाख वयस्क महिलाओं की तुलना में लाभ पाने वाली महिलाओं की संख्या बहुत कम है. आलोचकों का कहना है कि यह तो “समुद्र में बूंद” जैसा है — या जैसा अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (AIDWA) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमती सांगवान ने कहा, “ऊंट के मुंह में जीरा.”
हरियाणा अकेला नहीं है. कई राज्यों में चुनाव से पहले राजनीतिक दलों ने महिलाओं के लिए कल्याण योजनाओं की झड़ी लगा दी थी — नकद सहायता, सब्सिडी, मुफ्त बस यात्रा जैसी घोषणाएं, लेकिन सत्ता में आने के बाद इन योजनाओं को लागू करने में देरी हुई या तो शर्तें बदल दी गईं, या बजट घटा दिया गया, या भुगतान में देरी हुई. महाराष्ट्र इसका हालिया उदाहरण है.
जैसे ही बिहार में 6 और 11 नवंबर को मतदान की तैयारी चल रही है, एनडीए और महागठबंधन — दोनों ही महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिशों में जुटे हैं, जो राज्य के मतदाताओं का बड़ा हिस्सा हैं.
एनडीए, जिसकी सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में है, उसने चुनाव से कुछ हफ्ते पहले ‘जीविका दीदी योजना’ के तहत 21 लाख महिलाओं को 10,000-10,000 की राशि दी है. साथ ही, ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ के ज़रिए एक करोड़ महिलाओं को “लखपति दीदी” बनाने का वादा किया है, जिसके तहत दो लाख तक की वित्तीय मदद दी जाएगी.
वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के नेतृत्व वाला महागठबंधन “माई-बहन-मान योजना” के तहत महिलाओं को हर महीने 2,500 देने का वादा कर रहा है, साथ ही ‘जीविका दीदी’ के लिए और अधिक लाभ देने की घोषणा भी की है.
एमिटी यूनिवर्सिटी, मोहाली की राजनीतिक विश्लेषक और असिस्टेंट प्रोफेसर ज्योति मिश्रा ने कहा कि न सिर्फ हरियाणा, बल्कि लगभग सभी राज्य महिलाओं को लुभाने की कोशिश में लगे हैं, क्योंकि वे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं.
उनके अनुसार, “समस्या यह है कि ज़्यादातर योजनाएं चुनाव से पहले बिना आर्थिक असर का विश्लेषण किए घोषित कर दी जाती हैं और जब लागू करने की बारी आती है, तो राज्य सरकारें लाभार्थियों की संख्या सीमित करने के लिए नई पात्रता शर्तें जोड़ देती हैं — जैसा हरियाणा ने किया है. या फिर बजट घटा देती हैं — जैसा महाराष्ट्र ने अपनी योजना के दूसरे वित्तीय वर्ष में किया.”
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शर्तों में बदलाव
महिलाओं के लिए नकद सहायता योजनाएं कई राज्यों में भाजपा और अन्य पार्टियों की चुनावी जीत में अहम भूमिका निभाती दिखी हैं.
मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में महिलाओं के लिए नकद सहायता देने वाली योजना शुरू करने वाला राज्य देश में सबसे आगे था. ‘लाड़ली बहना योजना’ के तहत शुरू में सालाना 2.5 लाख से कम आय वाले परिवारों की महिलाओं को हर महीने 1,250 देने का वादा किया गया था. कहा जाता है कि इस योजना ने 2023 में भाजपा की सत्ता में वापसी में बड़ा योगदान दिया.
इसी तर्ज पर एनडीए ने महाराष्ट्र में ‘लाडकि बहिण योजना’ की घोषणा की, जिससे उसे बड़े बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आने में मदद मिली.
लेकिन आलोचकों का कहना है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में — जहां क्रमशः महायुति (भाजपा गठबंधन) और कांग्रेस की सरकारें हैं — महिलाओं पर केंद्रित इन योजनाओं के वादे पूरी तरह पूरे नहीं हुए.
महाराष्ट्र में ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकि बहिण योजना’ (प्रत्यक्ष लाभांतरण योजना) ने नवंबर 2024 के विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन को ऐतिहासिक जीत दिलाई थी.
लेकिन चुनाव के बाद भाजपा, शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) वाली महायुति सरकार ने योजना की गहन समीक्षा शुरू की और पाया कि कई महिलाएं पात्रता शर्तों पर खरी नहीं उतरतीं.
इसके बाद बड़ी संख्या में महिलाओं के नाम लाभार्थियों की सूची से हटा दिए गए और वित्तीय दबावों के चलते 2025 में योजना का बजट 46,000 करोड़ से घटाकर 36,000 करोड़ कर दिया गया. इस कटौती पर सरकार की आलोचना भी हुई.
कर्नाटक में कांग्रेस ने 2023 विधानसभा चुनाव से पहले अपने ‘पांच गारंटी’ वादों में महिलाओं के लिए कई योजनाएं शामिल की थीं.
लेकिन अब तक राज्य सरकार ने अपनी प्रमुख ‘गृहलक्ष्मी योजना’ से दो लाख से ज़्यादा अपात्र महिलाओं को हटा दिया है. इस योजना के तहत परिवार की महिला मुखिया को हर महीने 2,000 मिलते हैं. हटाने का कारण — या तो वे खुद या उनके पति आयकर या जीएसटी देने वाले निकले.
कर्नाटक सरकार की राज्य परिवहन बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा देने की योजना भी विवादों में रही, क्योंकि इससे सरकारी खज़ाने पर भारी बोझ पड़ा और यह सवाल उठा कि क्या सुविधा उन महिलाओं तक भी पहुंच रही है जिन्हें आर्थिक मदद की ज़रूरत नहीं. विवादों के बावजूद यह योजना अभी भी जारी है.
दिल्ली में भी फरवरी 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आई तो महिलाओं को हर महीने 2,500 की आर्थिक सहायता दी जाएगी. कैबिनेट ने 8 मार्च को ‘महिला समृद्धि योजना’ को मंज़ूरी तो दे दी, लेकिन अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है.
‘हरियाणा सरकार ने कई महिलाओं को बाहर रखा’
जहां आलोचक यह सवाल उठा रहे हैं कि नकद सहायता योजना से अब तक कितनी महिलाओं को वास्तविक लाभ मिला है, वहीं हरियाणा सरकार का दावा है कि यह पहल सफल रही है.
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने शनिवार को पत्रकारों से कहा कि 31 अक्टूबर की आधी रात तक 6,97,697 महिलाओं ने सरकार के लाडो लक्ष्मी योजना के लिए बनाए गए मोबाइल ऐप पर रजिस्ट्रेशन किया था. इनमें से 6,51,529 विवाहित और 46,168 अविवाहित महिलाएं थीं.
मुख्यमंत्री ने बताया, “प्रतिक्रिया इतनी ज़्यादा थी कि 30 अक्टूबर की रात 12 बजे से लेकर 31 अक्टूबर की रात 12 बजे तक सिर्फ 24 घंटे में 37,737 महिलाओं ने ऐप पर रजिस्ट्रेशन किया.”
उन्होंने कहा कि 23 वर्ष से अधिक उम्र की वे सभी महिलाएं जिनके परिवार की वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम है, लाडो लक्ष्मी योजना ऐप पर आवेदन कर सकती हैं. “यह पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया है. आवेदन के 24 से 48 घंटे के भीतर सरकार स्तर पर वेरिफिकेशन पूरा हो जाता है और लाभार्थी को लाइव फोटो भेजने के लिए संदेश आता है ताकि e-KYC पूरी की जा सके. e-KYC का प्रोसेस कुछ सेकंड में ही पूरा हो जाता है.”
मुख्यमंत्री ने बताया कि अब तक 3,46,983 महिलाओं के खाते में पैसा ट्रांसफर किया जा चुका है, जबकि 1,75,179 महिलाओं को e-KYC पूरी करने के बाद राशि मिल जाएगी.
लेकिन सब इससे प्रभावित नहीं हुए.
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (AIDWA) की उपाध्यक्ष जगमती सांगवान ने कहा कि यह लाभ शुरुआती वादे की तुलना में बहुत ही कम है. उन्होंने कहा, “भाजपा ने हरियाणा की महिलाओं से वादा किया था कि लाडो लक्ष्मी योजना के तहत उन्हें हर महीने 2,100 दिए जाएंगे, लेकिन बाद में शर्तें बदल दी गईं ताकि बहुत कम महिलाएं पात्र बनें. राज्य की 95 लाख वयस्क महिलाओं में से सिर्फ 5.22 लाख को लाभ मिला है — यानी कुल आबादी का मुश्किल से 4 प्रतिशत.”
सांगवान ने बताया कि उनके पास रोज़ाना कई महिलाएं शिकायत लेकर आती हैं कि ऐप पर मांगे गए दस्तावेज़ इतने मुश्किल हैं कि पूरा प्रोसेस करना मुश्किल हो जाता है.
उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए, एक शर्त है कि महिला कम से कम 15 साल से हरियाणा में रह रही होनी चाहिए. यह अजीब और हैरान करने वाली बात है कि हरियाणा सरकार लाभार्थियों को बाहर रखने के लिए इतने ‘नए’ तरीके निकालती है. नागरिकता के लिए भी किसी जगह पर 10 साल रहना पर्याप्त माना जाता है, लेकिन लाडो लक्ष्मी के लिए 15 साल की शर्त रखी गई है.”
सांगवान ने आरोप लगाया कि भाजपा चुनाव से पहले ऐसे वादे करती है, लेकिन लागू करने के वक्त ऐसी शर्तें जोड़ देती है, जिनसे ज़्यादातर महिलाएं बाहर रह जाती हैं. उन्होंने कहा कि इसी वजह से बिहार में भी महिलाओं के लिए किए जा रहे भाजपा के वादों को लेकर लोगों में संदेह है.
क्या है लाडो लक्ष्मी योजना?
2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री सैनी की अगुवाई में भाजपा सरकार ने अपने संकल्प पत्र में वादा किया था कि राज्य की सभी महिलाओं को हर महीने 2,100 की सहायता दी जाएगी.
हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट के मुताबिक, पिछले साल 12 सितंबर तक राज्य में 2.03 करोड़ मतदाता दर्ज थे, जिनमें से 95,77,926 महिलाएं थीं. इनमें 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं की संख्या 19,06,483 थी.
यह मानकर चला गया था कि जो महिलाएं वृद्धावस्था पेंशन पा रही हैं, उन्हें अतिरिक्त सहायता नहीं मिलेगी. ऐसे में अनुमान था कि लगभग 76,71,443 महिलाएं लाडो लक्ष्मी योजना से लाभान्वित होंगी.
लेकिन जब 28 अगस्त 2025 को योजना की अधिसूचना जारी हुई, तो सरकार ने नई पात्रता तय कर दी — अब सिर्फ 23 वर्ष से अधिक आयु की वही महिलाएं आवेदन कर सकती थीं, जिनके परिवार की वार्षिक आय एक लाख रुपये से अधिक नहीं है.
नोटिफिकेशन में यह भी कहा गया कि आवेदन करने वाली महिला — या यदि वह शादी करके हरियाणा आई है तो उसका पति — राज्य का निवासी होना चाहिए और आवेदन की तारीख से कम से कम 15 साल पहले तक हरियाणा में रहना ज़रूरी है.
इसके अलावा, जो महिलाएं पहले से किसी सामाजिक सुरक्षा योजना जैसे वृद्धावस्था सम्मान भत्ता योजना या विधवा एवं निराश्रित महिला सहायता योजना के तहत लाभ ले रही हैं, उन्हें भी इस योजना से बाहर रखा गया है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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