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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशकोविड वर्ष में UP ने 3 बार Midday Meal का राशन भेजा, लेकिन कुछ छात्र अभी भी इसके मिलने का इंतजार कर रहे हैं

कोविड वर्ष में UP ने 3 बार Midday Meal का राशन भेजा, लेकिन कुछ छात्र अभी भी इसके मिलने का इंतजार कर रहे हैं

कोविड की दो लहरों के बाद सूखे राशन के लिए लंबे इंतजार और पका भोजन उपलब्ध न होने से मिड डे मील योजना का एक अहम उद्देश्य नाकाम होने लगा है—गरीब छात्रों को स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करना.

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सोनभद्र : उत्तर प्रदेश में सोनभद्र जिले के किरहुलिया गांव में 10 अगस्त को एक प्रवासी मजदूर की पत्नी राजवंती 50 से ज्यादा अन्य परिवारों के साथ कोटेदार (राशन डीलर) के घर के बाहर इंतजार कर रही थी. जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, आशा और निराशा के बीच उसके चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे. वह करीब एक घंटे से इंतजार कर रही थी.

उसके साथ गांव के सरकारी स्कूल में क्रमश: कक्षा 3 और 4 में पढ़ने वाले उसके दो छोटे बच्चे बेटा विपिन और बेटी सरिता भी थे. उम्मीद थी कि कम से कम अगले कुछ दिनों के लिए तो उन्हें आराम से भोजन मिल जाएगा, और यही आशा धूमिल होना राजवंती को चिंतित और बेचैन कर रहा था.

परिवार उस सूखे राशन की प्रतीक्षा कर रहा था जो कोविड महामारी शुरू होने के बाद से राज्य सरकार और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के छात्रों को, और सरकार की अन्य पहल के तहत पढ़ने वालों को परोसे जाने वाले मिड डे मील (एमडीएम) के बदले में बच्चों के लिए मुहैया कराया जा रहा है.

राजवंती ने बताया, ‘हम छह महीने से अधिक समय से इस सूखे राशन का इंतजार कर रहे हैं. आखिरी बार यह पिछले साल नवंबर में वितरित किया गया था. मुझे यह भी याद नहीं है कि इससे पहले कब मिला था.’

महामारी के कारण देशभर में स्कूलों के बंद होने से विपिन और सरिता जैसे तमाम बच्चों को उनका मिड डे मील मिलना बंद हो गया है जो कि यह सुनिश्चित करता था कि उन्हें तहरी, दाल, खीर, फल जैसे कुछ स्वादिष्ट चीजें उपलब्ध होंगी.

राजवंती ने कहा, ‘गरीबी आएगी तो सीधे मार पेट पर ही पड़ेगी. अब रोज दूध, सब्जी कहां से खरीद कर दें.’

उसने आगे कहा, ‘महामारी के दौरान ज्यादातर समय हम भोजन के लिए सरकारी राशन पर ही निर्भर रहे हैं. लेकिन मध्याह्न भोजन का राशन अनियमित रहा है और समय पर वितरित नहीं किया गया है.’

बांदा के बबेरू प्रखंड के अधवन गांव में करीब 350 किलोमीटर दूर सातवीं कक्षा की छात्रा सपना यादव 5 अगस्त को एमडीएम राशन की तीसरी खेप मिलते ही स्थानीय दुकान पर पहुंच गई थी. वहां, उसने चावल और गेहूं के रूप में मिला सूखा राशन बेचा, जो उसे और चौथी कक्षा में पढ़ने वाले उसके दो भाइयों के लिए मिला था. उसने 260 रुपये खुद अपने पास रखे और 10-10 रुपये अपने दोनों भाइयों को दे दिए.

किसान के बच्चों, सपना और उनके भाई-बहनों के पास घर पर सूखा राशन तो उपलब्ध है लेकिन पैसों की कमी है.

पिछले साल मार्च में देश में कोविड महामारी के प्रकोप के बाद केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एमडीएम योजना जारी रखना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे और योजना के तहत लाभार्थियों को राशन, नकद या दोनों के वितरण का सुझाव दिया था.

इस पर हर राज्य ने योजना पर अपनी तरह से अमल करना शुरू किया. यूपी जहां चावल, गेहूं और कन्वर्जन मनी (खाना पकाने की लागत के बदले पैसा) प्रदान करता रहा है, वही, हरियाणा और पंजाब जैसे अन्य राज्य राशन में दालों को भी शामिल कर रहे हैं.

लेकिन राज्य के प्रयासों और केंद्र की निगरानी के बावजूद योजना के तहत आपूर्ति प्रभावित हुई है.

महामारी विशेषज्ञ और मिड-डे मील कार्यक्रम की सलाहकार समिति में सदस्य डॉ. लक्ष्मैया ने माना कि योजना के तहत राशन वितरण अनियमित रहा है.

उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर राज्यों ने खराब प्रदर्शन किया है. समय पर मध्याह्न भोजन राशन नहीं मिलने से आने वाले वर्ष में बच्चों में कुपोषण भी और बढ़ेगा.’

लक्ष्मैया ने कहा कि भले ही ‘दूध और सब्जियों की आपूर्ति करना संभव नहीं है’, समिति ने पांच चीजों—अनाज, दाल, तेल, बाजरा और सीरम की आपूर्ति की व्यवस्था करना का सुझाव दिया था.

एक केंद्रीय अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि सही ढंग से अमल सुनिश्चित करने के लिए आने वाले दिनों में राज्यों के हर जिले में एक ऑडिट टीम जमीनी स्तर पर वितरण के आकलन के लिए भेजी जाएगी. हालांकि, कुल मिलाकर केंद्र को ऐसा लगता है कि राज्य इस दिशा में ठीक काम कर रहे हैं.

शिक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव रामचंद्र मीणा ने दिप्रिंट को बताया, ‘कोविड लॉकडाउन के कारण शुरू में कुछ देरी हुई थी, लेकिन बाद में राज्यों ने सूखे राशन का वितरण सुचारू ढंग से करने पर ध्यान केंद्रित किया. यही नहीं, एमडीएम के इतिहास में पहली बार हमने गर्मी की छुट्टियों को भी कवर किया.’


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पोषण की जरूरत की पूर्ति, स्कूल आना सुनिश्चित करना

केंद्र की मध्याह्न भोजन योजना 1995 में प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषण सहायता के राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में शुरू की गई थी. कुछ राज्यों में पहले से ही यह योजना थी. इतने वर्षों में केंद्रीय कार्यक्रम में कई बार बदलाव हुए हैं और इस समय में देशभर में करीब 11.80 करोड़ बच्चों को इस योजना में शामिल किया गया है.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 1 से 8 तक के छात्र कानूनन मध्याह्न भोजन पाने के हकदार हैं. इस योजना के दो प्रमुख उद्देश्य हैं—यह सुनिश्चित करना कि बच्चों की पोषण संबंधी जरूरतों की पूर्ति हो सके और गरीब बच्चों को नियमित रूप से स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.

Rajwanti and her children return home after receiving ration | Jyoti Yadav | ThePrint
राजवंति अपने दोनों बच्चों के साथ राशन लेकर घर लौटती हुई/ज्योति यादव/दिप्रिंट

एमडीएम के दिशानिर्देशों के मुताबिक, प्राथमिक स्तर पर हर स्कूली बच्चे को प्रतिदिन 100 ग्राम खाद्यान्न, 20 ग्राम दाल, 50 ग्राम सब्जियां और पांच ग्राम तेल का अधिकार है. उच्च प्राथमिक स्तर पर हर बच्चे को प्रतिदिन 150 ग्राम खाद्यान्न, 30 ग्राम दाल एवं 75 ग्राम सब्जियां तथा 7.5 ग्राम तेल मिलना चाहिए. योजना यह है कि इस भोजन से बच्चों की दैनिक पोषण संबंधी जरूरतों का एक तिहाई हिस्सा पूरा होना चाहिए.

पिछले साल अप्रैल में पहली कोविड लहर के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने योजना के तहत वार्षिक केंद्रीय आवंटन को 7,300 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 8,100 करोड़ रुपये करने की घोषणा की थी. इसमें खाना पकाने पर आने वाली लागत भी शामिल है.

मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, केंद्र ने 2019-20 में 9,700.04 करोड़ रुपये की की तुलना में 2021-22 में 12,882.11 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की. इस योजना के लिए वित्त पोषण 60 प्रतिशत केंद्र सरकार और 40 प्रतिशत राज्य सरकारों की तरफ होता है.

यूपी में कैसे हो रहा अमल

उत्तर प्रदेश को 2020-21 में 118201.96 लाख रुपये की तुलना में 2021-22 में 2,07,166.14 लाख रुपये आवंटित किए गए. राज्य में योजना के तहत 1,86,02,791 बच्चों को शामिल किया गया है.

महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक यूपी सरकार ने योजना के तहत तीन बार राशन की आपूर्ति की घोषणा की है। पहली खेप में मार्च 2020 से जून 2020 के बीच 76 दिनों को कवर किया गया, दूसरी खेप जुलाई 2020 से अगस्त 2020 तक 49 दिनों के लिए थी और तीसरी खेप में सितंबर 2020 से फरवरी 2021 तक 138 और 124 दिनों (क्रमश: प्राथमिक और उच्च प्राथमिक) को कवर किया गया.

पहली खेप 2020 के जून, जुलाई और अगस्त में बांटी गई थी. दूसरी खेप को अक्टूबर और दिसंबर 2020 के बीच वितरित किया गया, और तीसरी खेप अगस्त 2021 में वितरित की जा रही है.

लेकिन एक केंद्रीय एमडीएम अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि ‘यूपी ने एमडीएम के मोर्चे पर खराब प्रदर्शन ही किया है.’

Sapna puts the money she got from selling her MDM ration in her school bag | Jyoti Yadav | ThePrint
सपना अपना एमडीएम राशन बेचने से मिले पैसे को अपने स्कूल बैग में रखती हुई/ज्योति यादव/दिप्रिंट

दिप्रिंट को यूपी के तीन जिलों—बांदा, प्रतापगढ़ और सोनभद्र में अपनी यात्रा के दौरान इसके तमाम लाभार्थियों के बारे में पता चला. कुछ परिवारों को राशन की दो किस्तें ही मिली हैं तो कुछ को तीन.

बांदा की बबेरू तहसील में उच्च प्राथमिक स्कूल के प्रधानाध्यापक ने दिप्रिंट को बताया कि योजना के तहत अब तक केवल 70 प्रतिशत छात्रों को सूखा राशन मिला है. उन्होंने कहा, ‘छठी कक्षा के 37 छात्र अभी दूसरी खेप का ही इंतजार कर रहे हैं जो उन्हें पिछले साल मिलने वाली थी.’

दिप्रिंट ने फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये यूपी के प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा, दीपक कुमार से संपर्क साधा, लेकिन उनका कहना था कि उन्होंने हाल ही में यह पद संभाला इसलिए सवालों का जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं.

इस बीच, सूखे राशन के लंबे इंतजार और पका भोजन नहीं मिल पाने के कारण एमडीएम शुरू किए जाने का एक प्रमुख उद्देश्य नाकाम होने लगा है—गरीब छात्रों को स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करना. जिला प्रशासन और स्कूल के प्रधानाध्यापकों का कहना है कि उन्होंने देखा है कि महामारी के दौरान छात्रों में स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति बढ़ी है.


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