नई दिल्ली: कोरोनावायरस के हवा में होने को लेकर 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने डब्ल्यूएचओ को एक खुला खत लिखा है. ख़त में उन्होंने ऐसे तथ्यों पर ज़ोर दिया है जिससे पता चलता है कि हवा में मौजूद छोटे कण लोगों को संक्रमित कर सकते हैं. अमेरिकी मीडिया संस्थान न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि डब्ल्यूएचओ को अपनी गाइडलाइन और सेफ्टी रिकमेंडेशन में बदलाव की जरूरत है.
खोजकर्ताओं ने अपने इस पत्र को अगले हफ़्ते एक साइंटिफ़िक जर्नल में छपवाने की योजना बनाई है.
ख़त में वैज्ञानिकों ने डब्ल्यूएचओ से हवा में वायरस होने को लेकर अपनी सिफ़ारिशों को संशोधित करने को कहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 29 जून को कोरोनावायरस पर अपने सबसे ताज़ा अपडेट में डब्ल्यूएचओ ने कहा, ‘हवा में वायरस के होने और इससे संक्रमित होने की स्थिति तभी आ सकती है जब कोई मेडिकल प्रक्रिया हुई हो जिससे एयरोसोल उत्पन्न हुआ हो या 5 माइक्रॉन से छोटे ड्रॉप्लेट्स उत्पन्न हुए हों.’
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लंबे समय से डब्ल्यूएचओ की धारणा रही है कि कोरोनावायरस ‘बड़े ड्रॉपलेट्स’ के ज़रिए फ़ैलता है. संस्था का ये भी मानना है, ‘एक बार बीमार व्यक्ति के शरीर से छींकने या खांसने पर ये वायरस तुरंत ज़मीन पर थूक के ज़रिए गिर जाता है. ऐसे में इसके हवा में होने की आशंका नहीं होती है.’
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इंफ़ेक्शन कंट्रोल पर डब्ल्यूएचओ की टेक्नीकल लीड बेंडेटा एलेग्रैंज़ी के मुताबिक हवा से वायरस फ़ैलने से जुड़े तथ्य पुख़्ता नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘ख़ासतौर से पिछले कुछ महीनों में हम कई बार कहते आए हैं कि ‘हवा के ज़रिए संक्रमण’ संभव है लेकिन इसे मानने के लिए अभी पुख्ता और साफ़ तथ्य नहीं हैं. इस पर मज़बूत बहस ज़रूर हो रही है.’
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट से मिली जानकारी के मुताबिक एक महामारी में हवा से होने वाला संक्रमण एक अहम फैक्टर होता है. ख़ासतौर से भीड़-भाड़ वाली कम हवादार जगह में रोकथाम के लिए कदम महत्वपूर्ण होते हैं. ऐसे में बंद जगह में भी मास्क की ज़रूरत पड़ सकती है, तब भी जब लोग सोशल डिस्टेंस मेंटेंन कर रहे हों.
कोरोनावायरस के मरीज़ों की देखभाल में लगे स्वास्थ्य कर्मियों को ऐसे एन- 95 मास्क की ज़रूरत पड़ सकती है जो सांस लेने के दौरान छोड़े गए छोटे से छोटे ड्रॉपलेट को फ़िलटर कर सकें. न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस रिपोर्ट के लिए लगभग 20 वैज्ञानिकों और डब्ल्यूएचओ के दर्जनों लोगों को इंटरव्यू किया जिसके आधार पर रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि अपनी अच्छी भावना के बावजूद डब्ल्यूएचओ हवा से होने वाले कोविड- 19 संक्रमण को लेकर सही नहीं है.
विशेषज्ञों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘छींकने के बाद हवा में उड़ने वाले बड़े ड्रॉप्लेट्स के सहारे या सांस से निकलीं बहुत छोटी बूंदें जो एक कमरे में मौजूद हो सकती हैं, कोरोना वायरस हवा में मौजूद होता है और सांस लेने के दौरान लोगों को संक्रमित कर सकता है.’